रविवार, 30 सितंबर 2012

कबीर के श्लोक - ११३

          

कबीर राम रतन मुखु कोथरी,पारख आगै खेलि॥
कोई आइ मिलेगो गाहकी,लेगो महगो मोल॥२२५॥

कबीर जी कहते हैं कि राम का नाम एक बहुत कीमती रत्न है जिसे मुँह रूपी गठरी में बहुत संभाल कर रखना चाहिए और इसे सिर्फ उसी के सामने खोलना चाहिए जो इस राम नाम रत्न की पहचान रखता है। कबीर जी आगे कहते हैं कि जब इस राम रत्न को पहचानने वाला कोई ग्राहक मिल जाता है तो वह इस रत्न के लिये कोई भी कीमत देने को तैयार हो जाएगा।


कबीर जी कहना चाहते हैं कि परमात्मा का नाम दुनिया में सब से कीमती है इसे कभी भूलना नही चाहिए।जब भी इस नाम की महिमा का बखान करना हो तो ऐसे लोगों के सामने करो जो राम नाम के प्रति श्रदा का भाव रखते हो ।ऐसे श्रदावान साधकों मे से ही कोई ऐसा साधक जरूर मिल सकता है जो परमात्मा की भक्ति की खातिर सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार हो जाए।अर्थात अपना मन गुरु को समर्पित करके नाम रत्न को ग्रहण कर ले।


कबीर राम नामु जानिउ नही, पालिउ कटकु कुटंबु॥ 
धंधे ही महि मरि गईउ,बाहरि भई न बंब॥२२६॥

कबीर जी आगे कहते हैं कि जो लोग उस राम के नाम की महिमा को नही जानते और अपने कुटुंब के लिये संसारिक सुख साधनों को इकट्ठा करने मे ही लगे रहते हैं।ऐसे लोग परमात्मा को भूल कर इन्हीं कामों मे लगे लगे मर जाते हैं अर्थात उनकी आध्यात्मिक मौत हो जाती है और वह कभी परमात्मा का नाम अपने मुँह से उच्चारित ही नही करते।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि अधिकतर लोग परमात्मा की भक्ति कि जगह सदा अपने परिवार के लिये सुखसाधन जुटाने में ही लगे रहते हैं और संसारिक मोह माया में इस कदर डूब जाते हैं कि उन्हे यह होश ही नही रहता कि जिसकी कृपा द्वारा यह सब संसारिक सुखो का आनंद ले रहा है उसे कभी याद करे। जबकि ये संसारिक सुख तो अस्थाई हैं। वह उसका नाम कभी लेता ही नही जो स्थाई सुख देने वाला है।इसी संसारिक मोह माया में उलझे रहने के कारण जीव की आध्यात्मिक मौत हो जाती है।

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

कबीर के श्लोक - ११२

कबीर केसो केसो कूकीऐ, न सोईऐ असार॥
 राति दिवस के कूकने,कबहू को सुनै पुकार॥२२३॥

कबीर जी कहते हैं कि उस परमात्मा केशव को सदा पुकारते रहना चाहिए और कभी लापरवाही नही करनी चाहिए।यदि जीव इस तरह रात -दिन  उस परमात्मा को पुकारता रहेगा तो एक न एक दिन परमात्मा हमारी पुकार जरूर सुन ही लेगा।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि यदि संसारिक मोह माया से बचना है तो उस परमात्मा का ध्यान निरन्तर करते रहना चाहिए।निरन्तर परमात्मा का ध्यान करने से जीव उस परमात्मा के साथ एकाकार होने की ओर बढ़ने लगता है और एक दिन ऐसा भी आता है जब जीव परमात्मा के साथ एकाकार हो जाता है।


कबीर काईआ कजली बनु भईआ,मनु कुचरु मयमंतु॥
अंकसु ग्यानु रतनु है,खेवटु बिरला संतु॥२२४॥

कबीर जी आगे कहते हैं कि जब जीव परमात्मा के नाम से दूर होता है तो वह घने जगंल की तरह हो जाता है,जिस में मन रूपी हाथी मस्त होकर विचरण करने लगता है।लेकिन यदि किसी के पास ज्ञान रूपी अकुंश गुरु कृपा से लग जाये, खेवट के समान तो कोई विरला संत इसे अपने नियंत्रण कर सकता है।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि हमारा मन एक मस्त हाथी के समान है जो विषय-विकारों के कारण मस्त हाथी की तरह हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाता है।लेकिन यदि ज्ञान रूपी  अकुंश अर्थात उस परमात्मा का ध्यान हमे गुरु कृपा से प्राप्त हो जाये तो अपने हाथी रूपी इस मन को अपनी मर्जी से चलाया जा सकता है।क्योकि जीव तो सदा मन के पीछे भागता रहता है और विषय वासनाओं के जाल मे फँसाता रहता है।इसी से बचने के लिये कबीर जी हमें उपाय बता रहे हैं।

सोमवार, 10 सितंबर 2012

कबीर के श्लोक - ११३

कबीर केसो केसो कूकीऐ, न सोईऐ असार॥
 राति दिवस के कूकने,कबहू को सुनै पुकार॥२२३॥

कबीर जी कहते हैं कि उस परमात्मा केशव को सदा पुकारते रहना चाहिए और कभी लापरवाही नही करनी चाहिए।यदि जीव इस तरह रात -दिन  उस परमात्मा को पुकारता रहेगा तो एक न एक दिन परमात्मा हमारी पुकार जरूर सुन ही लेगा।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि यदि संसारिक मोह माया से बचना है तो उस परमात्मा का ध्यान निरन्तर करते रहना चाहिए।निरन्तर परमात्मा का ध्यान करने से जीव उस परमात्मा के साथ एकाकार होने की ओर बढ़ने लगता है और एक दिन ऐसा भी आता है जब जीव परमात्मा के साथ एकाकार हो जाता है।


कबीर काईआ कजली बनु भईआ,मनु कुचरु मयमंतु॥
अंकसु ग्यानु रतनु है,खेवटु बिरला संतु॥२२४॥

कबीर जी आगे कहते हैं कि जब जीव परमात्मा के नाम से दूर होता है तो वह घने जगंल की तरह हो जाता है,जिस में मन रूपी हाथी मस्त होकर विचरण करने लगता है।लेकिन यदि किसी के पास ज्ञान रूपी अकुंश गुरु कृपा से लग जाये, खेवट के समान तो कोई विरला संत इसे अपने नियंत्रण कर सकता है।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि हमारा मन एक मस्त हाथी के समान है जो विषय-विकारों के कारण मस्त हाथी की तरह हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाता है।लेकिन यदि ज्ञान रूपी  अकुंश अर्थात उस परमात्मा का ध्यान हमे गुरु कृपा से प्राप्त हो जाये तो अपने हाथी रूपी इस मन को अपनी मर्जी से चलाया जा सकता है।क्योकि जीव तो सदा मन के पीछे भागता रहता है और विषय वासनाओं के जाल मे फँसाता रहता है।इसी से बचने के लिये कबीर जी हमें उपाय बता रहे हैं।