गुरुवार, 24 नवंबर 2011

कबीर के श्लोक - ९०



कबीर सूरज चांद कै उदै, भई सभ देह॥
गुर गोबिंद के बिनु मिले, पलटि भई सभ खेह॥१७९॥

कबीर जी कहते हैं कि जब तक हमारे शरीर में सूर्य और चंद्र स्वर अर्थात साँस चलती है तब तक ही हमारा ये शरीर चलता है।लेकिन बिना गुरू की कृपा मिले और गोबिद के मिले अतंत: यह देह खाक हो जाती हैं। अर्थात व्यर्थ चली जाती है।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि हमारा संसार में आना तभी सफल है जब हम उस परमात्मा की प्राप्ती करले। वर्ना हमारा संसार मे आना व्यर्थ ही जाता है।

 अनभऊ तह भै नही, जह भऊ तह हरि नाहि॥
कहिउ कबीर बिचारि कै, संत सुनहु मन माहि॥१८०॥

कबीर जी कहते हैं कि मैं अपने अनुभव की बात बताता हूँ कि जब हम सही रास्ता चुनते हैं   जहाँ भय नही है वही रास्ता सही होता है और जहाँ भय महसूस होता है वह रास्ता कभी भी उस परमात्मा की ओर नही ले जा सकता।इस बात का सदा ध्यान देना चाहिए।

कबीर जी हमें कहना चाहते हैं कि जब जीव जीवन के गलत रास्ते पर होता है तो उसे अनेक समस्याओं से उलझना पड़ता है ।ऐसा जीव सदा भय ग्रस्त रहता है। लेकिन यदि जीव सही रास्ता चुन लेता है तो भय मुक्त हो जाता है।वास्तव मे कबीर जी कहना चाहते हैं कि उस परमात्मा की शरण में जाना ही सही रास्ता है। क्योकि इसके सिवा ऐसा कोई रास्ता नही है जो जीव को माया के भय से मुक्त रख सके।




बुधवार, 16 नवंबर 2011

कबीर के श्लोक - ८९

कबीर भली भई जो भऊ परिआ,दिसा गई सभ भूलि॥
उरा गरि पानी भईआ, जाइ मिलिउ डलि कूलि॥१७७॥


कबीर जी कहते हैं कि जब जीव को भय महसूस होता है तब हम सब कुछ भूल जाते हैं अर्थात भयभीत जीव को कोई रास्ता नही सूझता अर्थात परमात्मा से दूर होने पर कोई ठौर नजर नही आती। उसी तरह बारिश की बूँदें ओलों का रूप धारण कर धरती मे समाने के जगह इधर उधर लुड़कता नजर आती हैं।लेकिन तपिश मिलने पर फिर पानी बन धरती मे समा जाती है।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि जब जीव के अंदर ये भय पैदा होता है कि परमात्मा से दूर होने पर माया के कारण जीव को दुख ही भोगना पड़ेगा।तब जीव अपनी ओले जैसी मन की कठोरता को परमात्मा रूपी तपिश से सही रास्ते पर आना ही पड़ता है।

कबीर धूरि सकेलि कै, परिआ बांधी देह॥
दिवस चारि को पोखना, अंति खेह की खेह॥१७८॥


कबीर जी आगे कहते हैं कि सब जानते है कि मिट्टी से ही सारी बस्ती बनी है और इसी तरह पँच तत्व से ये जीव का शरीर बना हुआ है जो देखने मे सुन्दर लगता है लेकिन एक दिन ये जिस मिट्टी से बना है उसी मे मिल जाना है।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि शरीर ने तो फिर मिट्टी मे मिल जाना है तब क्यों नही सही रास्ते पर ही चला जाए अर्थात उस परमात्मा की कृपा प्राप्त की जाये।