शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

कबीर के श्लोक - ११५


कबीर ऐसा बीजु बोइ,बारह मास फलंत॥
शीतल छाइआ गहिर फल,पंखी केल करंत॥२२९॥

कबीर जी कहते हैं  कि यदि बीज बौना है तो ऐसा बीज बोवो जिस से उगने वाला वृक्ष जो पूरे बारह महीने फल देता रहे और जिससे ठंडी छाँव व वैराग्य पैदा करना वाला फल प्राप्त हो। जिसपर पंछी आनंद पूर्वक रह सके।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि परमात्मा का नाम ही एक ऐसा बीज है जो सदा सुख व आनंद प्रदान करने वाला है।जिस को अपने ह्र्दय मे बसा पर शीतलता व अडोलता को पाया जा सकता है। जिसके ह्र्दय में यह नाम रूपी बीज बस जाता है फिर वह जो भी काम करता है उसे आनंद ही प्राप्त होता है,क्योकि परमात्मा के साथ एकाकार होने के बाद जीव जो भी कर्म करता है उसमे परमात्मा की मर्जी भी शामिल होती है।

कबीर दाता तरवरु दया फलु,उपकारी जीवंत॥

पंखी चले दिसावरी,बिरखा सुफल फलंत॥२३०॥

कबीर जी कहते हैं कि परमात्मा का भक्त एक ऐसा वृक्ष है जिस में सदा दया रूपी फल ही लगता है।ऐसे भक्त सदा दूसरों की भलाई में ही जीवन-भर लगे रहते है।परमात्मा के भक्तों का लक्ष्य ही उपकार करना है।लेकिन संसारी जीव सदा संसारिक धँधों मे ही लगा रहता है और परमात्मा का भक्त सदा यही सीख देता रहता है कि उस घट घट वासी परमात्मा से प्रेम करो जिस से ह्र्दय में दया का निवास हो सके।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि जो साधक परमात्मा के साथ एकाकार हो चुके हैं वे दूसरों के प्रति सदा दया ही दिखाते है और सदा ऐसी कोशिश करते रहते हैं कि सभी उस घट घट वासी परमात्मा की शरण मे जायें। जिस से उनके भीतर दया और प्रेम पैदा हो सके।

2 टिप्पणियाँ:

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

जो साधक परमात्मा के साथ एकाकार हो चुके है वो सदा दूसरों के प्रति दया भाव ही रखते हैं, प्रेरक प्रस्तुति .......

Anita ने कहा…

बहुत सुंदर कबीर वाणी..आभार !

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