मोको कहाँ ढूँढों बंदें ,मै तो तेरे पास में।
ना मैं बकरी ना मैं भेड़ी,ना मैं छुरी गंडास में॥
नही खाल नहीं पोछ में,ना हड्डी ना मास में।
ना मै देवल ना मैं मस्जिद,ना काबे कैलास में॥
ना तो कौनों क्रिया करम में,नहीं जोग बैराग में।
खोजी होए तो तुरतै मिलिहों,पल-भर की तलास में॥
मैं तो रहौं सहर के बाहर,मेरी पुरी मवास में।
कहैं कबीर सुनों भाई साधों,सब साँसों की साँस मे॥
2 टिप्पणियाँ:
बहुत बढिया रचना ॥
बाली जी बहुत सार्थक और सुंदर रचना पढवाई ।
धन्यवाद ।
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