शुक्रवार, 28 मई 2010

कबीर के श्लोक -२३

कबीर मै जानिउ पड़िबो भलो, पड़िबे सिउ भल जोगु॥
भगति न छाडऊ राम की, भावै निंदऊ लोगु॥४५॥

कबीर जी पिछ्ले श्लोको मे भोग विलासादि और विषय विकारादि को छोड़ने कि बात कहने के बाद अब पढ़ने की बात पर अपना मत रख रहे हैं।वे कहते है कि मैने सुना था कि धर्म ग्रंथो को पढ़ना चाहिए। लेकिन पढ़ने से तो अच्छा है कि हम उस परमात्मा की भक्ति करें।वे कह्ते है मुझे उस परमत्मा की भक्ति,उस राम को छोड़ना मंजूर नही है भले ही लोग मेरी इस बात की निंदा करें कि मैं धर्म ग्रंथो को पढ़ता नही।

कबीर जी इस श्लोक मे हमे कहना चाहते हैं कि बहुत से लोग ऐसे होते हैं कि वे धर्म ग्रंथों का अध्ययन ही करते रहते हैं।धर्म ग्रंथो को अर्थ सहित कंठस्थ कर लेते है।वे लोग इसी को अपनी धार्मिकता समझ लेते हैं कि वे इन्हें पढ़ते है इस लिए वे प्रभु की भक्ति ही कर रहे हैं। लेकिन कबीर जी कहते है कि भले ही पढ़ना अच्छी बात है लेकिन यदि पढ़ने की बजाय हम उस परमात्मा की भक्ति करें, उस के प्रेम मे डूब जाए तो यह पढ़ते रहने से अच्छा होगा। कबीर जी अपनी बात करते हुए हमे समझाना चाहते है कि भले ही लोग तुम्हारी ऐसा करने पर निंदा करेगें । लेकिन हमे इस निंदा की परवाह किए बिना ही परमात्मा की भक्ति करने का रास्ता ही अपनाना चाहिए। अर्थात कबीर जी हमे कहना चाहते है कि हमे पढ़ने पढ़ाने मे, संसारिक ज्ञान हासिल करने में, धर्म ग्रंथो मे लिखी बातो को ही दोहराते रहने मे नही लगे रहना चाहिए।


कबीर लोगु की निंदै बपुड़ा, जिह मनि नाहि गिआनु॥
राम कबीरा रवि रहे, अवर तजे सभ काम॥४६॥

कबीर जी पिछले श्लोक मे कही बातों के संदर्भ का आश्य लेकर कह रहे हैं कि ऐसे लोग जो हमारे इस व्यवाहर के कारण हमारी निंदा करते है वे लोग नासमझ हैं। क्योकि वे संसारिक बोध और ईश्वरीय बोध की जानकारी नही रखते। ऐसे लोगो की निंदा कोई मायने नही रखती। इस लिए कबीर जी कह्ते हैं कि उस राम मे ही रमे रहो। बाकि के सभी कामों को छोड़ दो।उन की परवाह मत करो।

कबीर जी हमे कहना चाहते हैं कि नासमझ लोगों की निंदा करने से कोई फर्क नही पड़ता।क्योकि उन्हें इस बारे मे कोई जानकारी ही नही है कि क्या सही है और क्या गलत है।इस लिए उस परमात्मा मे ही रमे रहना चाहिए और व्यर्थ मे इन बातो की परवाह नही करनी चाहिए।

शुक्रवार, 21 मई 2010

कबीर के श्लोक -२२

को है लरिका बेचई, लरिकी बेचै कोइ॥
साझा करै कबीर सिउ, हरि संगि बनजु करेइ॥४३॥

कबीर जी कह्ते है कि कोई लड़के बेच रहा है और कोई लड़कीयां बेच रहा है। लेकिन कबीर जी कहते है कि हम तो उस के साथ व्यापार करेगें जो ईश्वर के साथ सौदा कर रहा है।

