मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

कबीर के श्लोक -४९

कबीर कारनु बपुरा किआ करै,जऊ रामु न करै सहाइ॥
जिह जिह डाली पगु धरऊ,सोई मुरि मुरि जाइ॥९७॥


कबीर जी कहते हैं कि यह बात तो सही है की उस परमात्मा का ध्यान ही जीव का एकमात्र लक्ष्य है जहाँ वह शांती पा सकता है। लेकिन उस की प्रप्ती तभी हो सकती है जब परमात्मा स्वयं हमारी मदद करे। बिना उसकी मदद के कोई भी उस तक नही पहुँच सकता।जिस तरह कोई ऊँचे वृक्ष पर चढ़ता है तो वह जिस शाखा पर अपना पैर रखता है वही मुड़ने लगती है....झुकने लगती है। जिस कारण मन मे भय उत्पन्न होता है।

कबीर जी हमे समझाना चाह्ते हैं कि वैसे तो हम सभी अपनी तरफ से उस स्थाई ठौर को पानें की कोशिश करते हैं। लेकिन जब तक परमात्मा हम पर कृपा नही करता तब तक हम वहाँ तक नही पहुँच सकते। जब तक हम यह मान कर उस ओर बढ़ते हैं कि हम वहाँ पहुँच जायेगें तब तक यह "मैं" का भाव नष्ट नही हो पाता और यही "मैं" का भाव हमारे और परमात्मा के बीच रूकावट का कारण बना रहता है।लेकिन जब हम सब कुछ उसी पर छोड़ देते हैं तो यह मैं का भाव नष्ट हो जाता है। इसी लिए कबीर जी समझाना चाहते हैं कि जब जीव उस दिशा मे बढ़्ता है तो कदम कदम पर भय और शंकायें हमे घेरती है।


कबीर अवरह कऊ उपदेसते,मुख मै परि है रेतु॥
रासि बिरानी राखते, खाया घर का खेतु॥९८॥


कबीर जी इस श्लोक मे आगे कहते हैं कि बहुत से साधक (उपरोक्त कही बात को ) जानते हैं। लेकिन कई बार बार ऐसे साधक सिर्फ दूसरों को ही इस बात का उपदेश देते रहते हैं परन्तु इस तरह दूसरों की पूँजी की देखभाल के एवज में अपनी पूँजी गँवा लेते हैं।

कबीर झी हमे कहना चाहते हैं कि यदि तुम्हें सही दिशा मिल चुकी है तो पहले स्वयं ही वहँ तक पहुँचों। कहीं ऐसा ना हो की तुम अन्य लोगों को  उस दिशा की ओर अग्रसर करने में उपदेश देते ही रह जाओ और स्वयं अपने जीवन को व्यर्थ ही गँवा दो। क्योकि बहुत से साधक दूसरॊ को रास्ता दिखाने मे ही रस लेने लगते हैं। अत: कबीर जी हमे सावधान करना चाहते है।

2 टिप्पणियाँ:

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

prerak post.......

ManPreet Kaur ने कहा…

nice post.. jaankari k liye shukriya..

mere blog par bhi sawagat hai...
Lyrics Mantra

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