फरीदा वेख,कपाहै जि थीआ,जि सिरि थीआ तिलाह॥
कमादै अरु कागदै , कुनै कोइलिआह॥
मंदे अमल करेदिआ,एह सजाइ तिनाह॥४९॥
फरीदा कंनि मुसला,सूफु गलि,दिलि काती,गुड़ु वाति॥
बाहरि दिसे चानणा,दिलि अधिआरी राति ॥५०॥
फरीदा रती रतु न निकलै, जे तनु चीरै कोइ॥
जो तन रते रब सिउ।तिन तनि रतु न होइ॥५१॥
फरीद जी कहते है कि देख कापाह और तिलों के साथ क्या हो रहा है।तिलों को कोल्हू में पेला जाता है और कपास को बेलनों में बेला जाता है। इसी तर कागज और मिट्टी की हांडी को कोयलों की आग में झोंका जाता है।यह सब सिर्फ इस लिए हो रहा है कि हम उनसे फायदा उठा सके।इसी तरह हमारे सारे काम भी ऐसे ही होते हैं अर्थात अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए ही होते हैं। इस तरह के बुरे कामों को करने,स्वार्थ भरे काम करनें से ऐसी ही सजा हम को मिलनी है।अर्थात फरीद जी कहना चाहते हैं कि स्वार्थ के कारण किया गया कार्य हमेशा दूसरो को तकलीफ देता है और जो काम दूसरों को तकलीफ देता है वह काम बुरा ही होता है।बुरे काम करने वालो को सजा भी भुगतनी पड़ती है।
आगे फरीद जी कहते हैं कि इस दुनिया में लोग बहुत अजीब है यदि उन्हें देखा जाए तो बुरे कामों को करते हुए भी वह अपने कंधे पर धार्मिकता ,गले में मालायें और मुँह मे गुड़ जैसी मीठी जुबान रखे नजर आते हैं,जब की दिल में कैंची जैसी भावनाएं पाले रहते हैं।अर्थात लोगों को ठगनें की भावना रखते हैं।ऐसे लोग बाहर से देखने पर बहुत ही भले प्रतीत होते है।साधु जैसे दिखते हैं।बहुत गुणी दिखते हैं। लेकिन असल में इन के भीतर अंधेरा ही छाया रहता है।अर्थात कुछ लोग साधु का भेस तो बना लेते हैं लेकिन वे अपने जीवन में कभी भी उस परमात्मा को नही साध पाते।लेकिन दिखावा ऐसा करते हैं कि वह बहुत पहुँचे हुए हैं।ऐसे लोगो से फरीद जी हमें सावधान करना चाहते हैं।
आगे फरीद जी कहते है कि असल में जो लोग उस परमात्मा की भक्ति में रम गए हैं। उन के भीतर से जरा -सा लहु भी नही निकलता। चाहे हम उन का पूरा शरीर ही चीर दें।क्यों कि जो उस परमात्मा में रम जाता है उस के तन में लहु नही रहता।अर्थात फरीद जी कहते हैं जिस प्रकार लहु हमारे शरीर मे रहता है ,उसी प्रकार यह स्वार्थ हमारे भीतर भरा रहता है।यह पाप हमारे भीतर भरा रहता है।लेकिन जो लोग प्रभुमय हो जाते हैं। उन के भीतर स्वार्थ और पाप नजर नही आता।असल में फरीद जी हमें सही और गलत की पहचान बताना चाह रहे हैं।
बालकविता "खरगोश" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
4 घंटे पहले
2 टिप्पणियाँ:
परमजीत जी हमारे वुजुर्गो को पहले ही पता थे आज कल के हालात, बिलकुल सही कहा बाबा फ़रीद ने.
धन्यवाद
परमजीत जी,
बड़ा ही अच्छा लगा बाबा फरीद जी की वाणी सुनकर. यह प्रयास चलता रहे तो बहुत अच्छा हो.
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