कबीर जी इस श्लोक द्वारा समझाना चाहते है कि इस संसार मे कोई लड़के अर्थात कामादिक विषय विकारों को और कोई लड़कीयों को अर्थात ईष्या द्वैष आदि को दुसरो के लिए इस्तमाल कर रहा है । इस लिए बदले में भी वही सब कुछ पा रहा है। कहने का भाव है कि हम जो संसार को देते हैं वही पाते है। लेकिन कबीर जी कहते हैं कि हम ऐसे लोगो की बजाय ऐसे लोगो से सौदा करना चाहिए अर्थात संग करना चाहिए,  जो उस परमात्मा के नाम सिमरन के बदले ईश्वर को पाना चाहते है ।


कबीर ऐह चेतावनी, मत सहसा रहि जाइ॥
पाछै भोग जु भोगवे, तिन को गुड़ु लै खाहि॥४४॥

कबीर जी कह्ते हैं कि यह चेतावनी है, कहीं ऐसा ना हो कि तू भुलावे मे पड़ा रह जाए।क्योकि अब तक तूने जितने भी विषय-विकारों से ग्रस्त हो कर भोग भोगे हैं, उन का कोई भी लाभ नही मिलने वाला।यह सब तो ऐसे है जैसे किसी दुकान से सामान खरीदने के बाद कोई चुंगा स्वरूप थोड़ा -सा गुड़ खिला देता है।

कबीर जी हमे सचेत करते हुए कहना चाहते है कि बहुत से लोग ऐसा मान कर बैठे हुए कि वे साधन संम्पन हैं, दुनियावी पदार्थो, भोग विलासों का आनंद ले रहे हैं इस लिए उन पर ईश्वर की बड़ी कृपा है।लेकिन कबीर जी सचेत करते हुए कहते हैं कि किसी को ऐसे भुलावों मे नही पड़ना चाहिए।क्योकि ये भोग विलास तुम्हें भ्रम मे डाल रहा है।यह सब तो किसी जन्म मे किए हुए तुम्हारे भलाई के काम के बदले प्राप्त हुआ पदार्थ है।जो कि ठीक ऐसा है जैसे किसी दुकानदार से सौदा खरीदने के बाद दुकानदार चुंगा स्वरूप थोड़ा-सा गुड़ तुम्हे थमा देता है।अर्थात यह सदा रहने वाला सुख नही है।

शुक्रवार, 14 मई 2010

कबीर के श्लोक -२१

कबीर लूटना है त लूटि लै, राम नाम है लूटि॥
फिरि पाछै पछुताहुगे, प्रान जाहिंगे छूटि॥४१॥

कबीर जी कहते है कि यदि तुझे कुछ लूटने की चाह है तो तू उस राम नाम की लूट कर ले।क्योकि एक राम का नाम ही लूटने योग्य है।यदि तूने अभी इस राम नाम को नही लूटा तो जब तेरे प्राण इस शरीर को छोड़ देगें उस समय तुझे पछताना पड़ेगा।

कबीर जी हमे कहना चाहते है कि हमारी प्रवृति सदा लूटने की रहती है, कभी हम धन के पीछे, कभी मान सम्मान के पीछे, कभी अन्य कामनाओं की प्राप्ती को पाने की लालसा मे सदा लगे रहते हैं। इस लिए कबीर जी हमे कहते हैं कि यदि लूटना है तो उस परमात्मा के नाम की लूट कर, जो सदा तेरे काम आना है।क्यो नाशवान पदार्थो, सुखो के पीछे भागता रहता है। यदि तुमने अभी होश नही संभाला तो जब तेरे प्राण तेरे शरीर से निकलने लगेगें तो तू बहुत पछताएगा। वास्तव मे कबीर जी हमे वह रास्ता बता रहे हैं जिस से हमे स्थायी सुख,आनंद की प्राप्ती होती है। वे समय रहते हमे सचेत होने को कह रहे हैं।

