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घट घट मे हरि जू बसै संतन कहयो पुकार।
कह नानक तिह भज मना भव निधि उतरहि पार॥१२॥
सुख दुख जिह परसे नही लोभ मोह अभिमान।
कह नानक सुन रे मना सो मूरत भगवान॥१३॥
उसतति निंदाया नाहि जिहि कंचन लोह समान।
कह नानक सुन रे मना मुकत ताहि तै जान॥१४॥
सभी संत बार बार एक ही बात दोहरा रहे हैं कि परम पिता परमात्मा हर जगह मौजूद है। वह हरिक में समाया हुआ है।हरिक में वास करता है। गुरु जी कहते हैं तू उसी परमात्मा का भजन कर,जिससे तू इस भवसागर से पार उतर सकेगा।
जिस मनुष्य को सुख दुख में कोई भेद दिखाइ नही देता अर्थात वह सुख दुख को समान भाव से लेता है और किसी भी प्रकार का लालच,किसी के प्रति मोह भी नही रखता ।ऐसा मनुष्य जिस के मन में किसी कारण से भी अंहकार नही जगता,ऐसा मनुष्य उस परमत्मा की ही मूरत के समान है।अर्थात गुरु जी कहते हैं कि ऐसा मनुष्य भगवान स्वरूप हो जाता है।
गुरु जी कहते है कि जिस जीव को प्रशंसा तथा निंदा एक समान लगती हैं अर्थात जो मनुष्य किसी की,की गई प्रशंसा से खुश या अभिमान से नही भरता तथा ना ही किसी के द्वारा निंदा करने पर किसी के प्रति नफरत के भाव नही रखता और जिसकी दृष्टि में सोने और लोहे के मुल्य में कोई फरक नही लगता अर्थात वह दोनों को समान ही मानता है ऐसा मनुष्य ही मुक्त हुआ कहलाता है।
1 टिप्पणियाँ:
बहुत बढ़िया गुरुवाणी की पोस्ट के लिए आभार धन्यवाद
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