शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2008

फरीद के श्लोक-६

फरीदा काली धउली साहिब सदा है,जे को चिति करे॥
अपणा लाइया पिरमु ना लगयि, जे लोचै सब कोइ॥
ऐह पिरमु पिआला खसम का,जै भावै ता देइ॥१३॥
फरीदा जिन लोइण जगु मोहिआ, सो लोइण मै डिठु॥
कजल रेख ना सहदिआ,से पंखी सुइ बहिठु॥१४॥
फरीदा कूकेदिआ चांगेदिआ,मति देदिआ नित॥
जो सैतानि वंयाइआ,से कितिफेरहि चित॥१५॥

फरीद जी ने जैसे कि पहले कहा है कि जवानी में हम विषय विकारों के आधीन होते हैं और बुढापे में हमारा कमजोर हो जाना उस प्रभु की ओर से हमारा ध्यान हटा देता है। लेकिन फिर भी यह भक्ति हमे कभी भी प्राप्त हो सकती है।इन श्लोकों मे फरीद जी कहते हैं कि वैसे तो हम जवानी और बुढापे दोनों मे ही उस की बंदगी कर सकते हैं।लेकिन यह जान लो कि यह प्रभु भक्ति हमारे करनें से ही हमे नही मिल सकती।चाहे हम कितनी भी कोशिश कर ले।हम अपनी मरजी से कभी भी उस ओर ध्यान नही दे सकते।हम कभी भी उस प्रेम-प्याले को नही पा सकते।जब तक कि उस की कृपा ना हो। अर्थात जब भी हम कोई यत्न करते हैं तो उस यत्न के साथ हमारा अहंम जुड़ जाता है।कि यह काम मैं कर रहा हूँ।इस अहंम के कारण ही हम उस तक नही पहुँच सकते।वहाँ तो वही पहुँचते हैं जो अपना अहंम त्याग चुके हैं। जब तक पूर्ण समर्पण नही किया जाता तब तक उसे नही पाया जा सकता।

आगे फरीद जी कहते हैं कि जिन आँखों के कारण (शरीर की व मन की) यह जगत हमें मोहित करता है।उन आँखों के बारे मॆ सभी जानते हैं।ये आँखें तो काजल को भी सहन नही करती थी।जो अब नए जनमें पक्षी के बच्चे की तरह बैठकर इस संसार को कोतुहल से ताकनें लगता है।अर्थात जब हम इस संसार को शरीर की व मन की आँखों से देखते हैं तो हमारे अंदर इस संसार के प्रति आसक्ती पैदा हो जाती है। इस बात को हम सभी जानते हैं।लेकिन जब कोई बच्चा जनमता है तो उस समय उस के मन में कोई भावना नही होती,कोई विकार नही होता।वह एकदम निश्छल होता है। उस समय वह सब कुछ कौतुहल से देखता है। लेकिन फिर इस में भी समय के साथ-साथ विकार,दुनिया के प्रति मोह आदि पैदा हो जाते हैं।समझ्दार लोग हमें इन बातोम के प्रति सदा सावधान करते रहते हैं।चैताते रहते हैं।सीख देते रहते हैं।लेकिन फरीद जी कहते हैं कि फिर भी हम इन सब से बच नही पाते।आगे वह प्रश्न करते है कि हम इस से बच कैसे सकते है?अर्थात हम किस प्रकार उस परमात्मा का प्यार पा सकते हैं?

1 टिप्पणियाँ:

seema gupta ने कहा…

'last mey jo question hai, hum kaise bhagwan ko paa sekteyn hain................. to ye sval to hr inssan ke mun mey uthta rehta hai, lakin uska jvab nahee miltaa, bhut accha lgaa pdh kr, bachpan jo nischal hai, fir bda hona jhan moh maya se sambandh hai... or parmatma khan hai...???

regards

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