कबीर सूता किआ करहि बैठा रहु अरु जागु॥
जा के संग ते बीछुरा, ता ही के संगि लागु॥१२९॥
कबीर जी कहते हैं कि मोह माया कि निद्रा मे मस्त होकर बैठा मत रह। जरा होश संभाल,जाग जा।जरा विचार कर कि तू किस से बिछड़ गया है। तुझे तो उसी के साथ वापिस जुड़ना है।
कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि मोह माया जीव को अपने पाश मे जकड़ लेती हैं जिस कारण जीव यह विचार करना भूल जाता है कि वह कहाँ से आया है और उसे कहाँ जाना है। जिस तरह हरेक चीज अपने केन्द्र पर पहुँच कर पूर्णत: को प्राप्त करलेती है ठीक उसी तरह जब जीव जहाँ से आया है उसी जगह पहुँच कर आनंद से भर जाता है। कबीर जी हमे इसी लिये इस बात की ओर प्रेरित कर रहे हैं।
कबीर संत की गैल न छोडीऐ, मारगि लागा जाउ॥
पेखत ही पुंनीत होइ, भेटत जपीऐ नाउ॥१३०॥
कबीर जी कह्ते हैं कि हमे संतों का रास्ता नही छोड़ना चाहिए , उसी मार्ग पर चलने मे ही हमारा कल्याण है।क्योकि साधू संतों के दर्शन करने मात्र से हमारे मन भी उस परमात्मा के प्रति प्रेम का जन्म हो जाता है जिस कारण से हम भी उस परमात्मा के ध्यान के रास्ते पर चलने लगते हैं।
कबीर जी हमे कहना चाहते हैं कि जिस मार्ग पर चल कर साधक उस परमात्मा तक पहुँचता है हमे भी उसी मार्ग पर चलना चाहिए। ऐसे भक्तो के दर्शन मात्र से मन पवित्र हो जाता है और मन उस परमात्मा की ओर आकर्षित होने लगता है।इसी लिये कबीर जी ऐसे लोगों के रास्ते पर चलने के लिये कह रहे हैं।
जा के संग ते बीछुरा, ता ही के संगि लागु॥१२९॥
कबीर जी कहते हैं कि मोह माया कि निद्रा मे मस्त होकर बैठा मत रह। जरा होश संभाल,जाग जा।जरा विचार कर कि तू किस से बिछड़ गया है। तुझे तो उसी के साथ वापिस जुड़ना है।
कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि मोह माया जीव को अपने पाश मे जकड़ लेती हैं जिस कारण जीव यह विचार करना भूल जाता है कि वह कहाँ से आया है और उसे कहाँ जाना है। जिस तरह हरेक चीज अपने केन्द्र पर पहुँच कर पूर्णत: को प्राप्त करलेती है ठीक उसी तरह जब जीव जहाँ से आया है उसी जगह पहुँच कर आनंद से भर जाता है। कबीर जी हमे इसी लिये इस बात की ओर प्रेरित कर रहे हैं।
कबीर संत की गैल न छोडीऐ, मारगि लागा जाउ॥
पेखत ही पुंनीत होइ, भेटत जपीऐ नाउ॥१३०॥
कबीर जी कह्ते हैं कि हमे संतों का रास्ता नही छोड़ना चाहिए , उसी मार्ग पर चलने मे ही हमारा कल्याण है।क्योकि साधू संतों के दर्शन करने मात्र से हमारे मन भी उस परमात्मा के प्रति प्रेम का जन्म हो जाता है जिस कारण से हम भी उस परमात्मा के ध्यान के रास्ते पर चलने लगते हैं।
कबीर जी हमे कहना चाहते हैं कि जिस मार्ग पर चल कर साधक उस परमात्मा तक पहुँचता है हमे भी उसी मार्ग पर चलना चाहिए। ऐसे भक्तो के दर्शन मात्र से मन पवित्र हो जाता है और मन उस परमात्मा की ओर आकर्षित होने लगता है।इसी लिये कबीर जी ऐसे लोगों के रास्ते पर चलने के लिये कह रहे हैं।
2 टिप्पणियाँ:
कबीर के श्लोक आज भी प्रासंगिक हैं!
सुन्दर व्याख्या। आभार।
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