रविवार, 31 अगस्त 2008

गुरुबाणी-विचार (सावण आया झिमझिमा....)

सावण आया झिमझिमा, हरि गुरमुख नाम धियाए॥

दुख भुख काड़ा सब चुकाएसी, मीह वुठाछहबर लाए॥

सभ धरति पई हरीआवली , अंन्न जमिया बोहल लाए॥

हरि अचिन्त बुलावै किरपा करि हरि आपे पावै थाए॥

हरि तिसहि तिहावहु सन्त जनहु,जु अंते लए छडाए॥

हरि कीरति भगति अनंदु है, सदा सुख वसै मनि आए॥

जिना गुरमुखि नामु आराधिया, तिना दुख भुख लए जाए॥

जन नानकु त्रिपतै गाऐ गुण,हरि दरसनु देहु सभाए॥


म:४(सारंग की वार){१२५०}


गुरु जी कहते हैं कि देख सावन का महीना आ गया है अब तू भी अपनें गुरू के समक्ष उस परमात्मा का ध्यान कर ले। इससे तेरे दुख और तृष्णा रूपी भूख सब दूर हो जाएगी।जिस प्रकार सावन के आनें पर पानी के बरसनें से गर्मी दूर हो जाती है,उसी तरह प्रभू ध्यान से तेरे तृष्णा रूपी भूख और दुख सब शान्त हो जाएगें।आगे गुरु जी कहते हैं कि सावन के आनें पर सारी धरती पर हरियाली छा जाती है।जिससे खाधय पदार्थो के ढेर लग जाते हैं।उसी प्रकार तेरी प्रभू-भगती का फल तेरे सामनें प्रकट होनें लगता है।जिस कारण प्रभू स्वयं ही तुझे अपनी ओर आकृषित करते हैं।इस लिए हे संत जनों,ध्यान करनें वालों इस समय उस का ध्यान करों।वह तुम्हें दुख और भूख आदि से छुड़ाएगा।क्यूँकि प्रभू का ध्यान करनें से आन्ण्द मिलता है,यह आनंद रूपी सुख ऐसा है जो सदा के लिए तेरे मन में बस जाता है।अर्थात यही स्थाई आनंद है।जिन्होनें भी उस प्रभू का ध्यान किया .....उस के दुख और भूख दोनों ही नष्ट हो गए हैं।गुरु नानक देव जी भी उसी के गुणों को गा-गा कर तृप्त हो गए हैं। अब तो एक ही प्रार्थना है कि हे प्रभू कृपा कर के अपनें दर्शन दो।ताकि इस सावन की तरह मैं भी हरा-भरा हो जाँऊ।अर्थात तृप्त हो जाँऊ।