कबीर पाटन ते ऊजरु भला , राम भगत जिह ठाइ॥
राम सनेही बाहरा , जम पुरु मेरे भांइ॥१५१॥
कबीर जी कहते हैं कि ऐसी बस्ती से उजाड़ अच्छा है जहाँ राम के भगत रहते हैं।जिस जगह पर परमात्मा के भगत नही रहते हैं, मुझे तो वह स्थान नरक लगता है।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि जिस जगह पर परमात्मा के भगत रहते हैं ऐसा स्थान ही अच्छा है। किसी स्थान को मात्र सुख सुविधायें ही रहने योग्य नही बनाती।बल्कि मन के भीतर की शांती के बिना कितनी ही अच्छी व बढ़िया जगह हो , वह बेकार व नीरस ही लगती है।परमात्मा की भक्ति हर जगह को अपने ही रंग मे रंग देती है।जिस जगह पर परमात्मा की भक्ति नही होती , कबीर जी कहते हैम कि वह स्थान नरक के समान ही होता है।
कबीर गंग जमुन के अंतरे , सहज सुंन के घाट॥
तहा कबीरै मटु कीआ , खोजत मुनि जन बाट॥१५२॥
कबीर जी कहते हैं कि हमारे भीतर जो गंगा यमुना हैं इसी के भीतर वह स्थान है जहाँ सहज शांती का घाट है। हमें उसी स्थान पर ठहरना है। क्योकि मुनि जन भी इसी स्थान की खोज मे लगे रहते हैं।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि हमारे भीतर ही वह स्थान है जहाँ गंगा जमुना की तरह विचारों की धारा बहती रहती है, इन्हीं विचारों का मंथन करते हुए ,हमें उस विचार को खोजना है जहाँ मन का ठहराव हो जाता है। वही वह स्थान है जहाँ मन मे कोई विचार नही उठते। उसी को कबीर जी सुंन का घाट कह रहे हैं। उसी मन की अवस्था मे रहते हुए हम परमात्मा की भक्ति को प्राप्त होते हैं कबीर जी हमे समझाते हुए कहते हैं कि मुनि जन इसी अवस्था मे ठहरने के लिये अपने भीतर इस स्थान को खोजने के यत्न मे लगे रहते हैं।
राम सनेही बाहरा , जम पुरु मेरे भांइ॥१५१॥
कबीर जी कहते हैं कि ऐसी बस्ती से उजाड़ अच्छा है जहाँ राम के भगत रहते हैं।जिस जगह पर परमात्मा के भगत नही रहते हैं, मुझे तो वह स्थान नरक लगता है।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि जिस जगह पर परमात्मा के भगत रहते हैं ऐसा स्थान ही अच्छा है। किसी स्थान को मात्र सुख सुविधायें ही रहने योग्य नही बनाती।बल्कि मन के भीतर की शांती के बिना कितनी ही अच्छी व बढ़िया जगह हो , वह बेकार व नीरस ही लगती है।परमात्मा की भक्ति हर जगह को अपने ही रंग मे रंग देती है।जिस जगह पर परमात्मा की भक्ति नही होती , कबीर जी कहते हैम कि वह स्थान नरक के समान ही होता है।
कबीर गंग जमुन के अंतरे , सहज सुंन के घाट॥
तहा कबीरै मटु कीआ , खोजत मुनि जन बाट॥१५२॥
कबीर जी कहते हैं कि हमारे भीतर जो गंगा यमुना हैं इसी के भीतर वह स्थान है जहाँ सहज शांती का घाट है। हमें उसी स्थान पर ठहरना है। क्योकि मुनि जन भी इसी स्थान की खोज मे लगे रहते हैं।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि हमारे भीतर ही वह स्थान है जहाँ गंगा जमुना की तरह विचारों की धारा बहती रहती है, इन्हीं विचारों का मंथन करते हुए ,हमें उस विचार को खोजना है जहाँ मन का ठहराव हो जाता है। वही वह स्थान है जहाँ मन मे कोई विचार नही उठते। उसी को कबीर जी सुंन का घाट कह रहे हैं। उसी मन की अवस्था मे रहते हुए हम परमात्मा की भक्ति को प्राप्त होते हैं कबीर जी हमे समझाते हुए कहते हैं कि मुनि जन इसी अवस्था मे ठहरने के लिये अपने भीतर इस स्थान को खोजने के यत्न मे लगे रहते हैं।
2 टिप्पणियाँ:
sunder prayas ke liye aabhar .
एक बेहतरीन विश्लेषण / व्याख्या कबीर साहब के विचारों का ...आपका प्रयास सराहनीय है
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपनें विचार भी बताएं।