सोमवार, 17 मार्च 2008

गुरुबाणी विचार-१८



चिंता ताकी कीजिए जो अनहोनी होइ॥
एह मारग संसार को नानक थिर नही कोइ॥५१॥

जो उपजिओ सो बिनसि है परो आज की कालि॥
नानक हरि गुन गाइ ले छाडि सकल जंजाल॥५२॥


हमारी चिन्ताएं बहुत अजीब होती हैं।हम सदा उन्हीं बातों की चिन्ता करते हैं। जो जीवन में घटित होना निश्चित हैं।इसी लिए गुरू जी कह रहे हैं कि हे,प्राणी चिन्ता तो उस की कर जो अनहोनी होती हो।उस बात की चिन्ता क्या करनी,जो सभी के साथ घटित हो रहा है।यह बात तो निश्चित है कि इस संसार में कुछ भी सदा रहनें वाला नही हैं।जो पैदा होता है उसे मरना ही पड़ता है।यह तो इस संसार का नियम है।इस लिए इस बात को लेकर चिन्ता करनी छोड़ दे।
आगे गुरू जी कहते हैं कि हे प्राणी,जो भी पैदा होता है उस ने निश्चय ही एक दिन नष्ट हो जाना है।यह बात अलग है कि वह आज होगा या कल नष्ट होगा।इस लिए प्रकृति जो अपनें नियम अनुसार कर रही है,उस की चिन्ता छोड़ दे।तुझे तो इस की चिन्ता को छोड़ कर सिर्फ उस परमात्मा का ही ध्यान करना चाहिए।जो तेरे जीवन में काम आएगा।



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