बुधवार, 14 सितंबर 2011

कबीर के श्लोक - ८४

कबीर डुबहिगो रे बपुरे,बहु लोगन की कानि॥
पारोसी के जो हुआ,तू अपने भीजानु॥१६७॥

कबीर जी कहते हैं कि जो लोग लोक-लाज में फँस कर अपने आप को भक्ति से वंचित कर लेते हैं ऐसे लोग अक्सर लोक-लाज मे ही डूब जाते हैं ।इस तरह की आत्मिक मौत मर जाने से जीवन ऐसे ही व्यर्थ हो जाता है जैसा कि हमे अपने आस-पास अक्सर देखने को मिलता रहता है।इस रास्ते पर चलकर तो एक दिन हम भी ऐसी ही मौत मर जायेगें।

कबीर जी समझाना चाहते हैं कि हम लोका-चार को निभाने की खातिर दिखावा करने में ही पड़े रहते हैं और ऐसे ही अपना जीवन व्यर्थ गँवा देते हैं।जैसा कि हमे अपने आस-पास अक्सर ऐसा देखने को मिलता रहता है।इस लिये हमे दूसरों की परवाह ना करके उस सही रास्ते को चुन लेना चाहिए जिसके लिये हमें यह जीवन मिला है।

कबीर भली मधूकरी, नाना बिधि के नाजु॥
दावा काहू को नही बडा देसु बड काजु॥१६८॥

कबीर जी कहते है कि लोकाचार की खातिर जमीन जयदातों को इक्ठठा करने से बेहतर है कि भिक्षा पर गुजर बसर कर ली जाये। ऐसा करने से उसे किसी पर दावा करने का अंहकार नही सताता।ऐसे अंहकार रहित इंसान को तो सभी कुछ वैसे ही अपना लगने लगता है।

कबीर जी समझाना चाहते हैं कि परमात्मा कि मेहर से जो भी मिले उसी को अपना भाग्य समझना चाहिए और परमात्मा का धन्यवाद करना चाहिए इस तरह का भाव आने पर मन में किसी प्रकार का मन मे संशय नही रहता।

2 टिप्पणियाँ:

Anita ने कहा…

दिखावे के चक्कर में फंसकर मानव इस जन्म को भी खो देता है और अगले जन्म को भी ! कबीर की वाणी सच्ची वाणी !

बेनामी ने कहा…

कबीर जी के दोहे तो जानती थे - श्लोक पहली बार सुना!!
धन्यवाद

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