शुक्रवार, 7 मार्च 2008

गुरुबाणी विचार-८




जिहबा गुन गोबिंद भजहु करन सुनहु हरि नाम॥
कह नानक सुनि रे मना परहि न जम के धाम॥२१॥

जो प्रानी ममता तजे लोभ मोह अंहकार॥
कह नानक आपन तरै औंरन लेत उधार॥२२॥

जिउ सपना अरु पेखना ऐसे जग को जानि॥
इन में कछु साचो नहीं नानक बिन भगवान॥२३॥

परमात्मा को सुन कर और बोल कर अर्थात भजन बंदगी या उस के गुण गान कर के,उस की महिमा का बखान कर के उसे पाया जा सकता है।लेकिन यह सुनना और जीभ द्वारा बोलना इतना आसान नही है।क्योकि हम जब कुछ सुनते या बोलते हैं तो उस समय हमारे मन में द्वंद चलता रहता है।जो कुछ भी हमारे सामनें बोला जाता है उस का अर्थ हम अपनी बुद्धि या स्वाभाव अनुसार ही लगाते हैं तथा जो भी हम बोलते हैं,उस के बारे में हम क्या सच में जान चुके होते हैं?शायद नही,हम दूसरों के कहे शब्दो को ही दोराह देते हैं।ना ही हम उस हरि के नाम को कभी सुनते है जो निरन्तर ब्रंह्माड मे गूँजता रहता है।गुरु जी कहते हैं कि जो इस तरह जीहवा से प्रभू को गाता है और कानों से सुनता है वह फिर यमदूतों अर्थात मृत्यू के घर नही जाता।अर्थात वह इस जन्म मरण के बंन्धनों सो मुक्ती पा जाता है।
अगले श्लोक में गुरु जी कहते हैं कि जो प्राणी इस तरह अर्थात हरि भक्ती से अपनें को विकारों से मुक्त कर चुका है अर्थात मुक्त हो कर अपनें भीतर के विकार,ममता लोभ मोह और अंहकार आदि को त्याग चुका है ऐसा प्राणी स्वयं तो इस संसार सागर से तरता ही है,साथ ही वह अपने साथ ओरों का भी उद्दार करता है।क्योकि उस परमात्मा से एकाकार किए हुए प्राणी के साथ जो लोग जुड़ते है, उस परमात्मा से एकाकार हुए प्राणी के संम्पर्क मॆ आए प्राणीयों पर भी उस का प्रभाव पड़ता है।
जिस प्रकार हम सपनें को देखते हैं कि हमारे पास बहुत संपदा है ,हम राजा है,हम भिखारी हैं,इस तरह के सपनें जो हमें दिखाइ देते हैं तो एकदम सच्चे लगते हैं ।लेकिन सुबह जागनें पर पता चलता है कि यह सब तो झूठ था।गुरु जी कहते हैं कि इसी तरह इस संसार के सारे कार-व्यवाहर झूठे हैं,ऐसा हमें जान लेना चाहिए।क्यूँकि सिर्फ भगवान ही सदा रहता है हम तो आज है कल नही होगें। इस लिए जो सदा रहता है वही सच है अर्थात वह भगवान ही सदा रहता है इस बात को तू सत्य जान ले।




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