दोहरा॥
बल छुटकिओ बंधन परे कछु ना होत उपाए॥
कह नानक अब ओट हरि गज जिउ होहु सहाए॥५३॥
बल होआ बंधन छुटे सभ किछ होत उपाए॥
नानक सब किछ तुमरै हाथ में तुम ही होत सहाए॥५४॥
जब कोई मुसीबत में पड़ जाता है और उस से उबरनें के सभी यत्न बेकार साबित होते हैं।ऐसे समय में कौन सहायता कर सकता है? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए गुरु जी कहते हैं कि ऐसे समय में उस हरि की ओट ही हमारी सहायक हो सकती है।जिस प्रकार भक्त की पुकार सुनकर प्रभु ने अपनें भक्त को बचानें के लिए हाथी का रूप धारण कर लिया था और अपनें भक्त की रक्षा की थी। ठीक उसी प्रकार यदि तूनें प्रभु को पुकारा तो वह तेरी सहयता करनें को आ जाएगा।
आगे गुरू जी,कहते हैं कि उस परमात्मा का संम्बल लेनें से निरबल बलवान हो जाता है और प्रभु कृपा से उस से छूटनें का रास्ता भी मिल जाता है।क्यूँ कि सभी कुछ तो उसी के हाथ में है अर्थात मारने और जिलानें वाला वही तो है।जब सभी कुछ वही कर रहा है तो वह क्यूँ कर हमें नही बचाएगा।वह हमारी सहायता अवश्य करेगा।
आगे गुरू जी,कहते हैं कि उस परमात्मा का संम्बल लेनें से निरबल बलवान हो जाता है और प्रभु कृपा से उस से छूटनें का रास्ता भी मिल जाता है।क्यूँ कि सभी कुछ तो उसी के हाथ में है अर्थात मारने और जिलानें वाला वही तो है।जब सभी कुछ वही कर रहा है तो वह क्यूँ कर हमें नही बचाएगा।वह हमारी सहायता अवश्य करेगा।
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