कबीर साकत ते सूकर भला राखै आछा गाउ॥
उहु साकतु बपुरा मरि गऐआ कोइ न लै है नाउ॥१४३॥
कबीर जी कहते हैं कि ऐसे साकत से अर्थात ऐसा मनुष्य जो परमात्मा से सदा दूर रहता है उस से सूअर अच्छा है जो गाँव की गन्दगी को खा कर कर गाँव को साफ करता रहता है।कबीर जी कहते है कि साकत की मौत के बाद कोई भी उसे याद नही करता।
कबीर जी हमे समझाने के लिये साकत व सूअर की तुलना कर रहे हैं। वे कहना चाहते हैं कि साकत अर्थात जो परमात्मा को भूला हुआ है ऐसा जीव जो भी करता है वह अंतत: दूसरों को दुख ही पहुँचाता है।इसी लिये कबीर जी कहते हैं कि एक तरह से साकत तो गंदगी फैलाने का काम करता है और दूसरी ओर सूअर गंदगी साफ करने का काम करता है ।इसी लिये कबीर जी कहते हैं कि साकत से सूअर भला है....अच्छा है और वही दूसरी ओर वे यह भी कहते हैं कि इसी लिये बुरे इन्सानों अर्थात साकत को कोई याद नही रखता।
कबीर कऊडी कऊडी जोरि कै जोरे लाख करोरि॥
चलती बार न कछु मिलिउ लई लंगोटी तोरि॥१४४॥
कबीर जी इस श्लोक मे साकत मनुष्य के कर्म की चर्चा करते हुए कहते है कि वह हमेशा कोडी कोडी का संग्रह करने की जुगाड़ मे ही अपना जीवन बिताता है। इस तरह वह लाखॊ करोड़ो की संपत्ति एकत्र कर लेता है। लेकिन वह यह बात भूला रहता है कि अंत समय मे मे कुछ भी साथ नही जाना।अंत समय मे शरिर की लंगोटी को भी छीन लिआ जाता है।
कबीर जी हमे संसार के प्रति हमारी आसक्ती से हमे बचाने के लिये संसारिक मोह की व्यर्थता को समझाना चाहते हैं।वे ऐसे लोगों के लिये कह रहे हैं जो लोग जरूरत से अधिक संग्रह करने मे लग जाते हैं और इसी मे लगे रहते हैं कि हमारे पास अधिक से अधिक धन -संपत्ति हो जाये। ऐसे मे वे उस परमात्मा को ही भूल जाते हैं।जबकि परमात्मा की भक्ति के सिवा कुछ भी हमारे साथ नही जाता।
उहु साकतु बपुरा मरि गऐआ कोइ न लै है नाउ॥१४३॥
कबीर जी कहते हैं कि ऐसे साकत से अर्थात ऐसा मनुष्य जो परमात्मा से सदा दूर रहता है उस से सूअर अच्छा है जो गाँव की गन्दगी को खा कर कर गाँव को साफ करता रहता है।कबीर जी कहते है कि साकत की मौत के बाद कोई भी उसे याद नही करता।
कबीर जी हमे समझाने के लिये साकत व सूअर की तुलना कर रहे हैं। वे कहना चाहते हैं कि साकत अर्थात जो परमात्मा को भूला हुआ है ऐसा जीव जो भी करता है वह अंतत: दूसरों को दुख ही पहुँचाता है।इसी लिये कबीर जी कहते हैं कि एक तरह से साकत तो गंदगी फैलाने का काम करता है और दूसरी ओर सूअर गंदगी साफ करने का काम करता है ।इसी लिये कबीर जी कहते हैं कि साकत से सूअर भला है....अच्छा है और वही दूसरी ओर वे यह भी कहते हैं कि इसी लिये बुरे इन्सानों अर्थात साकत को कोई याद नही रखता।
कबीर कऊडी कऊडी जोरि कै जोरे लाख करोरि॥
चलती बार न कछु मिलिउ लई लंगोटी तोरि॥१४४॥
कबीर जी इस श्लोक मे साकत मनुष्य के कर्म की चर्चा करते हुए कहते है कि वह हमेशा कोडी कोडी का संग्रह करने की जुगाड़ मे ही अपना जीवन बिताता है। इस तरह वह लाखॊ करोड़ो की संपत्ति एकत्र कर लेता है। लेकिन वह यह बात भूला रहता है कि अंत समय मे मे कुछ भी साथ नही जाना।अंत समय मे शरिर की लंगोटी को भी छीन लिआ जाता है।
कबीर जी हमे संसार के प्रति हमारी आसक्ती से हमे बचाने के लिये संसारिक मोह की व्यर्थता को समझाना चाहते हैं।वे ऐसे लोगों के लिये कह रहे हैं जो लोग जरूरत से अधिक संग्रह करने मे लग जाते हैं और इसी मे लगे रहते हैं कि हमारे पास अधिक से अधिक धन -संपत्ति हो जाये। ऐसे मे वे उस परमात्मा को ही भूल जाते हैं।जबकि परमात्मा की भक्ति के सिवा कुछ भी हमारे साथ नही जाता।
7 टिप्पणियाँ:
dhnya hai kabeer ji ke vachan.....
zindgi ko sahi disha dene me itne asarkaarak sootra bahut kam milte hain
aapka aabhar !
कबीर वाणी प्रेरणा से भर जाती है, आभार !
नमन है उस संतों को जिन्होंने इतने सूत्र जीवन के दिये मगर हम माने तब ना। बधाई।
bahut sunder likha hai kabir das ji ne .....aapko is prastuti par saadhuwaad
कबीर के दोहे अर्थ सहित पढवाने हेतु धन्यवाद
फिर भी दुनियां जोड़ती है... जबकि लंगोटी भी छीन लेगी दुनियां।
kabi rji apako me slam karta hu
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपनें विचार भी बताएं।