गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

कबीर के श्लोक - ६੪

कबीर सूता किआ करहि,जागु रोइ भै दुख॥
जा का बासा गोर महि,सो किउ सोवै सुख॥१२७॥

कबीर जी कह्ते हैं कि तुम मोह माया की नींद मे सोये हुए क्या कर रहे हो। जरा समझादारी करो और जाग जाओ और इन कलेशों दुख और भय से मुक्त होने कि कोशिश करो।क्योकि ये जो मोह माया है तुम्हें एक गहरी गुफा में फँसाये रखती है, जहाँ पर तुम क्षणिक सुखों के भ्रम में सोये रहते हो।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि जीव संसारिक कार -विहार करते हुए उसी मे मस्त हो जाता है और उस परमात्मा को भूल जाता है, जिसे पाने के लिये हमें यह मनुष्य का शरीर मिला है।यहाँ कबीर जी हमे क्षणिक सुखों को छोड़ कर स्थाई सुख पाने के लिये प्रेरित कर रहे हैं।

कबीर सूता किआ करहि,उठि कि न जपहि मुरारि॥
इक दिन सोवनु होइगो लांबे गोड पसारि॥१२८॥

कबीर जी आगे पुन: कहते हैं कि इस माया मोह की नीड मे सोया हुआ तू क्या कर रहा है, जरा उठ कर उस परमात्मा का ध्यान क्यं  नही करता। वैसे भी एक दिन तो तुझे सदा के लिये सोना ही है।

कबीर जी हमे कहना चाहते हैं कि इन क्षणिक सुखो से कुछ  हासिल नही होने वाला। इस लिये उस परमात्मा से अपना नाता जोड़ ले। क्योकि एक दिन हम सभी को मृत्यू की गोद में सदा के लिये सोना ही पड़ता है।फिर क्यो ना माया में भ्रमित होने की बजाय उस परमात्मा का ध्यान करें। जो सदा स्थाई सुख प्रदान करता है।



5 टिप्पणियाँ:

केवल राम ने कहा…

माया के विषय पर कबीर जी के दृष्टिकोण को स्पष्ट करने के लिए आपका आभार

शिवा ने कहा…

कबीर के दोहों को प्रस्तुत करने के लिये आपका आभार

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया!

Vivek Jain ने कहा…

कबीर के दोहे प्रस्तुत करने के लिये धन्यवाद!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

वैसे एम0ए0 में कबीर मेरे स्‍पेशल पोएट रहे हैं, फिरभी उनके बारे में आपका नजरिया अच्‍छा लगा।

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ब्‍लॉगिंग को प्रोत्‍साहन चाहिए?
लिंग से पत्‍थर उठाने का हठयोग।

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