शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

फरीद के श्लोक-२

फरीदा दर दरवेसी गाखड़ी चलां दुनिया भति॥
बनि उठाली पोटली किथै वंजां घति॥२॥
किंजु ना बूझै, किंजु ना सूझै, दुनिया गुंझि भायि॥
सांई मेरे चंगा किता, नाहीं ता हंभी दझां आहि॥३॥
फरीदा जे जाणां तिल थोड़डे़, संमलि बुक भरीं॥
जे जाणां सहु नंढड़ा तां थोड़ा माणं करीं॥४॥


फरीद जी कहते है कि वह रास्ता बहुत मुश्किल नजर आता है जो परमात्मा की दिशा में जाता है ।हमें तो सिर्फ दुनियावी काम करने और उसी में लीन रहना अच्छा लगता है।क्यूँ कि इस रास्ते पर चलना बहुत आसान है।इस के लिए हमें कुछ भी बदलनें की जरूरत नही होती।इसी लिए यह रास्ता अच्छा लगता है।लेकिन हम जो यह दुनियावी गठरी ले कर चल रहे हैं। उसे हम रखेगें कहाँ? यह बात तो कोई नही जानता।हम जीवन भर सामान जोड़ते रहते हैं।जोड़-जोड़ कर बहुत कुछ इकट्ठा कर लेते हैं।जो बाद में हमारे ही जी का जंजाल बन जाता है।

इसी तरह जब हम जीवन जीते रह्ते हैं, तो एक दिन ऐसा आ जाता है जब हमें कुछ भी सूझता नही ,कुछ भी समझ में नही आता।यह संसार के प्रति हमारा मोह,ममता हमें ऐसा उलझा देता है कि हमारे लिए इस में से बाहर निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है।हमे ऐसा लगनें लगता है कि हम कभी भी इस से बाहर नही निकल सकेगें।लेकिन वह परमात्मा हम पर बहुत दयालु है, वह बहुत ही अच्छा है।वह हमेशा कुछ ऐसे अच्छे काम करता है कि हमारा ध्यान बीच-बीच में वह अपनी ओर खीच ही लेता है।ताकी हम इस संसार सागर की,दुनियावी गठरी को अपनें सिर से उतार फैंकें और सही रास्ता पकड़ लें ।फरीद जी कहते हैं कि हे प्रभू ,आपने यह सब बहुत अच्छा किया है, जो अपनी कृपा की है।वर्ना हम भी सभी की तरह इस संसार के मोह ,माया में ही उलझे रहते।अर्थात बिना प्रभू की कृपा के हम इस संसार से कभी नही छूट सकते।

आगे फरीद जी कहते हैं कि यदि मैं यह जानता होता कि तिल रूपी श्वास बहुत थोड़ें है तो मैं इस का इस्तमाल बहुत संभल कर करता।मैं बेकार ही इन संसार के विषय विकारॊ के आधीन हो कर,व्यर्थ के कामों में अपनें श्वास नही गँवाता।अर्थात अपनें समय को अपनी इस सम्पदा को यूँही इतना ज्यादा बड़-चड़ कर व्यर्थ नही गँवाता।यदि मुझे पहले ही पता लग जाता कि मेरा पति अर्थात प्रभू बहुत भॊले स्वाभाव का है तो यह जो संसारी कामों को कर-कर के मैनें यह गठरी अपनी मान कर बाँध रखी है,इस के प्रति अपनें मन में अंहकार कभी नही करता।


नोट:- आखरी श्लोक में फरीद जी ने विवाह के समय निभाई जानें वाली एक रस्म के हवाले से अपनी बात को कहा है।कहते है कि जब नयी दुल्हन विवाह कर के सुसराल पहुँचती है तो लड़के वालों के घर की स्त्रीयां एक परात मे तिल भर कर ले आती हैं।फिर लड़का उन तिलों को दोनों हाथों में भर कर लड़की के हाथों में रखता है और लड़की,लड़के के हाथों में रखती है।इसी तरह व बारी- बारी के साथ सभी के साथ करती है।यह सब लड़की की हिचक तोड़्ने के लिए किया जाता है। ताकि वह सब के साथ अच्छा संबध बना सके।यह एक दुनियावी काम है जो हमें इस संसार से जोड़ने के लिए किया जाता है।फरीद जी ने इसी का हवाला देते हुए अपनी बात कही है।

1 टिप्पणियाँ:

राज भाटिय़ा ने कहा…

फ़रीद जी ने सही कहा हे, हम जोड जोद कर रखते रहते हे जो जी का जंजाल ही बन जाता हे, उस धन के लिये भाई भाई का दुशमन बन जाता हे,खाश इस बात को सब समझते .
धन्यवाद

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