कबीर बेड़ा जरजरा, फूटे छेंक हजार॥
हरूऐ हरूऐ तिरि गए, डूबे जिन सिर भार॥३५॥
कबीर जी कह्ते है कि यह जो बेड़ा अर्थात समुद्री जहाज है यह बहुत ही नाजुक हालत मे हैं और इस मे हजारों छेद हो चुके हैं। लेकिन हजारो छेद होने के बावजूद भी जो हल्के हल्के थे। वे तो तैरते चले गए लेकिन जो अपने ऊपर भार लादे हुए थे वे डूब गए।
कबीर जी हमे कहना चाहते है कि यह जो हमारा जीवन है यह एक समुद्री जहाज की तरह है। जो संसार रूपी सागर मे तैर रहा है। यह जहाज भी ना जाने कितने जन्मों से यात्रा कर रहा है और इसमे अब तक ना जाने कितनें अच्छे बुरे संस्कारों और कामों के कारण हजारो छेद हो चुके हैं।जिस कारण यह बहुत जरजर हालत मे पहुँच चुका है।यह कभी भी डूब सकता है।लेकिन कबीर जी आगे कहते है कि इस समुद्र मे वही जहाज तैर सकता है जो निर्भार है जिस का कोई भार नही है। अर्थात जिस के मन मे कोई कामना शेष नही रह गई है।वही यहाँ तैर कर पार हो सकता है और जिन के सिर पर भार है अर्थात कामनाए हैं, धर्म कर्म की बातों से जो भरे हुए है, जिन्होनें अपने भीतर शब्दो के ज्ञान भंडार को इक्ठ्ठा किया हुआ है।ऐसे लोग इस संसार सागर को पार नही कर सकते।अर्थात किसी विषय के बारे मे जानकारी रखना अलग बात है और किसी बात का अनुभव करना अलग बात है।यहाँ पर कबीर जी जानकारी रखने वालो के सिर पर भार है ऐसा कह रहे हैं और जिन्हे अनुभव है वे ही हल्के हैं। यही बात कबीर जी कहना चाहते हैं।अत: हम निर्भार हो कर ही इस सागर से पार हो सकते हैं।
कबीर हाड जरे जिउ लाकरी, केस जरे जिउ घासु॥
ऐहु जगु जरता देखि कै, भईउ कबीरु उदासु॥३६॥
कबीर जी कह्ते हैं कि इस भौतिक शरीर के नष्ट होने पर हमारे शरीर को जब आग मे जलाया जाता है उस समय हमारी हड्डीयां लकड़ी की तरह जलती है और हमारे बाल घास की तरह जल कर राख हो जाते है। यह सब हम रोज ही अपने आस-पास घटता देखते रहते हैं। कबीर जी कहते हैं कि इन्हीं बातो को देख कर मेरा मन संसारी बातों से ऊब गया, उदास हो गया।
कबीर जी इस मृत्यु के बारे मे बार बार हमे बता रहे हैं। उसका कारण यह है कि हम हमेशा अपनी मृत्यु को भूले रहते हैं ।यहाँ तक की जब हम मरघट पर किसी की अर्थी के साथ भी जाते है, उस समय भी हम अपनी मृत्यु को नही देख पाते।यदि हम कभी किसी दूसरे की मृत्यु में अपनी मृत्यु को देख सकें तो हम भी कबीर जी की तरह इस संसार की असलियत को पहचान पाएगें और इसे पहचानते ही हम भी कबीर जी की तरह इस संसार के प्रति उदास हो जाएगें।इसी बात को समझाने के लिए कबीर जी हमे अपना अनुभव बता रहे हैं।
हरूऐ हरूऐ तिरि गए, डूबे जिन सिर भार॥३५॥
कबीर जी कह्ते है कि यह जो बेड़ा अर्थात समुद्री जहाज है यह बहुत ही नाजुक हालत मे हैं और इस मे हजारों छेद हो चुके हैं। लेकिन हजारो छेद होने के बावजूद भी जो हल्के हल्के थे। वे तो तैरते चले गए लेकिन जो अपने ऊपर भार लादे हुए थे वे डूब गए।
कबीर जी हमे कहना चाहते है कि यह जो हमारा जीवन है यह एक समुद्री जहाज की तरह है। जो संसार रूपी सागर मे तैर रहा है। यह जहाज भी ना जाने कितने जन्मों से यात्रा कर रहा है और इसमे अब तक ना जाने कितनें अच्छे बुरे संस्कारों और कामों के कारण हजारो छेद हो चुके हैं।जिस कारण यह बहुत जरजर हालत मे पहुँच चुका है।यह कभी भी डूब सकता है।लेकिन कबीर जी आगे कहते है कि इस समुद्र मे वही जहाज तैर सकता है जो निर्भार है जिस का कोई भार नही है। अर्थात जिस के मन मे कोई कामना शेष नही रह गई है।वही यहाँ तैर कर पार हो सकता है और जिन के सिर पर भार है अर्थात कामनाए हैं, धर्म कर्म की बातों से जो भरे हुए है, जिन्होनें अपने भीतर शब्दो के ज्ञान भंडार को इक्ठ्ठा किया हुआ है।ऐसे लोग इस संसार सागर को पार नही कर सकते।अर्थात किसी विषय के बारे मे जानकारी रखना अलग बात है और किसी बात का अनुभव करना अलग बात है।यहाँ पर कबीर जी जानकारी रखने वालो के सिर पर भार है ऐसा कह रहे हैं और जिन्हे अनुभव है वे ही हल्के हैं। यही बात कबीर जी कहना चाहते हैं।अत: हम निर्भार हो कर ही इस सागर से पार हो सकते हैं।
कबीर हाड जरे जिउ लाकरी, केस जरे जिउ घासु॥
ऐहु जगु जरता देखि कै, भईउ कबीरु उदासु॥३६॥
कबीर जी कह्ते हैं कि इस भौतिक शरीर के नष्ट होने पर हमारे शरीर को जब आग मे जलाया जाता है उस समय हमारी हड्डीयां लकड़ी की तरह जलती है और हमारे बाल घास की तरह जल कर राख हो जाते है। यह सब हम रोज ही अपने आस-पास घटता देखते रहते हैं। कबीर जी कहते हैं कि इन्हीं बातो को देख कर मेरा मन संसारी बातों से ऊब गया, उदास हो गया।
कबीर जी इस मृत्यु के बारे मे बार बार हमे बता रहे हैं। उसका कारण यह है कि हम हमेशा अपनी मृत्यु को भूले रहते हैं ।यहाँ तक की जब हम मरघट पर किसी की अर्थी के साथ भी जाते है, उस समय भी हम अपनी मृत्यु को नही देख पाते।यदि हम कभी किसी दूसरे की मृत्यु में अपनी मृत्यु को देख सकें तो हम भी कबीर जी की तरह इस संसार की असलियत को पहचान पाएगें और इसे पहचानते ही हम भी कबीर जी की तरह इस संसार के प्रति उदास हो जाएगें।इसी बात को समझाने के लिए कबीर जी हमे अपना अनुभव बता रहे हैं।
1 टिप्पणियाँ:
जन्मदिन की शुभकामनाएँ......कबीर जी के दोहो की इतनी अच्छी व्याख्या से समझना आसान हो जाता है .......
क्या मै आपके ब्लोग के दोहो को अपने स्वर मे रिकार्ड कर सकती हू....
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