फरीदा राती वडिआं,धुखि धुखि उठ्नि पास॥
धिगु तिना दा जीविआ , जिना विडाणी आस॥२१॥
फरीदा जे मै होदा वारिआ,तिना आइणिआं॥
हेड़ा जलै मजीठ जिउ उपरि अंगारा॥२२॥
फरीदा लोड़ै दाख बिजउरिआ,किकरि बीजै जटु॥
हंढै ऊंन कताइदा,पैदा लोड़ै पटु॥२३॥
फरीदा गलीए चिकड़ु,दूर घरु,ना्लि पिआरे नेहु॥
चला ता भिजै कांबली, रहा त तुटे नेहु॥२४॥
फरीद जी कहते हैं कि रात बहुत बड़ी है।जिस के कारण शरीर में जगह जगह दर्द होने लगा है और उन लोगो का जीवन तो बिल्कुल बेकार है जो दुसरों के भौतिक पदार्थो के प्रति आसक्त हैं। अर्थात फरीद जी कह रहे हैं कि दुख के कारण या किसी इच्छा के कारण राते बहुत लम्बी हो जाती है।क्यों कि जब भी हम किसी आस में जीते हैं तो हमें बैचेनी महसूस होनें लगती है।जिस कारण सरीर और मन दोनों परेशान होनें लगते हैं।जब हम पराई संम्पदा को पानें का लोभ करने लगते हैं तो यह और भी बुरा होता है।वह कहते है कि ऐसा जीवन धिक्कारनें लायक है जो उस प्रभु के बजाय दुसरी संसारिक वस्तुओं के प्रति आसक्त हो जाता है।
इसी तरह यदि हम अपने घर आए मित्रों से कुछ छिपाते हैं तो जिस प्रकार मास अंगारों पर जलता है वैसा ही हम को भीतर जलना पड़ता है।अर्थात वह जो परमात्मा रूपी हमारा मित्र है।यदि हम उसके सामने अपनी पूरी बात नही कहते अर्थात दिखावा करते हैं तो इस से हम ही लाभ से वंचित रहते हैं।जब तक हम उस के समक्ष पूरी तरह समर्पित नही होगें,हमारे मन को कभी शांती नही मिल सकती।
फरीद जी कहते हैं कि जिस तरह कोई कीकर को बो कर उस से अंगूर का फल प्राप्त नही कर सकता उसी तरह ऊंन की जीवन भर का्ताई करवानें वाला अगर यह सोचे कि वह उं की कताई करके रेशम पहन सकता है तो यह नासमझी ही होगी।अर्थात फरीद जी कहते है कि बिना बंदगी किए सुख की आस करनें वाला ठीक उसी व्यक्ति की तरह है जो कीकर को बो कर अंगूर और ऊन की कताई करवा कर रेशम पहननें की अभिलाषा मन मे करता है।अर्थात हम तो वही पा सकते हैं जो हम जीवन भर कमाते रहते हैं।बिना प्रभू भक्ति के जीवन में कभी भी सुख नही आ सकता।
आगे फरीद जी कहते हैं कि उस परमात्मा की गली में जाना भी मुश्किल है। क्यों कि गली में बहुत कीचड़ है और उस का घर भी बहुत दूर नजर आ रहा है। लेकिन जो लोग उस के प्यार में जरा से भी पड़ चुके हैं।वह उस को नही छोड़ सकते।उन के लिए उस को छोड़ना दुख का कारण बन जाता है।इस लिए अगर उस से मिलनें को जाता हूँ तो मेरा कंबल भीग जाता है और अगर नही जाऊंगा तो वह मेरा प्यारा रूठ जाएगा।अर्थात परमात्मा को पानें के लिए संसार के मोह माया की ओर से ध्यान हटाना पड़ेगा।क्यूँ कि जीवन में कदम कदम पर हमारा मन संसार की माया के कारण उस ओर खिचने लगता है।जिस कारण वह हम से निरन्तर दूर होता जाता है।जब यह दूरी बड़ती है तो हम विकारों से ग्रस्त हो कर दुखी होनें लगते है।लेकिन यदि हम हिम्मत करके उस प्रभु की ओर बढे तो बेशक यह संसारी रिशते नातों को छोड़ने का दुख महसूस हो, लेकिन हमे उसे नही भूलना चाहिए।
