कबीर कागद की उबरी,मसु के करम कपाट॥
पाहन बोरी पिरथमी, पंडित पाड़ी बाट॥१३७॥
पाहन बोरी पिरथमी, पंडित पाड़ी बाट॥१३७॥
कबीर जी कहते हैं कि पंडितों ने लोगों के लिये कागज का कैदखाना और स्याही के दरवाजे शास्त्रो द्वारा बना डाले हैं और लोगों को पत्थरों के पीछे लगा कर डुबा दिया है। वे सब इस लिये कर रहे हैं ताकि इन कर्म-कांडो के कारण उन्हें दान-दक्षिणा आदि मिलती रहे।
कबीर जी कहना चाह्ते है कि पंडितो ने लोगो को कर्म-कांडो के जाल मे उलझा रखा है। शास्त्रो-वेदो पर अमल करने की बजाय वे उसे रटवा रहे हैं,जिस से कोई लाभ होने वाला नही है।इस तरह पत्थरों की मूर्तियों की पूजा करने की सीख देकर ये पंडित धरती के लोगो को डुबा रहे हैं।ऐसे कर्म कांडो मे उलझा कर वे मात्र अपनी दुकान चलाने मे ही लगे हुए है।
कबीर कालि करंता अबहि करु,अब करता सुइ ताल॥
पाछै कछु न होइगा,जऊ सिर परि आवै कालु॥१३८॥
पाछै कछु न होइगा,जऊ सिर परि आवै कालु॥१३८॥
कबीर जी कहते हैं कि परमात्मा का सिमरन करने मे आलस नही करना चाहिए । जो काम कल करना है उसे अभी ही कर ले। यदि अभी करना है तो इसी समय करना शुरू कर दे। कही ऐसा ना हो कि इस काम को तू कल पर टालता जाये। यदि ऐसा किया तो जब तेरा अंत समय आयेगा उस समय तुझे पछतावा होगा।
कबीर जी हमे समझाना चाह्ते है कि परमात्मा का ध्यान या सिमरन करने मे हमें जरा भी आलस नही करना चाहिए। इसे टालना नासमझी ही होगी। क्योकि जीव का लक्ष्य ही परमात्मा के साथ एकाकार होना है। तभी उसे शांती प्राप्त हो सकती है। अन्यथा हमे अपने जीवन के अंत काल मे सिवा पछताने के कुछ नही रह जायेगा।
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