सोमवार, 29 दिसंबर 2008

फरीद के श्लोक - १६

फरीदा कोठे मंडप माणीआ,उसारेदे भी गए॥
कूड़ा सउदा करि गए,गोरी आऐ पए॥४६॥

फरीदा खिंथड़ि मेखा अगलिआ,जिंदु
ना काई मेख॥
वारी आपो आपणी,चले
मसाइक सेख॥४७॥

फरीदा दुहु दीवी बलदिंआ,मलकु बहिठा जाए॥
गड़ु लीता,घट लुटिआ,दीवड़े गईआ बुझाए॥४८॥


फरीद जी कहते हैं कि इस दुनिया में जीव जब आ जाता है तो उसे अपने जीवन को सुखी बनाने का ही ख्याल सबसे पहले आता है और वह इसी लिए घर बार बनानें में तल्लीन हो जाता है।वह चाहता है कि उस के पास अपार धन संम्पदा हो।वह अपनी सारी उर्जा इसी को कमानें मे लगा देता है।लेकिन वह जीव यह नही समझ पाता कि यह जो यत्न वह कर रहा है ,वह अन्तत: व्यर्थ साबित होगा और खाली हाथ ही हमें जाना होगा।अर्थात फरीद जी कहना चाहते हैं कि ईश्वर भक्ति के सिवा बाकी के काम हमारे साथ नही जाते। वह सारे काम तो शरीरिक सुख के लिए किए जाते हैं।इस लिए ईश्वर भक्ति ही सर्वोतम है।

आगे फरीद जी कहते हैं कि यह जो तेरी गोदड़ी है इस में नाजाने कितने ही टांके लगे हुए हैं।इस लिए हमे सदा पता रहता है कि यह किसी ना किसी कमजोर टांके वाली जगह से ही दुबारा फट सकती है।इस लिए इस की मरम्मत की जा सकती है। लेकिन यह जो हमारा जीवन है इस में कोई टांका नही लगा हुआ।इस लिए यह कब अचानक ही हमारे हाथ से कब छूट जाएगा यह कोई नही जानता। राजा और रंक चाहे कोई भी हो अन्तत: वह मृत्यु को अवश्य प्राप्त होता है।लेकिन फिर भी हम इस बात को याद नही रखते।अर्थात फरीद जी कहना चाह रहे हैं कि यह जो दुनियावी पदार्थ हम एकत्र करते रहते हैं यदि यह कभी नष्ट हो जाए तो हम इस को दुबारा कमा सकते हैं। लेकिन यदि यह जीवन एक बार हमारे हाथ से निकल गया तो फिर यह हमारे हाथ दुबारा नही आ सकता।वैसे भी यह तो निश्चित ही है कि जब हमारी बारी आएगी तो हमें भी यह शरीर छोड़ कर जाना ही पड़ेगा।

फरीद जी इसी बात को आगे कह रहे हैं कि यह जो दो दीपक जल रहे हैं,इन के सामनें मृत्यु का फरिशता आ कर बैठा रहता है।वह कब तुझे अपने आगोश मे लेता है और कब तेरा घर लूट लेता है और फिर तेरे इन जलते हुए दोनों दीवों को बुझा के चला जाता है यह तुझे पता भी नही चलता। अर्थात फरीद जी कहना चाहते हैं कि यह जो मौत है यह हमेशा हमारे साथ ही रहती है।वह मौत कब हमारा जीवन लूट कर, हमारी साँसों को छीन कर ,हमारी इन दो आँखों को बन्द कर दे।यह कोई नही जानता। इस लिए हमें इस जीवन का सदुपयोग कर लेना चाहिए।

शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

फरिद के श्लोक - १५

कंधि कुहाड़ा,सिरि घड़ा,वणि कै सरु लोहारु॥
फरीदा हौ लोड़ी सहु आपणा,तू लौड़हि अंगिआर॥४३॥

