कबीर जो मै चितवऊ ना करै,किआ मेरे चितवे होइ॥
अपना चितविआ हरि करै, जो मेरे चिति न होइ॥२१९॥
कबीर जी कह्ते हैं कि जिस बारे मे मैं सोचता रहता हूँ वह बात तो परमात्मा कभी पूरी करता ही नही।फिर मेरे सोचने से क्या होगा।क्योकि परमात्मा तो वही करता है जो वह करना चाहता है और जो वह परमात्मा करता है वह मेरे सोचनें मे कभी आता ही नही।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि जीव हमेशा ऐसी बाते सोचता जो उसे माया मोह मे और अधिक फँसाती जाती है।इस लिये हमारा चिंतन हमें हमेशा पतन के रास्ते पर ही ले जाता है।इस लिये मेरे सोचने से कोई लाभ होने वाला नही है। जबकि परमात्मा जो भी हमारे बारे मे करता है या सोचता है वह हमेशा हमारे हित मे ही होता है।भले ही वह कुछ भी कर या करवा रहा हो हमसे। इसी लिये हम मोह माया में फँसे होने के कारण कभी वह नही सोच सकते जो परमत्मा हमारे बारे मे सोचता या करता है।
महला ३॥ चिंता भी आपि कराइसी,अचिंतु भि आपे देइ॥
कबीर जी कह्ते हैं कि जिस बारे मे मैं सोचता रहता हूँ वह बात तो परमात्मा कभी पूरी करता ही नही।फिर मेरे सोचने से क्या होगा।क्योकि परमात्मा तो वही करता है जो वह करना चाहता है और जो वह परमात्मा करता है वह मेरे सोचनें मे कभी आता ही नही।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि जीव हमेशा ऐसी बाते सोचता जो उसे माया मोह मे और अधिक फँसाती जाती है।इस लिये हमारा चिंतन हमें हमेशा पतन के रास्ते पर ही ले जाता है।इस लिये मेरे सोचने से कोई लाभ होने वाला नही है। जबकि परमात्मा जो भी हमारे बारे मे करता है या सोचता है वह हमेशा हमारे हित मे ही होता है।भले ही वह कुछ भी कर या करवा रहा हो हमसे। इसी लिये हम मोह माया में फँसे होने के कारण कभी वह नही सोच सकते जो परमत्मा हमारे बारे मे सोचता या करता है।
महला ३॥ चिंता भी आपि कराइसी,अचिंतु भि आपे देइ॥
नानक सो सालाहीऐ,जि सभना सार करेइ॥२२०॥
इस श्लोक में गुरु जी कबीर जी की बात को आगे बढाते हुए कहते हैं कि वास्तव मे तो परमात्मा ही जीवों के मन में दुनिया की फिकर-चिंता को पैदा करता है और वह अवस्था भी परमात्मा ही प्रदान करता है जब जीव संभल जाता है।इसलिये हमे हमेशा उस परमात्मा का ही गुणगान करना चाहिए,हमेशा उसी का ध्यान करना चाहिए। जो हमेशा सब की चिंता करता रहता है और सदा वही करता है जो हमारे हित मे होता है।
गुरु जी कहना चाहते हैं कि सब कुछ परमात्मा ही कर रहा है वही हमे भटकाता है और वही हमे रास्ता दिखाता है।इस लिये सदा उसी का ध्यान करना चाहिए।जब हम उसका ध्यान करेगे तो हमारी निकटता उस परमात्मा के साथ हो जायेगी।जिस से हम भी वही चिंतन करने लगेगें जो परमात्मा हमारे लिये करता है। फिर हम भी हर प्रकार की चिंता से मुक्त होकर चिंतारहित जीवन जी सकेगें।
इस श्लोक में गुरु जी कबीर जी की बात को आगे बढाते हुए कहते हैं कि वास्तव मे तो परमात्मा ही जीवों के मन में दुनिया की फिकर-चिंता को पैदा करता है और वह अवस्था भी परमात्मा ही प्रदान करता है जब जीव संभल जाता है।इसलिये हमे हमेशा उस परमात्मा का ही गुणगान करना चाहिए,हमेशा उसी का ध्यान करना चाहिए। जो हमेशा सब की चिंता करता रहता है और सदा वही करता है जो हमारे हित मे होता है।
गुरु जी कहना चाहते हैं कि सब कुछ परमात्मा ही कर रहा है वही हमे भटकाता है और वही हमे रास्ता दिखाता है।इस लिये सदा उसी का ध्यान करना चाहिए।जब हम उसका ध्यान करेगे तो हमारी निकटता उस परमात्मा के साथ हो जायेगी।जिस से हम भी वही चिंतन करने लगेगें जो परमात्मा हमारे लिये करता है। फिर हम भी हर प्रकार की चिंता से मुक्त होकर चिंतारहित जीवन जी सकेगें।
4 टिप्पणियाँ:
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल २१/८/१२ को http://charchamanch.blogspot.in/ पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है
बाली साहब आपने कबीर के पदों की व्याख्या करके बड़ा उपकार किया है ,कबीर की साखियाँ कई और चिठ्ठों पर भी प्रकाशित हैं लेकिन वहां व्याख्या पढने को नहीं मिलती हमारे बार बार आग्रह करने पर भी ऐसा नहीं हुआ .आपकी इतनी सरल सहज मनोहर सर्व -ग्राही व्याख्या को पढके मन गद गद हो गया .आभार आपका . कृपया यहाँ भी पधारें -
मंगलवार, 21 अगस्त 2012
सशक्त (तगड़ा )और तंदरुस्त परिवार रहिए
सशक्त (तगड़ा )और तंदरुस्त परिवार रहिए
KABIR KE BHAJAN POST KARE.
Ye jo aap gyan ka parkash fela rahe h wah kafi kabile tarif ha
this information is very good i like it very much i have some computer related data
computer and internet
database management system
Python tutorial
c sharp programming
python introduction
python data type
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपनें विचार भी बताएं।