बुधवार, 1 अक्तूबर 2008

फरीद के श्लोक-४

फरीदा जा तौ खटण वेल,तां तू रता दुनी सिउ॥
मरग सुवाही निही,जां तरीया तां लदिया॥८॥
देखु फरीदा जु थिआ,दाड़ी होई भूर॥
अगहु नेड़ा आएआ,पिछो रहिआ दूरि॥९॥
देख फरीदा जि थिआ,सकर होई विसु॥
सांई बाझहु आपणे ,वेदण कहिए किसु॥१०॥


फरीद जी कहते है कि जब तेरे पास उस परमात्मा को याद करने का समय था,उस वक्त तो तू दुसरे कामों में व्यस्त रहा।इस कारण मौत की नीवं पक्की होती रही। अर्थात मौत का समय पास आता गया।जब तेरे श्वास पूरे हो जाएगें तो तुझे इस संसार को छोड़ कर जाना पड़ेगा।फरीद जी आगे कहते है कि चल छोड़,अब तक जो हुआ उस की परवाह मत कर,उस ओर ध्यान मत दे।लेकिन भाई अब तो तेरी दाड़ी भी सफेद हो चुकी है ओर अब तो मौत का समय भी पास आ चुका है।अब जो तेरे आगे का समय है उस की फिक्र कर,कहीं ऐसा ना हो कि तू पिछली बातों को याद करता रहे या फिर से अपनी पुरानी नासमझी दोहराता रह जाए और तेरा आगे का समय जो शेष रह गया है,जोकि बहुत कम है ।वह भी व्यर्थ ही गंवा बैठे।इस लिए तेरे पास जो समय रह गया उस का सदुपयोग कर ले।

फिर फरीद जी कहते है कि अब तक जो हुआ सो हुआ।अब तो बुढापा आ चुका है,इस कारण दुनिया के मीठे काम भी जहर लगनें लगते हैं अर्थात बुढापे में इन्द्रियों के कमजोर पड़ने के कारण अब तू उन को नही भोग सकता,उन का रस नही ले सकता।इस लिए अब वह सब तेरे लिए विष के समान हैं।अब तू इस अपने दुखड़े को किस के सामनें रोएगा अर्थात अब तो तेरा एक मात्र सहारा वही परमात्मा ही है,इस लिए तू उसी से फरियाद कर।जिस से तेरी सभी समस्याओं का समाधान हो सके।


2 टिप्पणियाँ:

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही शान्ति मिलती हे ऎसी बाते सुन ओर पढ कर
धन्यवाद

अभिषेक मिश्र ने कहा…

Anutha pryas hai apka. Dhanyawad aur Badhai.

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