कबीर गुरु लागा तब जानीऐ मिटे मोह तन ताप॥
हरख सोग दाझै नही तब हरि आपहि आप॥१८९॥
कबीर जी कहते हैं कि गुरु मिल गया है यह तभी जाना जा सकता है जब जीव मोह और शरीरिक तापों से मुक्त हो गया हो।गुरु की कृपा होने पर खुशी और गमी जीव को प्रभावित नही कर पाते।ऐसे में जीव प्रभु कृपा का अनुभव भी करने लगता है।
कबीर जी वास्तविक सच्चे गुरू की पहचान को बताना चाहते हैं। सहज रूप में हम अक्सर गुरू तो धारण कर लेते हैं लेकिन उस से हमारे जीवन में जरा-सा भी परिवर्तन या आनंद प्राप्त नही होता। ऐसे गुरू धारण करने से कोई लाभ नही होता। यदि गुरू धारण करने के बाद जीव मोह और खुशी गमीं से ऊपर उठ जाता है . उस का मन शांत हो जाता है उसकी तृषणा मिट जाती है तभी जानना चाहिए कि गुरू मिल गया।अर्थात ऐसा गुरू ही धारण करने योग्य होता है।
कबीर राम कहन महि भेदु है ता महि एक बिचार।॥
सोई राम सभै कहहि सोई कोतकहार॥१९०॥
कबीर जी आगे कहते हैं कि परमात्मा के नाम राम में भी एक भेद है क्योकि सभी उस राम का विचार अपने ढंग से करते हैं। कबीर जी आगे प्रश्न पर विचार करने के लिये कहते हुए कहते हैं कि क्या जिस राम को सभी जपते हैं क्या वह कोई चमत्कारी पुरूष है ?
कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि परमात्मा का नाम किसी व्यक्ति विशेष का भी हो सकता है और प्राकृति के संपूर्ण अस्तित्व का भी हो सकता है। यही वह भेद है कि हम किस राम की आराधना करते हैं । जिसे समझनें के लिये वे हम से कह रहे हैं।
हरख सोग दाझै नही तब हरि आपहि आप॥१८९॥
कबीर जी कहते हैं कि गुरु मिल गया है यह तभी जाना जा सकता है जब जीव मोह और शरीरिक तापों से मुक्त हो गया हो।गुरु की कृपा होने पर खुशी और गमी जीव को प्रभावित नही कर पाते।ऐसे में जीव प्रभु कृपा का अनुभव भी करने लगता है।
कबीर जी वास्तविक सच्चे गुरू की पहचान को बताना चाहते हैं। सहज रूप में हम अक्सर गुरू तो धारण कर लेते हैं लेकिन उस से हमारे जीवन में जरा-सा भी परिवर्तन या आनंद प्राप्त नही होता। ऐसे गुरू धारण करने से कोई लाभ नही होता। यदि गुरू धारण करने के बाद जीव मोह और खुशी गमीं से ऊपर उठ जाता है . उस का मन शांत हो जाता है उसकी तृषणा मिट जाती है तभी जानना चाहिए कि गुरू मिल गया।अर्थात ऐसा गुरू ही धारण करने योग्य होता है।
कबीर राम कहन महि भेदु है ता महि एक बिचार।॥
सोई राम सभै कहहि सोई कोतकहार॥१९०॥
कबीर जी आगे कहते हैं कि परमात्मा के नाम राम में भी एक भेद है क्योकि सभी उस राम का विचार अपने ढंग से करते हैं। कबीर जी आगे प्रश्न पर विचार करने के लिये कहते हुए कहते हैं कि क्या जिस राम को सभी जपते हैं क्या वह कोई चमत्कारी पुरूष है ?
कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि परमात्मा का नाम किसी व्यक्ति विशेष का भी हो सकता है और प्राकृति के संपूर्ण अस्तित्व का भी हो सकता है। यही वह भेद है कि हम किस राम की आराधना करते हैं । जिसे समझनें के लिये वे हम से कह रहे हैं।
3 टिप्पणियाँ:
आभार!
बहुत ही सार्थक
गुरु महिमा व राम नाम का भेद बताती अनमोल कबीर वाणी!
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