मंगलवार, 28 अगस्त 2007

सच्ची बात




ईश्वर को मानना या ना मानना व्यक्तिगत मामला है। इस विषय पर बहस करने से कोई लाभ होने वा्ला नही।


१.यदि आप उसे मानते हैं तो उस का लाभ आपको मिलेगा।(अधूरे आस्तिक)


२.यदि नही मानते तो उस लाभ से आप वंचित रहेगें।(नास्तिक)


३.यदि आप अभी निर्णय नही कर पाए..और उस सत्य की अभी तलाश कर रहें हैं...और अपना फैसला तभी लेगें...जब सत्य को जान लेगें।(आस्तिक)



जो है, उसे नही मानने से वह खोएगा नही । जो नही है,वह मान लेने से पैदा ना होगा।

4 टिप्पणियाँ:

सुनीता शानू ने कहा…

सबसे बड़ी बात है विश्वास...बिना विश्वास के कुछ भी नही अगर यह विश्वास है की ईश्वर है तो है,अगर नही है तो नही...

डॉ. अजीत कुमार ने कहा…

फिर भी कुछ लोग व्यर्थ के पचड़े में पड़े रहते हैं,इससे और आश्चर्य की क्या बात होगी.
सुविचारो के लिए धन्यवाद.

बालकिशन ने कहा…

सही कहा सर. आस्था ही सबकुछ है. आपको सुविचारों के लिए धन्यवाद.

Kirtish Bhatt ने कहा…

बहुत खूब !

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