कबीर सूरज चांद कै उदै, भई सभ देह॥
गुर गोबिंद के बिनु मिले, पलटि भई सभ खेह॥१७९॥
कबीर जी कहते हैं कि जब तक हमारे शरीर में सूर्य और चंद्र स्वर अर्थात साँस चलती है तब तक ही हमारा ये शरीर चलता है।लेकिन बिना गुरू की कृपा मिले और गोबिद के मिले अतंत: यह देह खाक हो जाती हैं। अर्थात व्यर्थ चली जाती है।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि हमारा संसार में आना तभी सफल है जब हम उस परमात्मा की प्राप्ती करले। वर्ना हमारा संसार मे आना व्यर्थ ही जाता है।
अनभऊ तह भै नही, जह भऊ तह हरि नाहि॥
कहिउ कबीर बिचारि कै, संत सुनहु मन माहि॥१८०॥
कबीर जी कहते हैं कि मैं अपने अनुभव की बात बताता हूँ कि जब हम सही रास्ता चुनते हैं जहाँ भय नही है वही रास्ता सही होता है और जहाँ भय महसूस होता है वह रास्ता कभी भी उस परमात्मा की ओर नही ले जा सकता।इस बात का सदा ध्यान देना चाहिए।
कबीर जी हमें कहना चाहते हैं कि जब जीव जीवन के गलत रास्ते पर होता है तो उसे अनेक समस्याओं से उलझना पड़ता है ।ऐसा जीव सदा भय ग्रस्त रहता है। लेकिन यदि जीव सही रास्ता चुन लेता है तो भय मुक्त हो जाता है।वास्तव मे कबीर जी कहना चाहते हैं कि उस परमात्मा की शरण में जाना ही सही रास्ता है। क्योकि इसके सिवा ऐसा कोई रास्ता नही है जो जीव को माया के भय से मुक्त रख सके।
गुर गोबिंद के बिनु मिले, पलटि भई सभ खेह॥१७९॥
कबीर जी कहते हैं कि जब तक हमारे शरीर में सूर्य और चंद्र स्वर अर्थात साँस चलती है तब तक ही हमारा ये शरीर चलता है।लेकिन बिना गुरू की कृपा मिले और गोबिद के मिले अतंत: यह देह खाक हो जाती हैं। अर्थात व्यर्थ चली जाती है।
कबीर जी कहना चाहते हैं कि हमारा संसार में आना तभी सफल है जब हम उस परमात्मा की प्राप्ती करले। वर्ना हमारा संसार मे आना व्यर्थ ही जाता है।
अनभऊ तह भै नही, जह भऊ तह हरि नाहि॥
कहिउ कबीर बिचारि कै, संत सुनहु मन माहि॥१८०॥
कबीर जी कहते हैं कि मैं अपने अनुभव की बात बताता हूँ कि जब हम सही रास्ता चुनते हैं जहाँ भय नही है वही रास्ता सही होता है और जहाँ भय महसूस होता है वह रास्ता कभी भी उस परमात्मा की ओर नही ले जा सकता।इस बात का सदा ध्यान देना चाहिए।
कबीर जी हमें कहना चाहते हैं कि जब जीव जीवन के गलत रास्ते पर होता है तो उसे अनेक समस्याओं से उलझना पड़ता है ।ऐसा जीव सदा भय ग्रस्त रहता है। लेकिन यदि जीव सही रास्ता चुन लेता है तो भय मुक्त हो जाता है।वास्तव मे कबीर जी कहना चाहते हैं कि उस परमात्मा की शरण में जाना ही सही रास्ता है। क्योकि इसके सिवा ऐसा कोई रास्ता नही है जो जीव को माया के भय से मुक्त रख सके।