शनिवार, 8 मार्च 2008

गुरुबाणी विचार-९

निसि दिन माया कारने प्रानी डोलत नीत॥
कोटन में नानक कोउ नारायन जिह चीत॥२४॥

जैसे जल ते बु्दबुदा उपजै बिनसे नीत॥
जग रचना तैसे रची कह नानक सुनि मीत॥२५॥

प्रानी कछु ना चेतई मदि माया के अंध॥
कह नानक बिन हरि भजन परत ताहि जम फंध॥२६॥

सभी ने माया के प्रभाव को स्वीकारा है,यह सभी प्राणीयों को भटकाती है।ब्रह्मा,विष्नु,महेश तक को माया अपनें चुंगल में फँसा लेती है तो इसे के सामने,हम और आप क्या चीज हैं। गुरु जी कहते हैं कि इस माया के कारण ही प्राणी दिन रात भटकता रहता है।यह माया प्राणी को इस प्रकार अपनें जाल में फँसा लेती है कि वह उस प्रभू को ही भूल जाता है जिस की कृपा से वह यहाँ पैदा हो सका है,जन्मा है।इस लिए करोड़ों में कोई ही ऐसा होता है जिस के ह्रदय में उस प्रभू के प्रति धन्यवाद का भाव होता है अर्थात उस के ह्रदय में उस प्रभू की याद बनी रहती है।
गुरू जी कहते हैं कि प्राणी माया के प्रभाव के कारण यह जान ही नही पाता या यूँ कहें कि उस का इस बात कि ओर ध्यान ही नही जाता कि यह जीवन तो क्षणभुंगर है जैसे पानी में हलचल होनें पर पानी व हवा से निर्मित पानी का बुल बुला कुछ देर पानी के ऊपर तैरता-सा नजर आता है और कुछ देर बाद ही वह पानी में ही समा जाता है,ठीक उसी तरह उस परमात्मा नें यह सारी सृष्टि की रचना की है।जो निरन्तर उपजती और विलीन होती रहती है।
लेकिन प्राणी यह सब कुछ जान कर भी माया के प्रभाव के कारण,उस के प्रति आसक्ती के कारण अंधा बना रहता है अर्थात माया के प्रभाव के कारण उस प्रभू को भूला रहता है।वह यह भूल ही जाता है कि बिना प्रभू की कृपा के उस का उद्दार नही होगा।बिना प्रभू का ध्यान किए उस को यमों से अर्थात दुखों से छुट कारा नही मिल सकता।इस लिए हमें उस परमात्मा का सदा ध्यान करना चाहिए।

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