मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

फरीद के श्लोक - २२

चलि चलि गईआं पंखीआं,जिन्नी वसाए तल॥
फरीदा सरु भरिआ भी चलसी,थकै कवल ईकल॥६६॥

फरीदा इट सिराणे,भुई सवणु,कीड़ा लड़िओ मासि॥
केतणिआ जुग वापरे,इकतु पईआ पासि॥६७॥

फरीदा भंनी घड़ी सवंनवी,टुटी नागर लजु॥
अजराईल फरेसता ,कै घरि नाठी अजु॥६८॥

फरीदा भंनी घड़ी सवंनवि,टुटी नागर लजु॥
जो सजण भुइ भारु थे,से किउ आवहि अजु॥६९॥

फरीद जी कहते हैं कि यह जो पक्षी आ रहे हैं इन्होनें ही यह सारा तालाब सुन्दर और सुहाना
बना रखा है।लेकिन ये सभी अपनी बारी आनें पर,यहाँ से चले जानें वाले हैं।यह जो सरोवर रूपी
जगत है यह भी एक दिन सूख जानें वाला है।तब इस में खिला कमल भी सूख जाएगा।अर्थात फरीद
जी कहना चाहते हैं कि यह जो संसार दिख रहा है।यहाँ पर सभी का आना जाना लगा रहता है।
और एक दिन ऐसा भी आना है जब यह संसार रुपी सरोवर भी सूख जाएगा ।आखिरकार यह सब नाश ही
हो जाना है।

फरीद जी आगे कहते हैं तब तेरे सिराहानें ईट होगी और तू जमीन में अर्थात कब्र में सोया हुआ होगा।
और उस समय तेरे मास को कीड़ा खा रहा होगा।तब ना जानें कितने युगो तक ऐसा ही समां बना रहेगा।
और तू किसी को भी अपने समीप नही पाएगा।अर्थात फरीद जी कहना चाहते हैं कि हमे समय रहते ही सचेत हो जाना चाहिए।यदि हम इसी तरह इसी मोह माया की नींद में ही सोये रहे तो वहाँ हमे जगानें वाला कोई नही होगा।

फरीद जी कहते हैं कि देख तेरे पड़ोस में एक सुन्दर घड़ा फिर फूट गया है।अर्थात एक आदमी फिर शरीर छोड़ गया है। उस की सुन्दर साँसे टूट गई हैं और मौत का फरिश्ता अजराईल उस के द्वार पर आकर खड़ा हो गया है।अर्थात फरीद जी कहना चाहते हैं कि देख हर घड़ी कोई ना कोई मौत की नीद सो जाता है। यह सब तेरे सामनें हो रहा है। लेकिन तू यह सब देख कर भी अपनी नींद से नही जागता।अर्थात इस नाशवान संसार के प्रति सचेत नही होता।
हमे समय रहते ही सचेत हो जाना चाहिए।क्यूँ कि फरीद जी कहते हैं कि जो लोग इस दुनिया में आकर
भी परमात्मा की बदंगी नही करते,ये सभी धरती पर भार बनें रहते हैं।ऐसे लोगों का जनम व्यर्थ ही
चला जाता है।

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

फरीद के श्लोक- २१


जां कुआरी ता चाउ,विवाही तां मामले॥
फरीदा ऐहो पछोताउ,वति कुआरी ना थीऐ॥६३॥

कलर केरी छपड़ी,आई ऊलथै हंझ॥
चिंजू बोड़नि ना पीवहि,ऊंडण सधी ढंझ॥६४॥

हंसु ऊडरि क्रोधै पईआ,लोकु विडारणि जाइ॥
गहिला लोकु जाणदा,हंसु ना क्रौधा खाइ॥६५॥

फरीद जी कहते हैं कि जब कन्या कुआरी होती है,तब उसे विवाह की चाह होती है।
लेकिन जब वह विवाह के बंधन में बंध जाती है तो उस समय कई झँझट खडे हो जाते
हैं।तब वह कन्या सोचती है कि इस से तो अच्छा था कि वह कुँआरी ही रह जाती।
लेकिन एक बार विवाह होनें के कारण उस का कुआरापन तो समाप्त हो ही जाता है।ऐसे में
वह कुआरी नही हो सकती।अर्थात फरीद जी कहना चाहते हैं कि जब इन्सान कुआरा अर्थात
दुनीयावी मोह माया से दूर होता है तो उस के मन में उस परमात्मा की चाह पैदा होती है।
लेकिन दुनिया के रंग इतने हैं कि वह उस में डूब जाता है।अर्थात विवाहित होने का भाव
है कि उस संसारी माया में उलझ जाता है।ऐसे में वह उस में फँसता ही चला जाता है।
तब उस के लिए उस माया से निकलना बहुत कठिन हो जाता है।जिस प्रकार एक विवाहित पुरूष
अपनी पत्नी को त्यागनें में असमर्थता महसूस करता है ठीक उसी तरह एक बार माया में उलझनें
के बाद माया को छोड़ना भी इसी तरह कठिन हो जाता है।

अगले श्लोक में फरीद जी कहते हैं कि हँस किसी भी गंदे पोखर में से साफ पानी ही
पीता है और पानी पी कर जल्दी से जल्दी वहाँ से दूर चला जाना चाहता है।अर्थात
फरीद जी कहना चाहते हैं कि जिस प्रकार हँस किसी भी गंदे तलाब ,पोखर आदि में से भी
प्यास लगनें पर अपनी चोंच से साफ पानी ही पीता है ठीक उसी तरह हमें भी इस संसार की
माया के मोह में ना फसँते हुए, अपना ध्यान प्रभु की ओर लगाए रखना चाहिए।वास्तव में
फरीद जी हमें सांकेतिक भाषा में इस बात को समझाना चाहते हैं कि हमें संसार मे कैसे
रहते हुए भी उस प्रभु की भक्ति करनी चाहिए।

फरीद जी आगे कहते हैं कि जब यह हंस किसी अन्नभंडार आदि के समीप बैठता है तो लोग
इसे उड़ा देते हैं।उन्हें ऐसा लगता है कि यह हंस कही उनका अन्न ना खा ले।लेकिन लोग यह
नहीं जानते कि हंस यह सब नही खाता।अर्थात फरीद जी कहना चाहते हैं कि जब कोई फकीर
या प्रभु भक्तिरत व्यक्ति संसार में रहनें लगता है तो लोगों को यह भ्रम होनें लगता है कि यह
धन प्राप्ती के लिए ,दूसरों को धोखा देने के लिए यह सब स्वांग धारण किए हुए है।लेकिन
लोग यह नही समझ पाते कि जो उस परमात्मा के प्यारे होते हैं उन्हें दुनियावी लोभ,मोह
के प्रति किसी प्रकार की आसक्ती नही रह जाती।