कबीर मनु मूंडिआ नही केस मुंडाऐ कांऐ॥
जो किछ कीआ सो मनि कीआ मूंडा मूंडु अजांऐ॥१०१॥
कबीर जी कहते हैं कि केसो का मुंडन करने से कुछ नही होता ।क्योकि जब तक मन ना मूंडा जायेगा जीव अपने व्यवाहर को बदल नही सकता।क्योकि हम जो कुछ भी करते हैं वह तो हमारा मन ही कराता है। इस लिए मात्र सिर मुंडाने से कुछ भी ना होगा।
कबीर जी इस श्लोक द्वारा प्रचलित परम्परा पर चोट कर रहे हैं। क्योकि कुछ संम्प्रदायो में सन्यास लेते समय सन्यासी का मुंडन किया जाता है। इसी लिए कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि सन्यास लेते समय अर्थात उस परमात्मा की शरण मे जाते समय सिर के बाल मुंडाने से जीवन मे कोई क्रांति, कोई परिवर्तन नही होने वाला। जब तक हमारे मन का मुंडन नही होता अर्थात हमारे मन मे उस परमात्मा के प्रति प्रेम भाव उत्पन्न नही होता, तब तक जीवन को सही दिशा नही मिल सकती। इस तरह के कर्मकांडों से कोई लाभ नही होने वाला।
कबीर रामु न छोडीऐ तनु धनु जाऐ त जाउ॥
चरन कमल चितु बेधिआ रामहि नामि समाउ॥१०२॥
कबीर जी कहते हैं कि उस परमात्मा का नाम,उस परमात्मा की शरण कभी नही छोड़नी चाहिए। भले ही शरीर और धन की हानि होती हो। क्योकि उस परमात्मा में लीन होने पर ही इस मन का भेदन होता है।
कबीर जी हमें समझाना चाहते हैं कि परमात्मा के नाम से बढ़ कर कुछ भी नही है क्योकि जब कोई उस परमात्मा मे लीन होता है तो उसे एक स्थाई ठिकाना मिल जाता है,उस परमानंद की प्राप्ती हो जाती है जिस की तलाश जीव शूद्र जगहों पर करता रहता है। उस परमात्मा म के साथ एकाकार होने के बाद तन और धन के प्रति मोह स्वयं ही नष्ट हो जाता है। इसी लिए कबीर जी हमें उस परमात्मा की सरण मे जानें के लिए कह रहे हैं।
जो किछ कीआ सो मनि कीआ मूंडा मूंडु अजांऐ॥१०१॥
कबीर जी कहते हैं कि केसो का मुंडन करने से कुछ नही होता ।क्योकि जब तक मन ना मूंडा जायेगा जीव अपने व्यवाहर को बदल नही सकता।क्योकि हम जो कुछ भी करते हैं वह तो हमारा मन ही कराता है। इस लिए मात्र सिर मुंडाने से कुछ भी ना होगा।
कबीर जी इस श्लोक द्वारा प्रचलित परम्परा पर चोट कर रहे हैं। क्योकि कुछ संम्प्रदायो में सन्यास लेते समय सन्यासी का मुंडन किया जाता है। इसी लिए कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि सन्यास लेते समय अर्थात उस परमात्मा की शरण मे जाते समय सिर के बाल मुंडाने से जीवन मे कोई क्रांति, कोई परिवर्तन नही होने वाला। जब तक हमारे मन का मुंडन नही होता अर्थात हमारे मन मे उस परमात्मा के प्रति प्रेम भाव उत्पन्न नही होता, तब तक जीवन को सही दिशा नही मिल सकती। इस तरह के कर्मकांडों से कोई लाभ नही होने वाला।
कबीर रामु न छोडीऐ तनु धनु जाऐ त जाउ॥
चरन कमल चितु बेधिआ रामहि नामि समाउ॥१०२॥
कबीर जी कहते हैं कि उस परमात्मा का नाम,उस परमात्मा की शरण कभी नही छोड़नी चाहिए। भले ही शरीर और धन की हानि होती हो। क्योकि उस परमात्मा में लीन होने पर ही इस मन का भेदन होता है।
कबीर जी हमें समझाना चाहते हैं कि परमात्मा के नाम से बढ़ कर कुछ भी नही है क्योकि जब कोई उस परमात्मा मे लीन होता है तो उसे एक स्थाई ठिकाना मिल जाता है,उस परमानंद की प्राप्ती हो जाती है जिस की तलाश जीव शूद्र जगहों पर करता रहता है। उस परमात्मा म के साथ एकाकार होने के बाद तन और धन के प्रति मोह स्वयं ही नष्ट हो जाता है। इसी लिए कबीर जी हमें उस परमात्मा की सरण मे जानें के लिए कह रहे हैं।