सोमवार, 29 सितंबर 2008

फरीद के श्लोक-३

जे जाणा लड़ छिजणा,पीडी पाईं गंढि॥
तै जेवडु नाहि को,सब जग डिट्ठा हंढि॥५॥
फरीदा जे तू अकल लतीफ,काले लिख ना ले्खु॥
आपनड़े गिरीवान महि,सिरु नीवां करि देखु॥६॥
फरीदा जै तै मारनि मुकीआं,तिना ना मारे घुंमि॥
आपनड़े घरि जाइऐ,पैर तिन्ना दे चुंमि॥७॥

फरीद जी कहते हैं कि हमें पता होता कि यह जो पल्ला हमनें पकड़ा हुआ है।तेरे साथ बाँधा हुआ है,यह बार-बार जाएगा तो हम पहले ही इस बंधन को मजबूत कर लेते अर्थात हमनॆ भले ही अपना ध्यान तेरी ओर लगा रखा है।लेकिन यह जो संसार के प्रति हमारी आसक्ती है।यह बार-बार हमारा ध्यान अपनी ओर खींच लेती है।हम मोह के वशीभूत हम उस ओर खिचें चले जाते हैं।इस से बचनें क उपाय हम पहले ही खोज कर रख लेते,तो अच्छा होता।क्यूँकि हम सभी जानते हैं कि तुम से बड़ा हमारा हितैषि और कोई भी नही है।यह बात हमनें इस संसार में अच्छी तरह देखभाल कर जान ली है।आगे फरीद जी कहते हैं कि यदि तुझे लगता है कि तू बहुत अकलमंद है तो फिर सदा दूसरों की बुराईयां ,उन की कमियां क्यों ढूंढता रहता है।अर्थात समझदार आदमी कभी भी दूसरों की कमियां,बुराईयां नही निकालता।दूसरों की कमियां निकालनें से पहले तुझे अपनें गिरेबान मॆ झाँक कर देख लेना चाहिए।अर्थात दूसरो की गलतीयां देखनें की बजाए अपनी कमियों को दूर करना चाहिए। इसी को समझ् दारी कहते हैं।आगे कहते है कि जो लोग तुम्हें सताते हैं,उन को पलट कर तुम मत मारना।क्यूँकि उन के कारण ही तुझे इस दुखों के भवसागर से विरक्ति पैदा होगी।जिस से तेरा इस संसार से मोह टूटेगा और तू उस परमात्मा की शरण मे जाएगा।इस लिए तुझे उन के चरणों को चूमना चाहिए।

शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

फरीद के श्लोक-२

फरीदा दर दरवेसी गाखड़ी चलां दुनिया भति॥
बनि उठाली पोटली किथै वंजां घति॥२॥
किंजु ना बूझै, किंजु ना सूझै, दुनिया गुंझि भायि॥
सांई मेरे चंगा किता, नाहीं ता हंभी दझां आहि॥३॥
फरीदा जे जाणां तिल थोड़डे़, संमलि बुक भरीं॥
जे जाणां सहु नंढड़ा तां थोड़ा माणं करीं॥४॥


फरीद जी कहते है कि वह रास्ता बहुत मुश्किल नजर आता है जो परमात्मा की दिशा में जाता है ।हमें तो सिर्फ दुनियावी काम करने और उसी में लीन रहना अच्छा लगता है।क्यूँ कि इस रास्ते पर चलना बहुत आसान है।इस के लिए हमें कुछ भी बदलनें की जरूरत नही होती।इसी लिए यह रास्ता अच्छा लगता है।लेकिन हम जो यह दुनियावी गठरी ले कर चल रहे हैं। उसे हम रखेगें कहाँ? यह बात तो कोई नही जानता।हम जीवन भर सामान जोड़ते रहते हैं।जोड़-जोड़ कर बहुत कुछ इकट्ठा कर लेते हैं।जो बाद में हमारे ही जी का जंजाल बन जाता है।

इसी तरह जब हम जीवन जीते रह्ते हैं, तो एक दिन ऐसा आ जाता है जब हमें कुछ भी सूझता नही ,कुछ भी समझ में नही आता।यह संसार के प्रति हमारा मोह,ममता हमें ऐसा उलझा देता है कि हमारे लिए इस में से बाहर निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है।हमे ऐसा लगनें लगता है कि हम कभी भी इस से बाहर नही निकल सकेगें।लेकिन वह परमात्मा हम पर बहुत दयालु है, वह बहुत ही अच्छा है।वह हमेशा कुछ ऐसे अच्छे काम करता है कि हमारा ध्यान बीच-बीच में वह अपनी ओर खीच ही लेता है।ताकी हम इस संसार सागर की,दुनियावी गठरी को अपनें सिर से उतार फैंकें और सही रास्ता पकड़ लें ।फरीद जी कहते हैं कि हे प्रभू ,आपने यह सब बहुत अच्छा किया है, जो अपनी कृपा की है।वर्ना हम भी सभी की तरह इस संसार के मोह ,माया में ही उलझे रहते।अर्थात बिना प्रभू की कृपा के हम इस संसार से कभी नही छूट सकते।

