कंधी उते रुखड़ा किचरकु बंनै धीरु॥
फरीदा कचै भांडे रखीऎ, किचरु ताई नीरु॥९६॥
फरीदा महल निसखण रहि गऎ,वासा आइआ तलि॥
गोरां से निमाणीआ,बहसनि रूहां मलि॥८७॥
फरीदा मऊते दा बंना ऐवै दिसै, जिउ दरीआवै डाहा॥
अगै दोजकु तपिआ सुणीऎ,हूल पवै काहारा॥
इकना नो सभ सोझी आई,इकि फिरदे वेपरवाहा॥
अमल जि कीतिआ दुनी विचि,से दरगह उगाहा॥९८॥
फरीद जी कहते है कि नदी के किनारे लगा हुआ वृक्ष कितनी देर तक धीरज रख सकता है? और यह जो कच्चा मिट्टी का बर्तन है इस बर्तन में पानी कितनी देर तक रह सकता है?अर्थात फरीद जी कहना चाहते हैं कि जिस तरह नदी के किनारे लगा हुआ पेड़ नदी की बहती धारा के प्रभाव से कभी भी नदी के पानी के साथ बह सकता है। और जिस प्रकार कच्चे बर्तन मे ज्यादा देर पानी नही रह सकता।क्युँकि पानी मिट्टी के कच्चे बर्तन को धीरे धीरे गलाता रहता है। ठीक इसी तरह जीव का यह जीवन होता है।जो निरन्तर कम होता जा रहा है।यहाँ फरीद जी जीवन के नाशवान होने की ओर संकेत कर रहे हैं।
आगे फरीद जी कहते है कि यह जो धन संम्पदा, महल आदि नजर आ रहे हैं,वह सभी तो यही के यही ही रह जाते हैं।जीव को मरने के बाद जमीन के नीचे वास करना पड़ता है।हमारी आत्माएं,रूहें हमारे मरने के बाद इन्हीं कब्रों मे वास करती हैं।फरीद जी कहना चाहते है कि यह जीवन एक दिन समाप्त हो जाएगा और हमारे द्वारा यह जो धन संपदा एकत्र की गई है यह भी हमारे साथ नही जानी।मरने के बाद हमारी रुहें अंधेरी कब्र मे वास करती है।सो ऐसे मे हमे इस जीवन का सदुपयोग कर लेना चाहिए।
फरीद जी कहते है कि जिस तरह बह्ती नदी अपने किनारों को काटती हुई आगे बढती रहती है और किनारे की मिट्टी टूट-टूट कर नदी के पानी मे गिरती रहती है,उसी तरह मृत्यु रूपी नदी, जीव रूपी किनारे को, अपने साथ ले जाती रहती है।फरीद जी आगे कहते हैं कि इस के आगे जीव के जैसे कर्म होते हैं ,उसी के अनुसार उस की गति होती है।जो जीव जीवन मे अच्छे कर्म करते हैं,वह वहाँ शोभा पाते हैं,इज्जत पाते हैं और जो जीव व्यर्थ अपना जीवन गंवाते हैं,वे वहाँ दुख पाते हैं।वास्तव मे हमारे किए गए कर्म ही हमारी सदगति व दुर्गति का निर्धारण करते हैं।अर्थात फरीद जी हम से कहना चाहते हैं कि इस मौत ने तो एक दिन हमे अपने साथ ले ही जाना है।इस लिए हम क्युँ ना अपने जीवन मे उस परमात्मा की बंदगी कर ले ताकी अंत में हमे इस लिए पछताना ना पड़े कि हमारा जीवन व्यर्थ ही चला गया।
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2 घंटे पहले
4 टिप्पणियाँ:
इन पवित्र श्लोकों को सुनाने हेतु आभार।
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SBAI TSALIIM
पवित्र श्लोकों को पढाने और व्याख्या कर ज्ञान देने हेतु आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत ही ज्ञानवर्धक .
बहुत आभार इस प्रस्तुति का.
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