फरीदा गलीं सु सजण वीह,इक ढूंढदी न लहां॥
धुखां जिउ मांलीह, कारणि, तिंना मा पिरी॥८७॥
फरीदा इहु तनु भऊकणा, नित नित दुखीऎ कऊणु॥
कंनी बुजे दे रहां ,किती वगै पऊणु॥८८॥
फरीदा रब खजूरी पकीआं, माखिआ लई वहंनि॥
जो जो वंजैं डीहड़ा,सो उमर हथ पवंनि॥८९॥
फरीद जी कहते हैं कि इस दुनिया में बातों से बहलाने वाले मित्र तो बहुत मिल जाते हैं,लेकिन ऐसा मित्र कभी नही मिलता जो इस जीवन के दुखों को दूर करने में मददगार साबित हो।हम तो जीवन भर ऐसे मित्र को पानें की आस मे, सूखे गोबर की तरह धीरे-धीरे सुलगते रहते हैं।अर्थात फरीद जी कहना चाहते हैं कि ऐसे मित्र तो बहुत मिल जाते हैं जो अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए हमारे साथ-साथ चलने लगते हैं।अर्थात मित्र होने का दम भरते हैं।लेकिन ऐसे मित्र कभी लाभ नही पहुँचाते अर्थात हमारे दुखो को कम करने में हमारे सहायक नही होते।
फरीद जी आगे कहते है कि हमारा यह शरीर भी अजीब है इस मे हमेशा नित नयी इच्छाएं पैदा होती रहती हैं यह नित नयी-नयी माँग करता रहता है।इस की नित नयी-नयी माँगो को पूरा करने की खातिर कौन परेशान होता रहे ?इस लिए मैने अपने कान ही बंद कर लिए हैं ।इस लिए अब वह जितनी भी माँग करता रहे,मुझे सुनाई ही नही पड़ेगीं।अर्थात फरीद जी कहना चाहते हैं कि हमारा यह शरीर और मन तो कभी भी तृप्ति नही पा सकता।क्युंकि हमारी वासनाएं कभी समाप्त नही होती।वह तो निरन्तर बढ़्ती ही रहती हैं। इस लिय यदि इस से बचना है तो हमें इस की बात ही नही सुननी चाहिए।अर्थात अपने शरीर और मन पर नियंत्रण रखना चाहिए।
फरीद जी आगे कहते है कि यह शरीर और मन भी आखिर क्या करे?परमात्मा ने हमारे चारो ओर पकी हुई खजूर और शहद की नदीयां पैदा कर रखी हैं। इस लिए हम सदा इन को पाने के लिए चिन्तन करते रहते है,इस चिन्तन और हमारी पाने की लालसा मे ही हमारी उमर हमारे हाथ से निकलती जाती है।अर्थात फरीद जी कहना चाहते है कि इस संसार में हमारे चारो और प्रलोभन ही प्रलोभन फैले हुए हैं,जिस कारण हमारा मन उस ओर बरबस खिचनें लगता है और हमारे मन मे उसे पाने की इच्छा पैदा हो जाती है।जिस का परिणाम यह निकलता है कि हम व्यर्थ के पदार्थो को पाने मे ही अपना अनमोल समय गवाँ बैठते हैं।फरीद जी हमे इस से सचेत रहने के लिए ही यहाँ इस की चर्चा कर रहे हैं।
वह बहुरूपिया ....
12 घंटे पहले
2 टिप्पणियाँ:
ैआज पहली बार इस ब्लोग पर आयी हूँीअग्यान के कारण आदमी से कितना कुछ छूट जत है जेसे मुझ से ये ब्लोग छूट गया बहुत ही बडिया प्रयास है1फुर्सत मे आपके इस ब्लोग की सारी रचनायें पढूंगी बहुत बहुत धन्य्वाद एक जगह फरीद जी की वाणी को पढने का सौभग्य आपनेदिया शुभकामनायें
फरीद साहब के उदगारों से परिचय पाकर प्रसन्नता हुई। आभार।
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जादू की छड़ी चाहिए?
नाज्का रेखाएँ कौन सी बला हैं?
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