फरीदा इकना आटा अगला,इकना नाही लोणु॥
अगै गए सिंयापसनि चोटा खासी कौणु॥४४॥

पासि दमामे,छतु सि्रि,भेरी सडो रड॥
जाऐ सुते जीराण महि,थीऐ अतीमा गड॥४५॥

फरीद जी कहते हैं कि कंधे पर कुल्हाड़ी और सिर पर पानी का घड़ा लेकर यह अपने को जंगल का राजा समझ रहा है।अर्थात जब इन्सान शक्तिशाली होता है और उस के पास बहुत धन संम्पदा होती है तो वह अपने को बहुत मजबूत व शक्तिशाली समझता है।लेकिन ऐसा होने पर भी वह अंगियार अर्थात ऐसी वासनाओ की कामना करता है जो आग की तरह होती है जैसे विषय विकार आदि।इन्सान इन्ही के पीछे भागता रहता है।लेकिन फरीद जी कहते हैं कि मै तो अपना प्यारा ढूंढ रहा हूँ।अर्थात फरीद जी कहना चाहते है जब प्रभू ने तुझे सब कुछ दे रखा है तो ऐसे में व्यर्थ की कामनाओं के पीछे भागना छोड़ कर उस प्रभू की प्राप्ती का यत्न करना चाहिए।

आगे फरीद जी कहते हैं कि यह अक्सर देखने मे आता है कि एक इन्सान तो बहुत संम्पन्न है ।उस के पास दुनियावी सभी पदार्थ हैं।वही दूसरी ओर ऐसे लोग भी हैं जिन के पास कुछ भी नही है।उन का गुजारा बहुत मुश्किल से हो रहा है।लेकिन ऐसा सब होनें पर भी यह तो आगे जा कर पता लगेगा कि कौन चोट खाएगा अर्थात अपमानित होगा और कौन उस परमात्मा की नजर में सम्मानित होगा।

फरीद जी कहते हैं कि भले ही कितना ही धन पास हो।भले ही समाज में हम कितना ही सम्मान पाते हो।लेकिन आखिर में धनी और कंगाल दोनों को श्मशान में लेजा कर जला दिया जाता है।अर्थात अंत में दोनों के शरीर का हाल एक जैसा ही होता है।असल में फरीद जी हमे समझाना चाहते हैं कि यह जो धन संम्पदा है और यह जो हमे लोगो से सम्मान मिल रहा है या फिर हम जो फटेहाल जीवन गुजारते हैं। इन सब की कोई कीमत नही है।हमारी असली कीमत तो प्रभु प्राप्ती से ही हो सकती है।

बुधवार, 10 दिसंबर 2008

फरीद के श्लोक - १४

घड़ीऐ घड़ीऐ मारिऐ,पहरी लहै सजाए॥
सो हेड़ा घड़ीआल जिउ,ढुखी रैण विहाए॥४०॥

बुढा होआ शेख फरीद, कंबणि लगी देह॥
जे सौ वरिआ जीवणा,भी तनु होसी खेह॥४१॥

फरीदा बारि पराइऐ बैसणा,साईं मुझै देहि॥
जे तू ऐवै रखसी,जिउ सरीरहु लेहि॥४२॥


फरीद जी कहते हैं कि हर पल,हर घड़ी इस शरीर रूपी घड़ियाल को मरना पड़ रहा है।इस तरह यह पल-पल, पहर-पहर में बदल जाते हैं और तब भी वह सजा भोग रहा होता है।इसी तरह दुख और कष्ट भोगते-भोगते हमारा सारा जीवन बीत जाता है।अर्थात फरीद जी कह रहे हैं कि जैसे ही इन्सान इस दुनिया में जन्म लेता है,उसी समय से यह शरीर मरनें लगता है। धीरे-धीरे यह समय पहरो में फिर महीनों और सालों मे बदल जाता है।इस तरह हमारा सारा जीवन ही दुख और तकलीफों को सहता हुआ बीतनें लगता है।

आगे फरीद जी कहते है कि इसी तरह शरीर बूढ़ा हो जाता है और हमारी देह काँपनें लग जाती है। भले ही हम सो बरस तक जीते रहे,लेकिन फिर भी इस शरीर ने आखिर में स्वाह हो जाना है।फरीद दी इस तरह की चर्चा इस लिए कर रहे हैं क्यूँकि हम सदा भोग-विलास के पीछे जीवन भर भागते रह्ते हैं।वह कह रहे है कि यदि हम सारी उमर इसी तरह अपना जीवन बीताते रहे तो भी यह जीवन एक दिन समाप्त हो जाना है।

