कबीर केसो केसो कूकीऐ, न सोईऐ असार॥
राति दिवस के कूकने,कबहू को सुनै पुकार॥२२३॥
कबीर जी कहते हैं कि उस परमात्मा केशव को सदा पुकारते रहना चाहिए और कभी लापरवाही नही करनी चाहिए।यदि जीव इस तरह रात -दिन उस परमात्मा को पुकारता रहेगा तो एक न एक दिन परमात्मा हमारी पुकार जरूर सुन ही लेगा।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि यदि संसारिक मोह माया से बचना है तो उस परमात्मा का ध्यान निरन्तर करते रहना चाहिए।निरन्तर परमात्मा का ध्यान करने से जीव उस परमात्मा के साथ एकाकार होने की ओर बढ़ने लगता है और एक दिन ऐसा भी आता है जब जीव परमात्मा के साथ एकाकार हो जाता है।
कबीर काईआ कजली बनु भईआ,मनु कुचरु मयमंतु॥
कबीर जी कहते हैं कि उस परमात्मा केशव को सदा पुकारते रहना चाहिए और कभी लापरवाही नही करनी चाहिए।यदि जीव इस तरह रात -दिन उस परमात्मा को पुकारता रहेगा तो एक न एक दिन परमात्मा हमारी पुकार जरूर सुन ही लेगा।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि यदि संसारिक मोह माया से बचना है तो उस परमात्मा का ध्यान निरन्तर करते रहना चाहिए।निरन्तर परमात्मा का ध्यान करने से जीव उस परमात्मा के साथ एकाकार होने की ओर बढ़ने लगता है और एक दिन ऐसा भी आता है जब जीव परमात्मा के साथ एकाकार हो जाता है।
कबीर काईआ कजली बनु भईआ,मनु कुचरु मयमंतु॥
अंकसु ग्यानु रतनु है,खेवटु बिरला संतु॥२२४॥
कबीर जी आगे कहते हैं कि जब जीव परमात्मा के नाम से दूर होता है तो वह घने जगंल की तरह हो जाता है,जिस में मन रूपी हाथी मस्त होकर विचरण करने लगता है।लेकिन यदि किसी के पास ज्ञान रूपी अकुंश गुरु कृपा से लग जाये, खेवट के समान तो कोई विरला संत इसे अपने नियंत्रण कर सकता है।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि हमारा मन एक मस्त हाथी के समान है जो विषय-विकारों के कारण मस्त हाथी की तरह हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाता है।लेकिन यदि ज्ञान रूपी अकुंश अर्थात उस परमात्मा का ध्यान हमे गुरु कृपा से प्राप्त हो जाये तो अपने हाथी रूपी इस मन को अपनी मर्जी से चलाया जा सकता है।क्योकि जीव तो सदा मन के पीछे भागता रहता है और विषय वासनाओं के जाल मे फँसाता रहता है।इसी से बचने के लिये कबीर जी हमें उपाय बता रहे हैं।
कबीर जी आगे कहते हैं कि जब जीव परमात्मा के नाम से दूर होता है तो वह घने जगंल की तरह हो जाता है,जिस में मन रूपी हाथी मस्त होकर विचरण करने लगता है।लेकिन यदि किसी के पास ज्ञान रूपी अकुंश गुरु कृपा से लग जाये, खेवट के समान तो कोई विरला संत इसे अपने नियंत्रण कर सकता है।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि हमारा मन एक मस्त हाथी के समान है जो विषय-विकारों के कारण मस्त हाथी की तरह हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाता है।लेकिन यदि ज्ञान रूपी अकुंश अर्थात उस परमात्मा का ध्यान हमे गुरु कृपा से प्राप्त हो जाये तो अपने हाथी रूपी इस मन को अपनी मर्जी से चलाया जा सकता है।क्योकि जीव तो सदा मन के पीछे भागता रहता है और विषय वासनाओं के जाल मे फँसाता रहता है।इसी से बचने के लिये कबीर जी हमें उपाय बता रहे हैं।
2 टिप्पणियाँ:
कबीर वाणी अनुपम है..आभार !
Ye jo aap gyan ka parkash fela rahe h wah kafi kabile tarif ha
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