सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

कबीर के श्लोक - ५८

बूडा बंसु कबीर का, उपजिउ पूतु कमालु॥
हरि का सिमरनु छाडि कै,घरि ले आया मालु॥११५॥

कबीर जी कहते हैं कि जब मेरा वंश बूढ़ा था उस समय मेरे मन मे नासमझी वाली बातें आती रहती थी।बूढ़ा वंश अर्थात कमजोर मन ने उस परमात्मा का सिमरन करना छोड़ दिया था। ऐसे में मेरे मन मे दुनियावी पदार्थो को इक्ठ्ठा करने की प्रवृति जाग गई।

कबीर जी कहना चाहते हैं जब हमारा मन कमजोर होता है तो हमारे भीतर ऐसे विचारों का जन्म होता है,जिस से हम प्रभू से दूर हो जाते हैं और भौतिक साधनों को इक्ट्ठा करने में ही लगे रहते हैं।अर्थात कबीर जी कहना चाहते हैं कि जो लोग परमात्मा से दूर होते हैं उनका मन भी कमजोर हो जाता है।

कबीर साधू कौ मिलने जाइऐ, साथि ना लीजै कोइ॥
पाछै पाउ न दीजिऐ, आगै होइ सु होइ॥११६॥

कबीर जी कह्ते हैं कि जब हम किसी साधू से मिलने जायें अर्थात परमात्मा के भक्त से मिलने जायें ,तो अपने साथ किसी को भी और कुछ भी ले कर नही जाना चाहिए। किसी बात से घबराकर हमें अपने कदम पीछे नही हटाने चाहिये।बल्कि बिना डरे आगे बढते जाना चाहिए।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि जब  हम किसी परमात्मा के भक्त के पास जाते हैं तो किसी प्रकार की शंकाये लेकर नही जाना चाहिए।क्योकि परमात्मा का भक्त जो भी बात बोलेगा वह अपने अनुभव से प्राप्त बात ही बोलेगा। इस लिए मन मे कोई शंका नही करनी चाहिए और उसके दिये उपदेश के अनुसार निर्भय हो कर उस का पालन करना चाहिए। तभी हम उस अवस्था को पा सकेगें जिसे उसने पाया हुआ है।

8 टिप्पणियाँ:

निर्मला कपिला ने कहा…

जीवन के मार्ग को व इन्सानियत को सार्थक करते हुये श्लोक। धन्यवाद ।

विशाल ने कहा…

बहुत ही सुन्दर व्याख्या.
सलाम

Anupama Tripathi ने कहा…

सार्थक सुंदर पोस्ट है .
आभार

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर विचार, मन के बारे धन्यवाद

शिवा ने कहा…

बहुत ही सुन्दर व्याख्या..
कभी समय मिले तो http://shiva12877.blogspot.com ब्लॉग पर भी अपने एक नज़र डालें . धन्यवाद .

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत ही सुन्दर व्याख्या|

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

chalti chakki dekh kar, ab rota nahi kabeer, do patan ke beech me ab kewal pise garib. narayan narayan

Dr Varsha Singh ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित पोस्ट.

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