फरीद जी अगले श्लोक में प्रभू से प्रार्थना करते हुए कह रहे हैं कि हे प्रभू! यदि तूनें मुझे इसी तरह दुनिया में भोग-विलासो के मोह में फँसाए रखना है तो यह जीवन आप अभी वापिस ले लो।अर्थात फरीद जी कहना चाहते हैं कि हे प्रभु यह तो अनमोल जीवन हमें मिला है यह व्यर्थ ही ना चला जाए।हमारा यह जीवन ऐसा हो कि हम तुम्हारे प्रेम में डूब कर आनंद से बिताएं।

बुधवार, 3 दिसंबर 2008

फरीद के श्लोक - १३

फरीदा विसु गंदला,धरिए खंड लिवाड़ि॥
इकि राहेदे रहि गए,इकि राधी गए उजाड़ि॥३७॥

फरीदा चारि गवाइआ हंडि कै,चारि गवाइआ संमि॥
लेखा रब मंगेसीआ,तू आंहो केरे कंमि॥३८॥

फरीदा दरि दरवाजै जाऐ कै,किउ डिठो घड़िआलु॥
ऐहु निदोसां मारिऐ,हम दोसां दा किआ हालु॥३९॥

फरीद जी कहते हैं यह संसार तो बहुत ही गंदा है अर्थात जीव को उलझानें वाला है।लेकिन यह जिस तरह हमें नजरआता है वह बहुत ही मोहक और मीठा लगता है।यह ठीक ऐसे ही है जैसे किसी ने विष को चीनी की चासनी मे डुबोकर मीठा कर दिया है और उसे हमें ललचाने के लिए हमारे सामनें परोस दिया हो।इस लिए कई लोग तो इस कोपानें की लालसा में ही तरसते रह गए और जीवन भर रोते-रोते ही बिता कर चले गए और कुछ इसे जीवन भरकमाते रहे ,मेहनत करते रहे।लेकिन अतं मे उन को कुछ भी हाथ नही आया।अर्थात जीवन भर कमा कमा कर भीवह कुछ पा नही सके।

आगे फरीद जी कहते हैं कि तू इस कुछ पाने के लालच में अपने दिन तो इसे पानें की कोशिश मे गँवा रहा है औररात को इस व्यर्थ की भाग दोड़ से हुई थकान के कारण सो कर व्यर्थ गुजार रहा है।क्या कभी तूनें सोचा है कि जबपरमात्मा तुझ से हिसाब माँगेंगा कि मैनें यह मुनुष्य का जीवन तुझे किस काम के लिए दिया था और तू इस मनुष्य के जीवन को पा कर कौन से काम करता रहा है? उस समय तू उस परमात्मा को क्या जवाब देगा?
असल मे फरीद जी इन सवालों को उठा कर हमें समझना चाह रहे हैं कि हमें अपनें जीवन को व्यर्थ के कामों के पीछे भागते हुए,व्यर्थ के पदार्थों को भोगते हुए अपना यह अनमोल जीवन व्यर्थ नही गवाना चाहिए।

अगले श्लोक में फरीद जी कहते हैं कि इस तरह जीवन को बिता कर जब हम अपनी अंतिम घड़ी के करीब पहुँचेगें अर्थात मृत्यू के द्वार पर पहुँचेगें तो वहाँ हमें मृत्यु रूपी घड़ियाल से सामना करना पड़ेगा।यह मृत्यु रूपी घड़ियाल तो उन्हें भी खा जाता है जिन्होनें कभी कोई बुरा काम नही किया है,ऐसे में हम जैसे का क्या हाल होगा जो जीवन भर स्वार्थ के वशीभूत होकर बुरे से बुरा काम करते रहे हैं।अर्थात इस श्लोक में फरीद जी कहना चाहते हैं कि जीवनं के बाद मौत तो हर हाल में आनी ही है।लेकिन जो लोग निर्दोष अर्थात जीवन के उद्देश्य को समझ कर अपना जीवन बिताते है वह तो सुखद मत्यु को प्राप्त होते हैं। लेकिन जो बुरा करते हैं उन का तो बहुत बुरा हाल होता हैं।

हम सभी ने इस तरह की मौतें जरूर देखी है। जब कुछ लोग तो प्रभू भजन करते करते अपनी अंतिम साँस लेते है और कुछ लोग बीमारीयां और नाना प्रकार के कष्ट भोग कर तड़प-तड़प कर मरते हैं।यहाँ फरीद जी इसी का जिक्र कर रहे हैं।