कबीर भांग माछली सुरापान, जो जो प्रानी खाएं।
तीरथ बरत नेम किए, सभैं रसातल जाएं॥
कबीर खूब खाना खीचरी,जा महि अमृत लौन।
हेरा रोटी कारनें,गला कटावे कौन॥
अर्थ-कबीर दास जी कहते हैं कि जो लोग तीरथ,व्रत तथा पूजा पाठ करते हैं यदि वह भांग, मच्छली व शराब आदि का सेवन करता है तो उस के किए हुए शुभ कार्य,तीरथ,व्रत तथा पूजा पाठ आदि व्यर्थ हो जाते हैं।
हमें सादा भोजन करना चाहिए ,जैसे खिचड़ी जिसमे नमक रूपी अमृत मिला होता है।ना कि स्वाद के लिए हमे मास आदि के लिए किसी का गला काटना चाहिए।