सोमवार, 30 जुलाई 2012

कबीर के श्लोक - १०८


कबीर कीचड़ि आटा गिरि परिआ किछू न आइउ हाथ॥
 पीसत पीसत चाबिआ सोई निबहिआ साथ॥२१५॥

कबीर जी कहते हैं कि जब आटा कीचड़ मे गिर जाता है तो वह किसी काम का नही रहता। जिस का आटा होता है उस के हाथ कुछ भी नही लगता।लेकिन चक्की पीसते समय जितने दानें उसने चख लिये बस वही उसके काम आते हैं।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि परमात्मा का ध्यान करने के लिये किसी विशेष समय या उमर की जरूरत नही होती। बल्कि हमे अपना स्वाभाव ऐसा बना लेना चाहिए की हर समय,चाहे हम किसी भी काम मे लगे हो ,उस परमात्मा का सिमरन करते रहे। अर्थात कुछ दानें खा सके। कहीं ऐसा ना हो कि हम बेकार के कामों मे ही व्यस्त रहें और समय निकल जाये। अर्थात हमारा आटा कीचड़ मे गिर जाये और हमारे हाथ कुछ भी ना लगे।

कबीर मनु जानै सभ बात, जानत ही अऊगनु करै॥ 

काहै की कुसलात, हाथि दीपु कूऐ परै॥२१६॥

कबीर जी आगे कहते हैं कि हमारा मन सभी कुछ  जानता है कि हम क्या अच्छा कर रहे हैं और क्या बुरा।लेकिन सब जानते हुए भी हम बुराईओ की ओर ही जाते हैं। लेकिन कबीर जी कहते हैं कि इस मे भला कौन-सी समझदारी है, जबकि तुम्हारे हाथ मे जलता हुआ दीपक हो और फिर भी तुम कूए में गिर जाओ।.

कबीर जी कहना चाहते हैं कि हमारा मन जानता है कि हम दिखावे के लिये तो मंदिर गुरूद्वारे जाते हैं लेकिन बाकि समय चोरी ठगी मे लगे रहते हैं।इस तरह की चालाकी करने से हमे क्या लाभ मिलने वाला है? जबकि परमात्मा का नाम रूपी दीपक हमारे हाथ में है जो हमारे मन का सारा अंधेरा दूर कर सकता है। यदि फिर भी हम परमात्मा की भक्ति की जगह विषय-विकारों मे ही फँसें रहते हैं तो यह ठीक ऐसा ही है कि जैसे तुम्हारे हाथ मे जलता हुआ दीया हो और तुम फिर भी कूए में जा गिरो।

शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

कबीर के श्लोक - १०७

नामा कहै तिलोचना मुख ते राम संम्हालि॥
हाथ पाउ करि कामु सभु चीतु निरंजन नालि॥२१३॥

कबीर जी कहते हैं कि नामा जी त्रिलोचन को जवाब देते हैं कि मुँह से राम नाम को बोलते हुए उस का ध्यान कर के और हाथ-पाँव से अपनी रोटी-रोजी के लिए कार्य करके उस परमात्मा को मैं सदा अपने चित मे रखता हूँ।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि भक्त भले ही संसारिक कार्यो मे उलझे हुए लगते हो लेकिन वास्तव में उन का ध्यान सभी कार-विहार करते हुए भी उस परमात्मा में ही लगा रहता है। यहाँ कबीर जी हमे भी संकेत द्वारा कहना चाहते हैं कि हमे परमात्मा की प्राप्ती के लिये संसार छोड़ कर कहीं भागने की जरूरत नही हैं बल्कि संसार के कार-विहार करते हुए उस परमात्मा के ध्यान मे डूबा रहना है। सभी भक्तों ने ऐसा ही किया है।

महला ५॥ कबीरा हमरा को नही, हम किस  हू के नाहि॥
जिनि इहु रचन रचाइआ, तिस ही माहि समाहि॥२१४॥

(यह श्लोक गुरु अरजन देव जी का है)वे कहते हैं कि हे कबीर! जिस परमात्मा ने यह सब रचना रची है हम तो उसी की याद में लगे रहते हैं,क्यूँकि ना तो हमारा कोई सदा के लिये साथी हो सकता है और ना ही हम सदा किसी के लिये साथी हो सकते हैं।

गुरु जी इस श्लोक में उपरोक्त श्लोक के संदर्भ में कहना चाहते हैं कि यदि जीव को इस सत्य का आभास हो जाये कि इस संसार मे कोई भी किसी का नही हो सकता।अर्थात वे कहना चाहते हैं कि भले ही ऊपरी तौर पर हम एक दूसरे के मित्र नजर आते हैं लेकिन एक व्यक्ति किसी दूसरे की शारिरिक व मानसिक पीड़ा को सांत्वना तो दे सकता है लेकिन कम नही कर सकता। इसी लिये गुरु जी कहते हैं कि ना तो कोई हमारा है और ना ही हम किसी के हो सकते हैं।हमे तो अंतत: उसी मे समाना है जिस ने यह सारी रचना इस प्रकार बनाई है।

मंगलवार, 10 जुलाई 2012

कबीर के श्लोक - १०६

कबीर चावल कारने तुख कऊ मुहली लाइ॥
संगि कुसंगी बैसतै तब पूछै धरम राइ॥२११॥

कबीर जी कहते हैं कि चावलों के लिये हमे कैसी कैसी मेहनत करनी पड़ती है,गारे मे हाथ डाल कर चावल की पौधे रोपनें पड़ते है और अच्छे बुरे की परवाह ना करते हुए क्या कुछ करना पड़ता है। कबीर जी कहते हैं कि हम जो कुछ भी करते हैं, अच्छा या बुरा उसका हिसाब धर्मराज जरूर माँगेगा।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि परमात्मा हमारे सभी कामों पर नजर रखे हुए हैं हम जो भी करते हैं उसका हिसाब जरूर देना पड़ेगा।कबीर जी इस लिये कह रहे हैं, क्योकि ज्यादातर जीव इस बात को सदा भूले रहते हैं कि परमात्मा की नजर सदा उनके कर्मों पर लगी रहती है।

नामा माइआ मोहिआ कहै तिलोचनु मीत॥
 काहे छीपहु छाइलै राम न लावहु चीतु॥२१२॥

कबीर जी यहाँ त्रिलोचन और नामा जी के वार्तालाप का जिक्र करते हुए कहते हैं कि त्रिलोचन जी नामा से कहते हैं कि तुम माया में क्यो उलझे हुए लगते हो। जब देखो अपने काम मे लगे रहते हो, रजाईयो को टाँकने मे लगे रहते हो। उस परमात्मा का नाम क्यो नही लेते।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि भक्त भी देखने मे तो ऐसे ही लगते हैं की वे संसारिक कार-विहार में उलझे हुए हैं। ऐसे लगता है जैसे वे अपने कामों मे डूबे हुए हैं और परमात्मा का ध्यान करने के लिये उनके पास समय ही नही है।