आगे फरीद जी कहते हैं कि यदि मैं यह जानता होता कि तिल रूपी श्वास बहुत थोड़ें है तो मैं इस का इस्तमाल बहुत संभल कर करता।मैं बेकार ही इन संसार के विषय विकारॊ के आधीन हो कर,व्यर्थ के कामों में अपनें श्वास नही गँवाता।अर्थात अपनें समय को अपनी इस सम्पदा को यूँही इतना ज्यादा बड़-चड़ कर व्यर्थ नही गँवाता।यदि मुझे पहले ही पता लग जाता कि मेरा पति अर्थात प्रभू बहुत भॊले स्वाभाव का है तो यह जो संसारी कामों को कर-कर के मैनें यह गठरी अपनी मान कर बाँध रखी है,इस के प्रति अपनें मन में अंहकार कभी नही करता।


नोट:- आखरी श्लोक में फरीद जी ने विवाह के समय निभाई जानें वाली एक रस्म के हवाले से अपनी बात को कहा है।कहते है कि जब नयी दुल्हन विवाह कर के सुसराल पहुँचती है तो लड़के वालों के घर की स्त्रीयां एक परात मे तिल भर कर ले आती हैं।फिर लड़का उन तिलों को दोनों हाथों में भर कर लड़की के हाथों में रखता है और लड़की,लड़के के हाथों में रखती है।इसी तरह व बारी- बारी के साथ सभी के साथ करती है।यह सब लड़की की हिचक तोड़्ने के लिए किया जाता है। ताकि वह सब के साथ अच्छा संबध बना सके।यह एक दुनियावी काम है जो हमें इस संसार से जोड़ने के लिए किया जाता है।फरीद जी ने इसी का हवाला देते हुए अपनी बात कही है।

बुधवार, 24 सितंबर 2008

फरीद के शलोक-१


जितु दिहाड़ै धन वरी साहे लई लिखाई॥
मलकु जि कंनी सुणीदा मुहु देखाले आई॥
जिंदु निमाणी कढीऐ हडा कू कड़्काई॥
साहे लिखे न चलनी जिंदू कूं समझाई॥
जिंदु वहुटी मरणु वरु लै जासी परणाई॥
आपण हथी जौलि कै कै गलि लगै धाई॥
वालहु निकी पुरसलात कंनी न सुणी आई॥
फरीदा किड़ी पवंदीइ खड़ा न आपु मुहाई॥१॥


फरीद जी कहते है कि जिस दिन जीव का आगमन होता है,उसी दिन जीव का भाग्य लिख दिया जाता है।अर्थात उस के पैदा होते ही मृत्यु का समय भी निश्चित हो जाता है।जिस मृत्यु के फरीश्ते के बारे में पहले ही सुन रखा होता है वह बार-बार हमारे कानों मे अपने आनें की खबर देता रहता है।अर्थात हमारे आस -पास मरनें वालों के जरिए अपनी मौजूदगी का एहसास कराता रहता है।आगे कहते हैं- कि जिस जीवन रूपी पत्नी को वह मृत्यु रूपी पति वरण करता है उस की संसार में आते ही हालत खराब होनें लगती है।वह जीव की हड्डीयों को अर्थात शरीर को रोगादि द्वारा शक्तिहीन कर के ब्याह के ले जानें की तैयारीयो मे लग जाता है।इस लिए अपने को समझा ले की यह समय कभी टल नही सकता।जीवन रूपी पत्नी को मृत्यु रूपी पति एक दिन अवश्य ही ब्याह कर ले जाएगा।लेकिन क्या तू जानता है कि यह ब्याह के ले जाने के बाद किस के गले से जा कर लगेगी? अर्थात तेरी मृत्यु हो जाने के बाद तेरी आत्मा तो निआसरी हो जाएगी उस का कोई भी सहारा नही रहेगा।लेकिन फरीद जी कहते हैं इस से बचनें का एक रास्ता है, जो की बहुत ही सँकरा है ।क्या तूनें उस के बारे में नही सुना कि यह जो समुंद्र रूपी संसार है इस में विकारों की जो लहरें उठ रही हैं,उस से बचनें का एक ही दर्वेशी रास्ता है जो तुझे इस के पार ले जाएगा आर्थात मृत्यु व विकारों के कारण पैदा होने वाले दुखों के भय से तुझे मुक्त कर देगा।तेरे आस-पास कितनें ही गुरु,पीर, पैगंबर तुझे रास्ता बतानें के लिए खडे़ हुए हैं।