मंगलवार, 24 जनवरी 2012

कबीर के श्लोक - ९६


कबीर रामै राम कहु कहिबे माहि बिबेक॥
ऐकु अनेकहि मिलि गईआ एक समाना एक॥१९१॥

कबीर जी कहते हैं कि राम का नाम तो सभी जपते हैं लेकिन राम का नाम जपते समय यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि एक राम तो सभी जीवों मे समाया हुआ है और एक अवतारी पुरूष है। लेकिन जपते समय यह तुम्हारे विवेक पर निर्भर करता है कि तुम किसे जप रहे हो। जबकि नाम की दृष्टि से दोनों समान है।

कबीर जी समझाना चाहते हैं कि परमात्मा के नाम को सर्वव्यापी सर्वशक्तिमान की भावना से ही जपना चाहिए। तभी उसका लाभ मिल सकता है।अर्थात कबीर जी कहना चाहते हैं कि तुम जिस परमात्मा के नाम को जप रहे हो वह किसी दायरे में. किसी एक धर्म मे बँधा हुआ नही होना चाहिए। बल्कि ऐसी भावना होनी चाहिए कि वह राम सभी में रमा हुआ हैं ।

कबीर जा घर साध न सेवीअहि हरि की सेवा नाहि॥
ते घर मरहट सारखे भूत बसहि तिन माहि॥१९२॥

कबीर जी आगे कहते हैं कि जिस घर मे साधु संतों की सेवा नही होती अर्थात ऐसे लोगो की सेवा होती है जो अपने स्वार्थ के कारण तुम्हें कर्म कांडो मे उलझा देते हैं और लोग उन्हे ही साध -संत मान कर उनकी सेवा करने लगते हैं।ऐसे लोगो की सेवा करने से परमात्मा की प्राप्ती का रास्ता नही मिल सकता। ऐसे घर मसान की तरह हो जाते हैं जहाँ भूतों का वास हो जाता है।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि हमे ऐसे साधू -संतों की सेवा करनी चाहिए जो परमात्मा के ध्यान में ही मगन रहते हैं। क्योकि जो साधक उस परमात्मा से एकाकार हो चुके है वही हमें सही रास्ते पर ले जा सकते हैं। अन्यथा हम भटकाव मे पड सकते हैं।


सोमवार, 16 जनवरी 2012

कबीर के श्लोक - ९५



कबीर गुरु लागा तब जानीऐ मिटे मोह तन ताप॥
हरख सोग दाझै नही तब हरि आपहि आप॥१८९॥

कबीर जी कहते हैं कि गुरु मिल गया है यह तभी जाना जा सकता है जब जीव मोह और शरीरिक तापों से मुक्त हो गया हो।गुरु की कृपा होने पर खुशी और गमी जीव को प्रभावित नही कर पाते।ऐसे में जीव प्रभु कृपा का अनुभव भी करने लगता है।

कबीर जी वास्तविक सच्चे गुरू की पहचान को बताना चाहते हैं। सहज रूप में हम अक्सर गुरू तो धारण कर लेते हैं लेकिन उस से हमारे जीवन में जरा-सा भी परिवर्तन या आनंद प्राप्त नही होता। ऐसे गुरू धारण करने से कोई लाभ नही होता। यदि गुरू धारण करने के बाद जीव मोह और खुशी गमीं से ऊपर उठ जाता है . उस का मन शांत हो जाता है उसकी तृषणा मिट जाती है तभी जानना चाहिए कि गुरू मिल गया।अर्थात ऐसा गुरू ही धारण करने योग्य होता है।

कबीर राम कहन महि भेदु है ता महि एक बिचार।॥
सोई राम सभै कहहि सोई कोतकहार॥१९०॥

कबीर जी आगे कहते हैं कि परमात्मा के नाम राम में भी एक भेद है क्योकि सभी उस राम का विचार अपने ढंग से करते हैं। कबीर जी आगे प्रश्न पर विचार करने के लिये कहते हुए कहते हैं कि क्या जिस राम को सभी जपते हैं क्या वह कोई चमत्कारी पुरूष है ?

कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि परमात्मा का नाम किसी व्यक्ति विशेष का भी हो सकता है और प्राकृति के संपूर्ण अस्तित्व का भी हो सकता है। यही वह भेद है कि हम किस राम की आराधना करते हैं । जिसे समझनें के लिये वे हम से कह रहे हैं।


रविवार, 8 जनवरी 2012

कबीर के श्लोक - ९४



कबीर जोरी कीऐ जुलमु है. कहड़ा नाउ हलालु॥
दफतरि लेखा मांगीऐ तब होइगो कऊनु हवालु॥१८७॥

कबीर जी कहते हैं कि किसी जीव की परमात्मा के नाम पर हत्या करना जुल्म हैं ।क्या तूनें कभी सोचा है कि जब ऊपर वाला तेरे से तेरे कर्मों का हिसाब-किताब माँगेंगा तब तू उसे क्या जवाब देगा।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि कुछ धर्मों में ऐसी प्रथा है कि वे परमात्मा के नाम पर जानवरों की कुर्बानी देते हैं और परमात्मा का नाम लेकर कहते हैं कि ये जीव अब उस परमात्मा के लिये कुर्बानी देने लायक हो गया है। उन्हों का मानना है कि इस तरह कुर्बानी देने से परमात्मा उन पर खुश होगा।लेकिन उस जानवर को मार कर खुद ही प्रसाद मान कर खा लेते हैं।कबीर जी कहते हैं कि इस तरह के किए पापों का हिसाब एक ना एक दिन देना पडता है जरा सोच तब तेरा क्या हाल होगा।तू उस परमात्मा से क्या कहेगा।

कबीर खूबु खाना खीचरी जा महि अंमृत लोनु॥
जेहा रोटी कारने गला कटावै कऊन॥१८८॥

कबीर जी आगे कहते हैं कि परमात्मा के नाम पर किसी जीव की हत्या करने की बजाय खिचडी खा लेनी अच्छा है जिसमे स्वादिस्ट नमक डाला गया हो। ऐसा नही होना चाहिए कि यदि हमें मास और रोटी खाने की नियत हो और हम भगवान के नाम पर किसी जीव की हत्या करने का बहाना बनाये।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि वास्तव में परमात्मा किसी चीज की कुर्बानी या कोई भी भेंट तुम से अपने नाम के बदले मे नही चाहता। बल्कि हमीं अपने जिह्वा के स्वाद के कारण परमात्मा को जीव की कुर्बानी देते हैं और बाद मे प्रसाद के रूप में उसे खा लेते हैं।अर्थात कबीर जी हमें समझाना चाहते हैं कि ऐसा करने से बेहतर है कि हम स्वादिस्ट खीचडी जिस मे अमृत रूपी नमक पड़ा होता है उसे परमात्मा के नाम पर खा लें।