कबीर ऐसा कोई न जनमिउ, अपनै घरि लावै आगि॥
पांचऊ लरिका जारि कै, रहै राम लिव लागि॥४२॥

कबीर जी कहते है कि मैने ऐसा कोई भी व्यक्ति नही देखा जो अपने घर को स्वयं ही आग लगा दे और उस आग मे अपने पाँचों लड़को को भी जला दे।उन पाँचो लड़को को जला कर स्वयं परमात्मा का ध्यान करने लगे।

कबीर जी हमे कहना चाहते हैं कि व्यक्ति इतनी आसानी से संसार का मोह नही छोड़ सकता।ऐसा करना बहुत हिम्मत की बात है कि कोई अपने बनाए घर को स्वयं ही नष्ट कर दे। भीतर रहने वाले पाँचों विकारो से मुक्त होना बहुत कठिन है।लेकिन यदि हम उस राम का ध्यान करें, उस राम के नाम मे डूब जाए तो यह संभव हो सकता है। इस रास्ते पर चल कर संसारिक मोह से, विषय विकारों से छूटा जा सकता है।

शुक्रवार, 7 मई 2010

कबीर के श्लोक -२०

कबीर गरबु न कीजीए, रंकु न हसीऐ कोइ॥
अजहु सु नाउ समुंद्र महि, किआ जानऊ किआ होइ॥३९॥

कबीर जी पिछले श्लोको की तरह इस श्लोक मे भी गर्व करने का एक कारण और बता रहे हैं। वे कहते हैं कि जो लोग धनवान हो जाते है उन लोगो को गरीब इन्सान की दयनीय स्थिति को देख कर हँसना नही चाहिए।उन्हे इस बात का अंहकार नही करना चाहिए कि वे धनवान हैं। क्योकि जिन के पास आज भले ही धन संपत्ति है, लेकिन यह निश्चित नही है कि भविष्य मे भी वे इसी तरह धन संपत्ति के स्वामी बनें रहेगें। यह बात कोई नही जानता कि हम कब धनी और कब निर्धन बन जाएगें।

कबीर जी कहना चाहते है कि अपनी धन संपत्ति के अंहकार मे डूब कर हमें गरीब लोगों की दयनीय स्थिति का मजाक नही उड़ाना चाहिए। क्योकि यह धन भी तो  नाशवान है,यह जरूरी नही कि यह हमेशा इसी तरह बना रहेगा।भविष्य को कोई नही जानता।वास्तव मे कबीर जी हमे धन संपत्ति के कारण दुसरो को छोटा समझने की हमारी प्रवृति से हमे मुक्त करने की बात कर रहे हैं।
                   
कबीर गरबु न कीजीए, देही देखि सुरंग॥
आजु कालि तजि जाहुगे, जिउ कांचुरी भुयंग॥४०॥

कबीर जी अपनी बात को आगे बढाते हुए कहते हैं कि अपने सुन्दर रंग रूप को देख कर हमे उस पर अभिमान नही करना चाहिए। वे कहते है कि जिस प्रकार साँप अपनी कैंचुरी को समय आने पर त्याग देता है या कहे उसे त्यागनी पड़ती है। उसी प्रकार समय बीतने पर हमारा यह रंग रूप नष्ट होता जाता है। इस लिए इस पर अभिमान नही करना चाहिए।

वास्तव मे कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि हम लोग किसी भी प्रकार की अपनी विषेशता को लेकर अंहकार से भर जाते हैं। लेकिन यह भुल जाते हैं कि हरेक वस्तु , हरेक पदार्थ परिवर्तनशील है, नाशवान है। हमारा यह सुन्दर रंग रूप भी सदा नही रहता।साँप का उदाहरण देते हुए कबीर जी समझाते है कि साँप जिस प्रकार अपनी सुन्दर कैंचुरी को छोड़ देता है, उसी तरह हमारा शरीर भी अपनी सुन्दरता को छोड़ देगा।अत: इस पर गर्व नही करना चाहिए।