साहुरै ढोई ना लहै,पैइए नाही थाउ॥
पिर वातड़ी पुछई,धन सोहागणि नाउ॥३१॥
साहुरै पईए कंत की,कंतु अगंमु अथा्हु॥
नानक सो सोहागणी,जु भावै बेपरवाहु॥३२॥
नाती धोती संबही,सुती आइ निचिंडु॥
फरीदा रही सु बेणी हिंज्ञु दी,गई कथूरी गंधु॥३३॥
फरीद जी कहते है कि जिस स्त्री की बात उस का पति जरा भी नही सुनता।ऐसी औरत भले ही अपना नाम सुहागन रख ले,लेकिन उस का सम्मान ना तो सुसराल में होता है और ना ही मायके में ही होता है।अर्थात फरीद जी कह रहे है कि जिस के अंदर उस परमात्मा की याद नही रहती वह इन्सान लोक और परलोक दोनों मे ही दुखी होते हैं।वह सदा तृष्णा की आग मे जलते रहते हैं।ऐसे लोग दुनिया को दिखानें के लिए भले ही धर्मात्मा का रूप धारण कर ले।वह इस दुनिया को तो धोखा दे सकते हैं लेकिन उस परमात्मा तक कभी नही पहुँच पाता।अर्थात उस की कृपा कभी नही पा सकते।
अगले श्लोक में गुरु नानक देव जी फरीद जी के श्लोक का मर्म समझाते हुए कह रहे हैं कि वह परमात्मा जीवों की पहुँच से बहुत गहरा है।क्यूँ कि जो लोग उसे भूले रहते हैं वह कभी उन पर भी नाराज नही होता।उस के लिए तो सच्ची सुहागन वही है जो उस के इस तरह लापरवाह रहने पर भी उस से प्रेम करती रहती है।ऐसी सुहागन इस लोक में और परलोक में भी उसी की प्यारी बनी रहती है।अर्थात गुरु जी कह रहे है कि जो लोग उस प्रभु से निष्काम भाव से प्रेम करते हैं वही उस परमात्मा की कृपा का अनुभव कर सकते हैं।
फरीद जी कहते है कि जो स्त्री नहा-धो कर उस परमात्मा से मिलन की आस तो कर रही है।लेकिन फिर अपने पति से मिलने की बात को भूल कर सो जाती है।ऐसी सवरी स्त्री श्रंगार किए हुए स्त्री सो जाने के कारण सभी लगाई हुई सुगंधी उड़ जाती है।अर्थात जो लोग उस परमात्मा के मिलन के सारे साधन तो जरूर करते हैं लेकिन भीतर से उन मे प्रभु को मिलनें की तड़प मौजूद नही होती ऐसा प्रभु की भक्ति का दिखावा करने वाले लोग धीरे धीरे भक्ति तो करते नजर आते हैं लेकिन उन की यह भक्ति भकित ना हो कर एक अवगुण बन जाता है।
Intellectualism
16 घंटे पहले
2 टिप्पणियाँ:
फ़रीद जी की बात ही अलग थी, बहुत सुंदर व्याखा की है आप ने धन्यवाद
bahut hi acchha..
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