सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

कबीर के श्लोक - १०


कबीर माइआ डोलनी,पवनु वहै हिवधार॥
जिनि बिलोइआ तिनि खाइआ,अवर बिलोवनहार॥१९॥

इस श्लोक मे कबीर जी पिछले श्लोक मे कहे विचार को और अधिक स्पष्ट कर रहे हैं।वह कहते है कि माया रूपी यह जो दूध है, इसे हमारी श्वास रूपी शीतल पवन बिलोवने की तरह बिलोती जा रही है।जो लोग इसे बिलो रहे हैं, वही खा भी रहे हैं। लेकिन यहाँ पर सभी को मक्खन ही खाने को नही मिल रहा।सभी अपने यत्नानुसार ही पा रहे हैं।

कबीर जी कहना चाहते है कि यह जीवन तो सभी को मिला है और इस संसार में प्रलोभन भी बहुत हैं, लेकिन कौन इस जीवन की श्वासों का व्यय किस काम मे, किस उद्देश्य से कर रहा है।यही उस के प्रतिफल पाने का आधार बन जाता है।


कबीर माईआ चोरटी, मुसि मुसि लावै हाटि॥
ऐक कबीरा ना मुसै जिनि कीनी बारह बाट॥२०॥

कबीर जी कहते है कि यह माया बहुत चालाक है। यह माया बार बार प्रलोभनों मे जीव को फँसाने कि कोशिश मे लगी रहती है। लेकिन कबीर जी कहते हैं कि ऐसे लोग इस माया की ठगी का शिकार नही होते जो इस माया को तोड़ तोड़ कर इस की असलियत को पहचान लेते हैं।

कबीर जी कहना चाहते है कि संसार कि इस माया का काम ही ठगना है।यह माया ठगने के लिए नये नये रूप धार कर हमारे सामने आती रहती है।लेकिन यदि जीव उस परमात्मा की शरण मे चला जाए।जैसे कबीर जी गए हैं तो यह माया टुकड़े टुकड़े हो जाती है।अर्थात  यह हमे अपने जाल मे नही फँसा पाती।

सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

कबीर के श्लोक - ९


कबीर साकतु ऐसा है,जैसी लसन की खानि॥
कोने बैठे खाईऐ,परगट होइ निदानि॥१७॥

कबीर जी कहते हैं कि जो ईश्वर को भूला हुआ जीव है वह लसन की कोठरी के समान है। क्योकि जो भी इस लसन का सेवन कही भी बैठ कर करता है तो भी इस की गंध के कारण उसे सेवन करने वाला, अपने आप को छुपा नही पाता। उस गंध के कारण सभी को पता चल जाता है कि इसने लसन का सेवन किया है।

कबीर जी इस श्लोक मे कहना चाहते है कि जो लोग परमात्मा को भूले रहते हैं वे हमेशा विषय विकारों मे फँसें रहते हैं। ऐसे लोग अपने अंहकार, लालच, स्वार्थ व लोभादि विकारों के कारण अपने दुर्गुणों को छुपा नही पाते। ऐसे लोगों को कोई भी आसानी से पहचान ही जाता है। वास्तव मे परमात्मा से दूर हुआ मनुष्य इन विकारों से ग्रस्त पाया जाता है।

कबीर माइआ डोलनी,पवन झकोलनहारु॥
संतहु माखनु खाइआ, छाछि पीऐ संसारु॥१८॥

कबीर जी कहते है कि यह जो संसार की माया है वह दूध की डोलनी के समान है,जिस में मदाहनी रूपी हमारी श्वासें उसे मथ रही है।कबीर जी कहते हैं कि जिन्हें इसे मथने का तरीका पता है वे संत इस मे से माखन को निकाल कर खा लेते हैं।लेकिन जिसे इस को मथना नही आता ,उन्हें मात्र छाछ ही पीनी पड़ती है।


कबीर जी इस श्लोक मे कहना चाहते है कि वैसे तो यह संसार माया रूप ही है लेकिन फिर भी यदि हम अपने जीवन का सदुपयोग करे तो हम अपने जीवन को सफल बना सकते है।अर्थात हम अपने जीवन को संसारी कामो का निर्वाह करते हुए प्रभु भक्ति में लगाए ,तो आनंद रूपी उस परमपिता को पा सकते हैं।अन्यथा व्यर्थ के कामों में ही उलझ कर अपना जीवन गँवा बैठेगें।

सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

कबीर के श्लोक - ८


कबीर संतन की झुंगीआ भली,भठि कुसती गाउ॥
आगि लगऊ तिह धउलहर,जिह नाही हरि को नाउ॥१५॥

इस श्लोक मे कबीर जी अपने निजि विचार व्यक्त कर रहे हैं कि यदि कोई संत है, परमात्मा का प्यारा है।ऐसे संत की छोटी सी झोपड़ी भी मुझे भली दिखती है,अच्छी दिखती है। जबकि बुरे इन्सान या असंत प्रवृति के व्यक्ति के पास यदि पूरा गाँव भी हो तो वह भी मुझे जलती हुई भट्ठी के समान लगता है।क्योकि ऐसी जगह मे हमेशा तृष्णा की आग मे जीव जलता रहता है। क्योकि वहाँ पर उस परमात्मा का नाम नही है।

कबीर जी कहना चाहते हैं कि किसी के अमीर या गरीब होने से कोई फर्क नही पड़ता।वह चाहे झोपड़ी मे रहता हो या पूरे गाँव का मालिक हो।यदि वह ईश्वर से दूर है तो हमेशा विषय विकारों की आग मे जलता रहेगा।लेकिन  यदि उसकी प्रवृति परमात्मा की ओर है, वह परमात्मा के प्रति समर्पित भाव रखता है तो आनंदित रहेगा।

कबीर संत मुऐ किआ रोईऐ,जे अपुने ग्रिहि जाहि॥
रोवहु साकत बापुरे,जु हाणै हाट बिकाइ॥१६॥

कबीर जी कहते है कि किसी संत के मरने पर अफसोस या दुखी हो कर रोने  की कोई जरूरत नही है क्योकि वह तो अपने घर जाता है। जहाँ से उसे अब कोई नही निकालने वाला। यदि रोना है तो उसके मरने पर रोना चाहिए जो इस संसार मे आ कर उस परमात्मा को नही पा सका।परमात्मा को ना पाने के कारण उसे फिर फिर जनम लेकर भटकना पड़ेगा।

इस श्लोक मे कबीर जी कहना चाहते है कि यदि  हम उस परमपद को अपने जीते जी पा लेते है तो हमारी मुक्ति संभव हो जाती है।लेकिन हम यदि संसारी बातों मे व्यस्त रहते हैं, विषय विकारों मे फँसे रहते हैं तो हमे परम शांती की प्राप्ती कभी नही होती।ऐसे लोगो के मरने पर रोना ही पड़ता है क्योकि वे अपना जीवन व्यर्थ ही गँवा कर जाते हैं।ऐसे लोग को फिर से कई जूनो मे भटकना पड़ेगा।