एहु तनु सभो रतु है,रतु बिनु तंनु न होइ॥
जो सह रते आपणे,तितु तनि लोभु रतु न होइ॥
भै पईऐ तनु खीणु होइ,लोभु रतु विचहु जाइ॥
जिउ बैसंतरि धातु सुधु होइ,तिउ हरि का भऊ ,
दुरमति मैलु गवाइ॥५२॥
फरीदा सोई सरवरू ढूंढि लहु,जिथहु लभी वथु॥
छपणि ढूंढै किआ होवै,चिकणि ढुबै हथु॥५३॥
फरीदा नंढी कंतु न राविउ,वडी थी मुईआसु॥
धनु कूकैंदी गोर में,तै सह मिलीआसु॥५४॥
फरीद जी ने जो पूर्व श्लोकों में रत अर्थात लहु के बारे में कहा है उसी बात को स्पष्ट करने के लिए गुरु ग्रंथ साहिब में गुरु अमरदास जी ने इस श्लोक को यहाँ पर जोड़ा है।कि असल में फरीद जी जिस रत (लहु)की बात कर रहें हैं वह कौन -सा रत है? गुरू जी कहते हैं कि यह सारा शरीर लहु ही है क्योंकि लहु के बिना यह शरीर ,शरीर नही हो सकता।आगे गुरु जी कहते है कि जो अपनें प्रभु में लीन हो जाते हैं असल में उन के भीतर लालच रूपी लहु नही होता।यहाँ पर गुरु जी फरीद जी की बात को ही स्पष्ट कर रहे हैं।आगे कहते है कि ईश्वर के भय से,अर्थात यह कहा जाता है कि ईश्वर सब कुछ देखता है ,इस भय से इस तन का लालच रूपी लहु इस शरीर में नही रह पाता। जिस प्रकार आग धातु को गला कर शुद्ध कर देती है इसी प्रकार प्रभु का आग रूपी भय, हमारे शरीर के दोषों को दूर कर देता है।
अगले श्लोक में फरीद जी कहते हैं कि तुम ऐसे सरोवर की खोज करो जिस सरोवर में डुबकी मार कर तुम कोई कीमती,अमुल्य चीज पा सको।लेकिन यदि तुमनें किसी छप्पड में डुबकी लगाई तो तुम्हारे हाथ सिर्फ कीचड़ ही लगेगा। अर्थात हमें उस परमात्मा को पानें की ही कामना करनी चाहिए,उसी में लीन होनें की ही कामना करनीचाहिए। जिस का कोई मुल्य बयान नही कर सकता।क्यूँकि निहित स्वार्थो के वशीभूत किए गए हमारे सारे प्रयत्न अंतत: बेकार ही साबित होगें।असल मे फरीद जी यहाँ ऐसे लोगों की ओर इशारा कर के हमें बताना चाहते हैं जो लोग रिधि-सिद्धि के पीछे लग कर अपना जीवन गवा देते हैं।वह असल में कीचड़ से ही अपने हाथ सना बैठते हैं।उन के हाथ आखिर में कुछ नही आता।
अगले श्लोक में फरीद जी कहते हैं कि जो स्त्री जवानी के समय अपनें पति के प्रति प्रेम भाव नही रखती वह स्त्री जबजाती है तो उस समय उस की आस भी मर जाती है।फिर वह जब बूढ़ी हो कर मर जाती है तो कब्र में बहुत पछताती है,कि क्यों उस जवानी के समय अपनें पति से उस ने प्रेम न किया।अर्थात फरीद जी हमे समझाने के लिए कहते हैं कि समय रहते ही उस परमात्मा में डूब जाना चाहिए।नही तो समय बीत जानें पर हमारे पास पछताने के सिवा कोई रास्ता नही बचता। तब हम सोचते है कि क्यों हमनें उसे भुलाए रखा।
बालकविता "खरगोश" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
4 घंटे पहले
1 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर.
धन्यवाद
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