रविवार, 8 जनवरी 2012

कबीर के श्लोक - ९४



कबीर जोरी कीऐ जुलमु है. कहड़ा नाउ हलालु॥
दफतरि लेखा मांगीऐ तब होइगो कऊनु हवालु॥१८७॥

कबीर जी कहते हैं कि किसी जीव की परमात्मा के नाम पर हत्या करना जुल्म हैं ।क्या तूनें कभी सोचा है कि जब ऊपर वाला तेरे से तेरे कर्मों का हिसाब-किताब माँगेंगा तब तू उसे क्या जवाब देगा।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि कुछ धर्मों में ऐसी प्रथा है कि वे परमात्मा के नाम पर जानवरों की कुर्बानी देते हैं और परमात्मा का नाम लेकर कहते हैं कि ये जीव अब उस परमात्मा के लिये कुर्बानी देने लायक हो गया है। उन्हों का मानना है कि इस तरह कुर्बानी देने से परमात्मा उन पर खुश होगा।लेकिन उस जानवर को मार कर खुद ही प्रसाद मान कर खा लेते हैं।कबीर जी कहते हैं कि इस तरह के किए पापों का हिसाब एक ना एक दिन देना पडता है जरा सोच तब तेरा क्या हाल होगा।तू उस परमात्मा से क्या कहेगा।

कबीर खूबु खाना खीचरी जा महि अंमृत लोनु॥
जेहा रोटी कारने गला कटावै कऊन॥१८८॥

कबीर जी आगे कहते हैं कि परमात्मा के नाम पर किसी जीव की हत्या करने की बजाय खिचडी खा लेनी अच्छा है जिसमे स्वादिस्ट नमक डाला गया हो। ऐसा नही होना चाहिए कि यदि हमें मास और रोटी खाने की नियत हो और हम भगवान के नाम पर किसी जीव की हत्या करने का बहाना बनाये।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि वास्तव में परमात्मा किसी चीज की कुर्बानी या कोई भी भेंट तुम से अपने नाम के बदले मे नही चाहता। बल्कि हमीं अपने जिह्वा के स्वाद के कारण परमात्मा को जीव की कुर्बानी देते हैं और बाद मे प्रसाद के रूप में उसे खा लेते हैं।अर्थात कबीर जी हमें समझाना चाहते हैं कि ऐसा करने से बेहतर है कि हम स्वादिस्ट खीचडी जिस मे अमृत रूपी नमक पड़ा होता है उसे परमात्मा के नाम पर खा लें।


4 टिप्पणियाँ:

Amrita Tanmay ने कहा…

अति सुन्दर..

Smart Indian ने कहा…

आभार!

Anita ने कहा…

परमात्मा के नाम पर मानव अपना हित साधना चाहता है पर कर लेता है अहित..कबीर वाणी अनमोल है...

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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