बुधवार, 10 अगस्त 2011

कबीर के श्लोक - ८१

कबीर थूनी पाई थिति भई ,सतिगुरु बंधी धीर॥
कबीर हीरा बनजिआ, मान सरोवर तीर॥१६१॥

कबीर जी कहते हैं कि जिन भक्तों को परमात्मा के शब्दों का सहारा मिल जाता है, वे भक्त भटकने से बच जाते हैं।परमात्मा की कृपा से उस के भीतर धीरज आ जाता है। ऐसा जीव अपने आप को परमात्मा के समर्पित कर के परमात्मा की कृपा को प्राप्त कर लेता है।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि यदि कोई भटकने से बचना चाहता है तो उसे परमात्मा का सहारा लेना पड़ेगा।तभी उस के भीतर ठहराव आ सकेगा।लेकिन इस ठहराव को प्राप्त करने के लिये परमात्मा की कृपा को सहजता से स्वीकारना होगा।तभी परमात्मा के साथ एकाकार हुआ जा सकता है और उस परमात्मा की कृपा पाई जा सकती है।

कबीर हरि हीरा जन जौहरी,ले कै मांडै हाट॥
जब ही पाईअहि पारखू,तब हीरन की साट॥१६२॥

कबीर जी आगे कहते हैं कि परमात्मा का नाम ही हीरा है और परमात्मा का भक्त उसका जौहरी है। जो इसे अपने ह्र्दय रूपी बाजार मे सजाता है। जब कोई इस हीरे की परख करने वाला बन जाता है तो वह इस हीरे के महत्व को समझ पाता है।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि जो संसारिक भोग विलासों की व्यर्तता को परखना जानते हैं ऐसे जौहरी ही उस परमात्मा रूपी हीरे को पहचान पाते हैं और उसे अपने ह्र्दय मे सजाते हैं। वैसे भी हीरे को जौहरी ही पहचान पाता है जबकि आम जन उसे मात्र पत्थर ही मान बैठते हैं।इस लिए जबतक हीरे रूपी उस परमात्मा की पहचान करने वाली बुद्धि हम मे नही होगी, तब तक हम हीरे के महत्व को नही समझ सकते।

1 टिप्पणियाँ:

Anita ने कहा…

परमात्मा रूपी हीरे की परख केवल सद्गुरु ही करते हैं...

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