फरीदा दरीआवै कंनै बगुला,बैठा केल करे॥
केल करेदे हंझ नो, अचिंते बाज पऎ॥
बाज पऎ तिसु रब दे, केलां विसरीआं॥
जो मनि चिति न चेते सनि,सो गाली रब कीआं॥९९॥
साडे त्रै मण देहुरी,चलै पाणी अंनि॥
आइउ बंदा दुनी विचि,वति आसूणी बंनि॥
मलकल मऊत जां आवसी,सभ दरवाजे भंनि॥
तिना पिआरिआ भाईआं, अगै दिता बंनि॥
वेखहु बंदा चलिआ चहु जणिआ दै कंनि॥
फरीदा अमल जि कीते दुनी विचि,दरगह आऎ कंमि॥१००॥
फरीद जी कहते हैं कि जिस प्रकार बगुला तलाब के किनारे बैठा केल करता रहता है,मस्ती करता रहता है और इस मस्ती करने में इतना मस्त हो जाता है कि उसे यह खबर ही नही रहती कि उस के आस-पास क्या हो रहा है?वह निश्चिंत हो मस्ती करता रहाता है कि इसी बीच कब बाज़ उस पर झपट पड़ता है उसे कुछ मालूम ही नही हो पाता।जब वह अपने आप को बाज़ के चुगंल मे फँसा पाता है तो उस की सारी मस्ती उसे भूल जाती है।जब कि उसे कभी इस बात का ध्यान ही नही होता कि उस के साथ ऐसा भी कुछ असमय घट सकता है।सो परमात्मा कब क्या करता है यह कोई नही जानता। अर्थात फरीद जी बगुले का उदाहरण देते हुए हम से कहना चाहते हैं कि यह जो जीव है,दुनिया में आ कर दुनिया के राग रंग मे इतना खो जाता है,उसे यह भूल ही जाता है कि परमात्मा ने जो यह जीवन हमे दिया है यह एक दिन समाप्त हो जाना है,उस परमात्मा के हुकम से ना जाने कब यह मौत हमे अपने साथ ले जाएगी?हमे तो होश ही तभी आता है जब हम इस मौत की पकड़ मे आ जाते हैं।तब जिन राग रंगों मे हम खोये हुए थे वह सब हम मौत के भय से भूल जाते है। हम इस मौत के बारे में कभी विचार ही नही करते,जब कि यह सब परमात्मा ने पहले से ही तय कर रखा है।
फरीद जी आगे कहते है कि यह जो जीव का साढे तीन मन का शरीर है ,यह अन्न और पानी के सहारे चलता रहता है और यह जो जीव संसार मे आया है वह बहुत ही सुन्दर सी आस लेकर आया है।लेकिन इस की आस कभी पूरी नही होती और यह जो मौत है यह इसके शरीर के सभी अंगो को क्षीण करते हुए,इसे आ घेरती है और जीव मर जाता है,तब यही अपने प्यारे साथी हमारे शरीर को बाधँ कर ,दपनाने के लिए,जलाने के लिए रख देते हैं।उस समय यह चार कंधों पर सवार हो कब्रिस्तान,शमशान की ओर चल देता है।ऐसे समय में,जहाँ हमे मरने के बाद जाना है वहाँ हमारे वही सतकर्म हमारे काम आते हैं जो हमने जीवन मे किए थे। अर्थात फरीद जी हम से कहना चाहते है कि यह जीवन तो एक दिन समाप्त हो ही जाना है,ऐसे मे हमे व्यर्थ के कामों मे अपना समय नही गंवाना चाहिए।हमे ऐसे कार्य करने चाहिए जो हमारे मरने के बाद भी हमारी सहायता कर सके।
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2 घंटे पहले
4 टिप्पणियाँ:
अच्छी व्याख्या की है.
वाह बाली साहेब वाह...फरीद के ये छंद पढ़वा कर आनंद ला दिया आपने...फरीद और कबीर दोनों एक समय के ही हैं और दोनों एक दूसरे से मिले भी हैं...कबीर ने जहाँ खड़ी बोली में विलक्षण दोहे कहे वहीँ फरीद मुल्तानी में ये सब कह गए...उनका कहा अगर हम याद रख लें तो जीवन के कष्ट कष्ट ही न लगें...
नीरज
ववाह...वाह...बाली जी तुसीं गुरु बानी दे अरथां दा इह ब्लॉग शुरु कर के बहोत अच्छा किता ....!!
AABHAAR.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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