गुरुवार, 6 मार्च 2008

गुरुबाणी विचार-७



जिहि माया ममता तजी सभ ते भयो उदास॥
कह नानक सुन रे मना तिह घट ब्रह्म निवास॥१८॥

जिहि प्रानी होमै तजी करता राम पछान॥
कह नानक वह मुकत नर एह मन साची मान॥१९॥

भै नासन दुरमति हरन कलि में हरि को नाम॥
निसि दिन जो नानक भजै सफल होहि तिह काम॥२०॥

संसार को छोड़्ना बहुत आसान है लेकिन संसार में रहते हुए संसार के प्रति मोह त्यागना बहुत कठिन होता है।गुरु जी कहते हैं कि जो प्राणी संसार मे विचरते हुए माया,मोह का त्याग कर देता है,इन सब के प्रति उदास अर्थात इन सब के प्रति उस के मन में कोई लालसा नही जगती।ऐसे प्राणी के ह्रदय में परमात्मा आ विराजते हैं।या यूँ कहे कि जिसके भीतर ब्रह्म का निवास होता है वह इन मोह,माया से मुक्त हो जाता है।
लेकिन हमारे ह्र्दय में उस ब्रह्म का निवास कैसे हो? उस के प्रति गुरु जी कहते हैं कि जो व्यक्ति अंहकार को त्याग देता है ,उसी के ह्रदय में प्रभू का निवास हो सकता है और उसका निवास तभी संम्भव है जब हम उस राम ,उस परमात्मा को पहचान लें,जो इस संसार,इस ब्रह्मांड का संचालन कर रहा है।उस प्रभू के स्वरूप को जानने से ही हमारे भीतर का अंहकार हमसे छूट जाता है।ऐसा प्राणी ही मुक्ती को प्राप्त हुआ है,यह बात जाननी चहिए।अर्थात वही प्राणी मुक्त है जो अंहकार से मुक्त हो जाता है।
परन्तु हमारे मन में तो सदा मृत्यु भय समाया रहता है ,जिस कारण हम वैसे ही बहुत भयभीत रहते हैं और दूसरी ओर स्वार्थ के वशीभूत हो कर हम सदा अपना भला चाहते रहते हैं,इस कारण हम कितने दूसरे प्राणी को दुख पहचाते है हम जान ही नही पाते।इस तरह का व्यवाहर करते हुए हमारी सोच बुरे कामों की अभ्यस्त हो जाती है,गुरु जी इसी को दुरमति,अर्थात बुरी मति वाला,बुरी बुद्धि वाला होना कह रहे हैं ,साथ ही इस से छूटनें का उपाए भी बता रहे हैं कि इस बुरी मति का नाश इस कलयुग में हरि के नाम से ही संम्भव हो सकता है।इस लिए प्राणी को दिन रात उसी परमात्मा का ध्यान करना चाहिए।ऐसा करने से प्राणी सदा नेक कामों को करेगा जिस से वह सफलता पाएगा अर्थात प्राणी जिस कार्य को करनें के लिए संसार में आया है उसे सफलता पूर्वक कर लेगा।
माया और मोह को त्याग कर प्राणी ब्रह्म मे निवास करता है औरअंहकार को त्याग कर मुक्ति को प्राप्त होता है जिस से उस की दुर मति का नाश होता है,इस प्रकार अंहकार रहित हो कर किए हुए कार्य ही सफल कार्य होते हैं।



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