फरीद जी कहते हैं कि रात बहुत बड़ी है।जिस के कारण शरीर में जगह जगह दर्द होने लगा है और उन लोगो का जीवन तो बिल्कुल बेकार है जो दुसरों के भौतिक पदार्थो के प्रति आसक्त हैं। अर्थात फरीद जी कह रहे हैं कि दुख के कारण या किसी इच्छा के कारण राते बहुत लम्बी हो जाती है।क्यों कि जब भी हम किसी आस में जीते हैं तो हमें बैचेनी महसूस होनें लगती है।जिस कारण सरीर और मन दोनों परेशान होनें लगते हैं।जब हम पराई संम्पदा को पानें का लोभ करने लगते हैं तो यह और भी बुरा होता है।वह कहते है कि ऐसा जीवन धिक्कारनें लायक है जो उस प्रभु के बजाय दुसरी संसारिक वस्तुओं के प्रति आसक्त हो जाता है।
इसी तरह यदि हम अपने घर आए मित्रों से कुछ छिपाते हैं तो जिस प्रकार मास अंगारों पर जलता है वैसा ही हम को भीतर जलना पड़ता है।अर्थात वह जो परमात्मा रूपी हमारा मित्र है।यदि हम उसके सामने अपनी पूरी बात नही कहते अर्थात दिखावा करते हैं तो इस से हम ही लाभ से वंचित रहते हैं।जब तक हम उस के समक्ष पूरी तरह समर्पित नही होगें,हमारे मन को कभी शांती नही मिल सकती।
फरीद जी कहते हैं कि जिस तरह कोई कीकर को बो कर उस से अंगूर का फल प्राप्त नही कर सकता उसी तरह ऊंन की जीवन भर का्ताई करवानें वाला अगर यह सोचे कि वह उं की कताई करके रेशम पहन सकता है तो यह नासमझी ही होगी।अर्थात फरीद जी कहते है कि बिना बंदगी किए सुख की आस करनें वाला ठीक उसी व्यक्ति की तरह है जो कीकर को बो कर अंगूर और ऊन की कताई करवा कर रेशम पहननें की अभिलाषा मन मे करता है।अर्थात हम तो वही पा सकते हैं जो हम जीवन भर कमाते रहते हैं।बिना प्रभू भक्ति के जीवन में कभी भी सुख नही आ सकता।
आगे फरीद जी कहते हैं कि उस परमात्मा की गली में जाना भी मुश्किल है। क्यों कि गली में बहुत कीचड़ है और उस का घर भी बहुत दूर नजर आ रहा है। लेकिन जो लोग उस के प्यार में जरा से भी पड़ चुके हैं।वह उस को नही छोड़ सकते।उन के लिए उस को छोड़ना दुख का कारण बन जाता है।इस लिए अगर उस से मिलनें को जाता हूँ तो मेरा कंबल भीग जाता है और अगर नही जाऊंगा तो वह मेरा प्यारा रूठ जाएगा।अर्थात परमात्मा को पानें के लिए संसार के मोह माया की ओर से ध्यान हटाना पड़ेगा।क्यूँ कि जीवन में कदम कदम पर हमारा मन संसार की माया के कारण उस ओर खिचने लगता है।जिस कारण वह हम से निरन्तर दूर होता जाता है।जब यह दूरी बड़ती है तो हम विकारों से ग्रस्त हो कर दुखी होनें लगते है।लेकिन यदि हम हिम्मत करके उस प्रभु की ओर बढे तो बेशक यह संसारी रिशते नातों को छोड़ने का दुख महसूस हो, लेकिन हमे उसे नही भूलना चाहिए।
1 टिप्पणियाँ:
धन्यवाद इतनी सुन्दर बात बताने के लिये
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