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सब सुख दाता राम है दूसर नाहिन कोय।
कह नानक सुन रे मना तिह सिमरत सुख होय॥९॥
जिह सिमरत गत पाइए तिह भज रे तै मीत।
कह नानक सुन रे मना अउध घटत है नीत॥१०॥
पांच तत को तन रचियो जानो चतुर सुजान।
जिन में उपज्या नानका लीन ताहे मै मान॥११॥
गुरु जी कहते है कि हे मेरे मन यह जितने भी सुख हैं इन सभी को देने वालां वह परमात्मा है।कोई दूसरा तुझे इन सुखों को नही दे सकता। अर्थात उस की बराबरी करनें वाला दूसरा कोइ नही है।इस लिए तू उस परमात्मा को सिमर उस ऊँची अवस्था को प्राप्त हो सकता है,जहाँ सिर्फ सुख ही सुख है।
जिस के ध्यान करनें से तेरी गति होगी,अर्थात वह परम अवस्था प्राप्त हो जाती है जिस के लिए परमात्मा नें हमें यहाँ भेजा है।हे मेरे मित्र तू इस लिए उस का ध्यान कर।क्यूँकि यह समय निरन्तर बीतता जा रहा है अर्थात तेरे जीवित रहनें की अवधि घटती जी रही है।
हम कुछ करें या ना करें यह समय कभी नही ठहरता।इस लिए हमें इस समय का सदु्पयोग कर लेना चाहिए।क्यूँकि सभी ज्ञानी और समझदार लोग जानते हैं कि हमारा शरीर पांच तत्वों से निर्मित हुआ है और एक दिन यह पांच तत्व पंच महाभूतों मे ही विलीन हो जाएगे।हम जहाँ से आए है हमें उसी में एक दिन लीन हो जाना है। इस लिए समय रहते हमें उस परमात्मा का ध्यान कर लेना चाहिए।
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