कबीर आसा करीऐ राम की,अवरै आस निरास॥
नरकि परहि ते मानई,जो हरि नाम उदास॥९५॥
कबीर जी कहते है कि हमें उस परमात्मा पर सदा भरोसा रखना चाहिए।क्योकि किसी दूसरे से आशा रखनी बेकार है।यदि हम परमात्मा की जगह किसी और पर आशा रखते है तो हम नरक में ही पड़ेगें और सदा दुखी होते रहेगें।
कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि एक परमात्मा ही ऐसा है जिस पर भरोसा कर के हम सही दिशा प्राप्त कर सकते हैं अर्थात परमात्मा के साथ एकाकार हुए बिना हमें कभी भी शांती प्राप्त नही हो सकती। परमात्मा के साथ एकाकार हुए बिना हम जो भी कार्य करे,जिस पर भी भरोसा करे..,उस से हमे अंतत: दुख ही हाथ लगेगा। हम अंतत: दुखी ही होगें। इस लिए हमे उस परमात्मा पर ही भरोसा करना चाहिए। यही बात वे समझाना चाहते हैं।
कबीर सिख साखा बहुते कीऐ,केसो कीउ न मीतु॥
चाले थे हरि मिलन कऊ,बीचै अटकीउ चीतु॥९६॥
कबीर जी कहते है कि बहुत से लोग अपने बहुत से चेल-चपाटे बना लेते हैं, लेकिन उस परमात्मा अर्थात केसो को अपना मित्र नही बनाते। ऐसे लोग भले ही यह सोचे की मिल कर भजन आदि करने से हमे हरि की प्राप्ती हो जाएगी। लेकिन ऐसे लोग अपने चेल-चपाटो को ही प्रभावित करने मे लगे रह जाते हैं और परमात्मा और संसार के बीच मे ही अटके रह जाते हैं।
कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि जब तक हम उस परमात्मा को अपना मित्र नही बना लेते, तब तक भले ही हम कितने ही कर्मकांड करें,लोगो को प्रभावित करके बहुत बड़ी-बड़ी भीड़ एकत्र कर ले। ऐसा करके हम उस परमात्मा को नही पा सकते।
नरकि परहि ते मानई,जो हरि नाम उदास॥९५॥
कबीर जी कहते है कि हमें उस परमात्मा पर सदा भरोसा रखना चाहिए।क्योकि किसी दूसरे से आशा रखनी बेकार है।यदि हम परमात्मा की जगह किसी और पर आशा रखते है तो हम नरक में ही पड़ेगें और सदा दुखी होते रहेगें।
कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि एक परमात्मा ही ऐसा है जिस पर भरोसा कर के हम सही दिशा प्राप्त कर सकते हैं अर्थात परमात्मा के साथ एकाकार हुए बिना हमें कभी भी शांती प्राप्त नही हो सकती। परमात्मा के साथ एकाकार हुए बिना हम जो भी कार्य करे,जिस पर भी भरोसा करे..,उस से हमे अंतत: दुख ही हाथ लगेगा। हम अंतत: दुखी ही होगें। इस लिए हमे उस परमात्मा पर ही भरोसा करना चाहिए। यही बात वे समझाना चाहते हैं।
कबीर सिख साखा बहुते कीऐ,केसो कीउ न मीतु॥
चाले थे हरि मिलन कऊ,बीचै अटकीउ चीतु॥९६॥
कबीर जी कहते है कि बहुत से लोग अपने बहुत से चेल-चपाटे बना लेते हैं, लेकिन उस परमात्मा अर्थात केसो को अपना मित्र नही बनाते। ऐसे लोग भले ही यह सोचे की मिल कर भजन आदि करने से हमे हरि की प्राप्ती हो जाएगी। लेकिन ऐसे लोग अपने चेल-चपाटो को ही प्रभावित करने मे लगे रह जाते हैं और परमात्मा और संसार के बीच मे ही अटके रह जाते हैं।
कबीर जी हमे समझाना चाहते हैं कि जब तक हम उस परमात्मा को अपना मित्र नही बना लेते, तब तक भले ही हम कितने ही कर्मकांड करें,लोगो को प्रभावित करके बहुत बड़ी-बड़ी भीड़ एकत्र कर ले। ऐसा करके हम उस परमात्मा को नही पा सकते।
8 टिप्पणियाँ:
कबीर जी के प्रेरक विचार हैं .... आभार प्रस्तुति के लिए ...
आभार ...
baali ji
bahut acchi baat kahi aapne , man me utar gayi kabeer kiwaani ...
aapka bahut bahut shukriya
vijay
poemsofvijay.blogspot.com
09849746500
बडे ज्ञान की बात है, धन्यवाद!
सुन्दर प्रस्तुति
बहुत - बहुत शुभकामना
वाह,पढ़ कर अच्छा लगा|
घुघूती बासूती
कबीर सब कुछ कह गए, समझ सको ना कोय ,,
धन्य हो बंधू आप से, कुछ प्रयास तो होय :)
:
प्रियंक ठाकुर
www.meri-rachna.blogspot.com
dhnya kar diya
saadhu saadhu !
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