फरीदा सिरु पलिआ,दाड़ी पली,मुछां भी पलीआ॥
रे मन गहिले बावले,माणहि किआ रलिआ॥५५॥
फरीदा कोठे धुकणु केतड़ा,पिर नीदड़ी निवारि॥
जो दिह लधे गाणवे,गए विलाड़ि विलाड़ि॥५६॥
फरीदा कोठे मडंप माणीआ,ऐत न लाऐ चितु॥
मिटी पई अतोलवी कोई न होसी मितु॥५७॥
फरीदा मंडप मालु न लाए ,मरग सताणी चिति धरि॥
साई जाई संमालि,तिथे ही तउ वंजणा॥५८॥
फरिद जी कहते है कि यह सिर भी सफेद हो गया है, दाड़ी और मूछें के बाल भी सफेद हो गए हैं।लेकिन हे मेरे मन तू अभी भी दुनियावी मौज मस्ती के प्रति आसक्त है।अर्थात अब बुढापा आ गया है लेकिन यह जो मन है यह अब भी भोग विलासों मे लगा हुआ है।
आगे फरीद जी कह्ते है कि देख इस कोठे के ऊपर तू कितना दोड़ सकता है?अर्थात इन भोग विलासों से तुझे क्या मिलेगा ? सब तो अंतत: नाश हो जाता हैं।इस लिए तू इस मोह रूपी नीद से जाग जा।क्युँकि वैसे ही ईश्वर नें तुझे गिनती के थोड़े से दिन जीनें के लिए दिए हैं।उन्हे भी तू मौज- मस्ती में बिताता जा रहा है।
अगले श्लोक में फरीद जी कहते हैं कि तू इस भोग विलास में धन दौलत पानें की कामनाओं में अपने चित को मत लगा।क्युकि आखिरी समय में इन चीजों से कोई भी तुझे फायदा मिलनें वाला नही है।जब तेरे मरने के बाद तेरे ऊपर मिट्टी डाली जाएगी तो यह चीजें तेरी कोई मदद नही करेगीं।कोई साथ नही देगी।
फरीद जी आगे कहते है कि इन चीजों की जगह तू इस बात का ध्यान कर की आखिर तुझे मौत आनी है और तुझे मौत के बाद वह परमात्मा कहाँ रखे गा।यह तो वह परमात्मा ही जानता है कि तुझे कहा रखे।अर्थात फरीद जी कहना चाहते हैं। दुनिया के सारे भोग विलास और धन दौलत किसी काम के साबित नही होते। मरने के बाद यह तेरे साथ नही जाते।तेरे साथ तो मात्र तेरी प्रभु के प्रति की हुई भक्ति ही साथ जाती है जो तुझे नेक रास्ते पर चलाती है।इस लिए उस मौत को सदा याद रखना चाहिए।
बालकविता "खरगोश" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
4 घंटे पहले
2 टिप्पणियाँ:
अर्थ सहित श्लोक पोस्ट करने के लिए धन्यवाद
achhi jankari mili
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