कबीर परभाते तारे खिसहि, तिऊ इहु खिसै सरीरु॥
ऐ दुइ अखर ना खिसहि, सो गहि रहिउ कबीरु॥१७१॥
कबीर जी कहते हैं कि जिस प्रकार प्रभात होने पर तारों का दिखाई देना बंद होता जाता है .जो रात की शांती में सुशोभित हो रहे होते हैं। उसी प्रकार संसारिक पदार्थो के नजर आने पर उन के प्रभाव से उस परमात्मा के प्रति हमारा लगाव घटता जाता है। हम भौतिक पदार्थों के प्रति आसक्त होने के कारण कमजोर पड़ने लगते है।लेकिन कबीर जी कहते हैं कि यदि हमारे भीतर परमात्मा का नाम बसा हुआ है तो हम सभी प्रकार के बंधनो से मुक्त रहते हैं।क्योकि परमात्मा का नाम एक बार जिस के भीतर बस जाता है तो ऐसा जीव सभी तरह के संसारिक कारविहार करते हुए भी उसी मे लीन रहता है।
कबीर जी कहना चाहते है कि संसारिक प्रलोभन जब हमारे सामने होते हैं तो हमारे भीतर परमात्मा की याद कमजोर पड़ जाती है। लेकिन यदि हम उस परमात्मा के नाम का सहारा न छोड़े तो हम इस से बच सकते है और उस को पा सकते है जो सदा मौजूद रहता है।
कबीर कोठी काठ की, दह दिसि लागी आगि॥
पंडित जलि मूऐ, मूरख ऊबरे भागि॥१७२॥
कबीर जी आगे कहते है कि ये दुनिया एक प्रकार से लकड़ी का घर है जिस के चारो ओर माया रूपी आग लगी हुई है।अर्थात अनेक प्रकार के प्रलोभन हमारे चारो ओर भरे पड़े हैं। बहुत से लोग जो अपने आप को पंडित अर्थात समझदार समझते हैं। वे लोग इन प्रलोभनों मे फँस कर इन्हें एकत्र करने मे लग जाते हैं और समझते हैं हम बहुत समझदारी कर रहे हैं और बहुत से लोग ऐसे हैं जो इन भौतिक पदार्थो की नशवरता को पहचानते है इस लिए वे संसार मे रहते हुए भी इन के प्रति विरक्त ही रहते हैं अर्थात इस माया रूपी जाल मे नही फँसते। ऐसे लोग पंडितों की नजर मे मूरख कहलाते है। क्योकि वे इस आग को देख कर भाग जाते हैं।
कबीर जी कहना चाहते है कि जो लोग माया मे ही उलझ जाते है वे उस परमात्मा से बहुत दूर हो जाते है लेकिन जो लोग इस माया मे नही फँसते वे ही उस परमात्मा की निकटता प्राप्त कर पाते है।
ऐ दुइ अखर ना खिसहि, सो गहि रहिउ कबीरु॥१७१॥
कबीर जी कहते हैं कि जिस प्रकार प्रभात होने पर तारों का दिखाई देना बंद होता जाता है .जो रात की शांती में सुशोभित हो रहे होते हैं। उसी प्रकार संसारिक पदार्थो के नजर आने पर उन के प्रभाव से उस परमात्मा के प्रति हमारा लगाव घटता जाता है। हम भौतिक पदार्थों के प्रति आसक्त होने के कारण कमजोर पड़ने लगते है।लेकिन कबीर जी कहते हैं कि यदि हमारे भीतर परमात्मा का नाम बसा हुआ है तो हम सभी प्रकार के बंधनो से मुक्त रहते हैं।क्योकि परमात्मा का नाम एक बार जिस के भीतर बस जाता है तो ऐसा जीव सभी तरह के संसारिक कारविहार करते हुए भी उसी मे लीन रहता है।
कबीर जी कहना चाहते है कि संसारिक प्रलोभन जब हमारे सामने होते हैं तो हमारे भीतर परमात्मा की याद कमजोर पड़ जाती है। लेकिन यदि हम उस परमात्मा के नाम का सहारा न छोड़े तो हम इस से बच सकते है और उस को पा सकते है जो सदा मौजूद रहता है।
कबीर कोठी काठ की, दह दिसि लागी आगि॥
पंडित जलि मूऐ, मूरख ऊबरे भागि॥१७२॥
कबीर जी आगे कहते है कि ये दुनिया एक प्रकार से लकड़ी का घर है जिस के चारो ओर माया रूपी आग लगी हुई है।अर्थात अनेक प्रकार के प्रलोभन हमारे चारो ओर भरे पड़े हैं। बहुत से लोग जो अपने आप को पंडित अर्थात समझदार समझते हैं। वे लोग इन प्रलोभनों मे फँस कर इन्हें एकत्र करने मे लग जाते हैं और समझते हैं हम बहुत समझदारी कर रहे हैं और बहुत से लोग ऐसे हैं जो इन भौतिक पदार्थो की नशवरता को पहचानते है इस लिए वे संसार मे रहते हुए भी इन के प्रति विरक्त ही रहते हैं अर्थात इस माया रूपी जाल मे नही फँसते। ऐसे लोग पंडितों की नजर मे मूरख कहलाते है। क्योकि वे इस आग को देख कर भाग जाते हैं।
कबीर जी कहना चाहते है कि जो लोग माया मे ही उलझ जाते है वे उस परमात्मा से बहुत दूर हो जाते है लेकिन जो लोग इस माया मे नही फँसते वे ही उस परमात्मा की निकटता प्राप्त कर पाते है।