फरीदा गोर निमाणी सडु करे, निघरिआ घरि आउ॥
सरपर मैथै आवणा,मरणहु न डरिआहु॥९३॥
इंनी लोइणी देखदिआ,केती चलि गई॥
फरीदा लोकां आपो आपणी मैं आपणी पई॥९४॥
आप सवारहि मैं मिलहि,मै मिलिआ सुखु होइ॥
फरीदा जे तू मेरा होइ रहहि,सभु जगु तेरा होइ॥९५॥
फरीद जी कहते है कि कब्र बेचारी हमे आवाज दे रही है और कह रही है कि हे !बेघर जीव ,तू अपने घर मे आ जा।वैसे तू जहाँ मर्जी भटकता रह,आखिर तो तुझे मेरे पास ही आना पड़ेगा। इस लिए तू मुझ से इतना डर मत। अर्थात फरीद जी कहना चाहते है कि मौत तो एक दिन निश्चित आनी ही है,उस का दिन तो तय ही है।इस लिए मौत से इतना भयभीत होने की जरूरत नही है।वास्तव मे फरीद जी ऐसा इस लिए कह रहे हैं क्युंकि हम दुनिया के रागरंग में इतने लीन हो जाते हैं कि हमे यह भूल ही जाता है कि एक दिन सब कुछ छोड़छोड़ कर हमें यहाँ से कूच कर जाना है।
फरीद जी आगे कहते है कि हमारी इन आँखो के सामने ही कितनों को हमने इस दुनिया को छोड़ कर जाते हुए देखा है।कितने अपने और पराय यहाँ सब कुछ छोड़ कर हमारे सामने ही इस संसार को अलविदा कह कर जा चुके हैं।लेकिन फिर भी यह सब कुछ देख कर भी जीव अपने-अपने निहित स्वार्थो को पूरा करने मे ही लगा हुआ।यहाँ हम सब उस मौत से बेखबर अपने-अपने स्वार्थो को साधने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाने मे लगे हुए हैं।अर्थात फरीद जी कहना चाहते है कि हम अपने सामने होती मौतों को देख रहे है,लेकिन फिर भी मूर्खो की भाँति अपने निहित स्वार्थों को पूरा करने मे ही लगे रहते हैं।
फरीद जी आगे कहते हैं कि यदि यह जीव अपने आप को सँवार ले,अर्थात अपना ध्यान सही दिशा की ओर कर ले।तभी यह जीव अपने आप को पा सकेगा और जब यह अपने आप को जान सकेगा इसे सुख की अनुभूति होगी।फरीद जी आगे कहते हैं कि यदि तू मेरा हो कर रहेगा तो यह सारा संसार भी तेरा हो कर ही रहेगा । अर्थात फरीद जी कहना चाहते हैं कि जो जीव अपने को जान लेता है वह सुखी हो जाता है।जब कोई जीव अपने को जान जाता है तो उसे यह समझते देर नही लगती कि यहाँ परमात्मा के सिवा दूसरा कोई भी नही है। ऐसा जानने पर सारा संसार ही अपना लगने लगता है।
वह बहुरूपिया ....
14 घंटे पहले
3 टिप्पणियाँ:
संत फरीद की वाणी में अमृत सा प्रभाव है।
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S.B.A.
TSALIIM.
बहुत ही ज्ञानवर्धक .
saadhuvad!!
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